Description
धरा को संवार लें…यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी
यह दौर बहुत सख्त और क्रूर है क्योंकि इसने हमसे हमारे अपने चेहते और प्रकृति पुत्र आदरणीय सुंदरलाल बहुगुणा जी को छीन लिया है, आपका जाना गहरी क्षति है, लेकिन उन्होंने जो रास्ते दिखाए हैं उन पर चलकर हम इतना तो कर ही सकते हैं कि इस धरा को संवार लें जैसा कि बहुगुणा जी चाहते थे, हम उनके सपनों की प्रकृति तैयार कर सकते हैं, करेंगे और अवश्य करेंगे…यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी…?
दोस्तों यह अंक दो हिस्सों में विभाजित किया गया है, पहला हिस्सा प्रकृति पुत्र पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा जी पर केंद्रित है।
दूसरा हिस्सा ‘अमृत की बूंदों’ पर अर्थात बारिश पर केंद्रित है, बारिश की थोड़ी सी देरी हमारे चेहरे पर गहरी चिंता को उकेर देती है, उसकी अधिकता भी हमें रुला जाती है, हम सोचते अवश्य हैं कि सबकुछ ठीक सा क्यों नहीं है जैसे पहले होता था, पहले मौसम का चक्र था, गर्मी के बाद जून के पहले सप्ताह में बारिश का आगमन हो जाया करता था लेकिन अब मानसून जुलाई और अगस्त तक भी अनेक बार दस्तक नहीं देता, बेरुखी में ही बीत जाता पूरा वर्ष, बारिश नहीं होती, जहां होती है वहां बाढ़ आ जाती है। दुख वहां भी जहां देरी है, दुख वहां भी जहां अधिकता है और पानी ही पानी है। हमें तय करना होगा कि आखिर इस अस्थिरता के पीछे आखिर कौन से कारण हैं, क्यों यह मौसम का चक्र इतना अस्थिर हो गया है। आखिर यह मौसम चक्र अपने तय समय पर कैसे लौटेगा और इसके लिए हमें मिलकर क्या करना चाहिए…सोचने का वक्त है और उससे अधिक करने का…। जुट जाईये अपने-अपने प्रयासों में, खूब पौधारोपण कीजिए, केवल पौधे मत रोपिये उन्हें वृक्ष बनाने तक की जिम्मेदारियां लीजिए, जहां पौधारोपण हो रहा है वहां हम क्या सहयोग कर सकते हैं, हम पानी कैसे दे सकते हैं पौधों को…सोचिये। कर तो बहुत सकते हैं, लेकिन हमें तय करना होगा…। हम सोचते बहुत हैं और संकोच भी बहुत करते हैं। हमारे ही बीच सुधार करने वाले भी हैं और वह संभव है कि आपसे न पूछें और न कहें लेकिन आप आगे से स्वयं ही पूछ लीजिए…सहयोग कीजिए…। प्रकृति का संरक्षण सभी की जिम्मेदारी है क्योंकि उसका उपयोग और उपभोग सभी करते हैं…आईये बूंदों को अमृत बूंदें मानकर शीश पर लगाएं और जुट जाएं सुधार के महा अभियान में…।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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