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JULY 2023 शिक्षा में हो पर्यावरण का ठोस अंकुरण

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September 2023 पर्वों में प्रकृति

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Description

ब्याह दी गई बेटियों से पूछो सावन क्या होता है ?

सावन और भादों क्या है…? हम सोच भी नहीं पाएंगे कि उन बेटियों के लिए जो बारिश, संयुक्त परिवार और मौसम के खूबसूरत दौर को देख चुकी हैं, बेशक घर के आंगन कच्चे थे और छत खपरैल की लेकिन बारिश से रिश्ता बहुत गहरा था। सच मैं यदि सावन और भादो से मानवीय रिश्ते पर अपनी बात कहूं तो बेहद कम शब्दों में यही कहना चाहूंगा कि आप इस अहसास को ब्याह दी गई उन बेटियों से पूछिए जो पिता के घर से कोसों दूर बसी हैं और इस दौर की यादों को जीने के लिए घर के एकांत में दरवाजे से सटकर डबडबाई आंखों से बहुत रोती हैं। उनसे पूछिए कि बचपन, झूला, बारिश और सावन क्या होता है। सावन और भादो पर पिता के घर न पहुंच पाने का दर्द पूरे साल गहरे तक सालता है। गीत लिखे गए और साहित्य भी इस प्रमुख भाव को साहित्य ने बेहद खूबसूरती से उकेरा है। आप झूले और बारिश का सावन और भादो से रिश्ता जोड़कर देखेंगे तो यकीन मानिए कि आपको उसमें चहचहाती बेटियों का बचपन अवश्य मिलेगा, उम्रदराज पिता और शांत चित्त मां, कच्चा और गोबर से लिपा आंगन यह सबकुछ आपकी नजरों से होकर गुजरेगा। लौट जाईये उस बचपन में उन बेटियों के साथ, उनके भावों का अनुसरण कीजिए और दोबारा गांवों में मौसम और बारिश को जीना आरंभ कीजिए क्योंकि बेहद जरुरी है हमारा मौसम के साथ रिश्ता और उस रिश्ते में आ रही दरारों पर गहन मंथन। हम भावों से उस रिश्ते की दरार भर सकते हैं, हम दोबारा अपनी पीढ़ी को सिखा सकते हैं कि सावन और भादो क्या है और क्यों जरुरी है हमारे जीवन में। महकता हुआ बचपन और पिता के घर लौटने की राह देखती बेटियों ने मौसम से एक रिश्ता कायम किया है, वह बहुत गहरा है और बहुत खूबसूरत। उसे महसूस कीजिए और जीने की नई परिभाषा अपने अपने परिवारों में लिखना आरंभ करें….। देखिएगा परिवार भी महकेगा और जीवन भी। कभी पूछिएगा उन बेटियों से जो पिता के घर से दूर हैं और लौट नहीं पा रही हैं, यूं ही एक बार बात कीजिएगा और पुराने दिनों पर वह कितनी मुखर हो जाएंगी, कितनी भावुक हो उठेंगी कि आप महसूस करेंगे कि आपने वाकई सावन और भादो को अपने करीब ही छिपा रखा है, बस वह नजर नहीं आया…क्योंकि वह महसूस करने का विषय है, उनकी रुलाई आपको गहरे तक कुरेद जाएगी यदि आप सावन और भादो का महत्व नहीं जानते हैं….?

संदीप कुमार शर्मा,
प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन

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