- बिहार के मुंगेर में ‘संस्थान देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ’ द्वारा चलाया जा रहा है अभियान-
पर्यावरण में अब वह दौर आ गया है जब संकट भी समझा जाए और समाधान पर गंभीर होना आवश्यक है। जमीनी कार्य जरुरी हैं क्योंकि मौजूदा दौर में वैचारिक जागरुकता के साथ सुधार में जुटना बेहद जरुरी है। सुधार को आम जन तक पहुंचाने के अपने-अपने तरीके हैं, सुधार की अपनी-अपनी राह हैं। मूल यह है कि आम व्यक्ति उस सुधार से अपने आप को जोड़े और अभियान का हिस्सा हो जाए। ऐसा ही कार्य बिहार के मुंगेर में ‘संस्थान देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ’ द्वारा किया जा रहा है। वर्ष 2008 से आरंभ हुआ पर्यावरण संरक्षण कार्यक्रम अब वृहद स्वरूप धारण कर चुका है। यहां पुरातन तरीका अपना गया, ज्योतिष को वृक्षारोपण से जोड़कर जमीनी कार्य आरंभ कर दिया गया है और सुधार हो रहा है, आम जन समझ रहे हैं और पीपल, बरगद के वृक्षारोपण में मदद को प्रेरित होकर आगे आ रहे हैं।वृक्षारोपण से जोड़कर किया पर्यावरण संरक्षण का यह तरीका तो पुरानत है लेकिन इसका क्रियान्वयन बहुत ही उम्दा तरीके से किया गया है।
पर्यावरण को धर्म और ज्योतिष से जोड़कर चलाया अभियान
संस्थान देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ के संयोजक नितीश कुमार का कहना है हम यदि भारत के पुरातन दौर को समझने का प्रयास करेंगे तो यहां पर्यावरण को धर्म और ज्योतिष से जोड़कर देखा जाता रहा है। यह एक तरीका है पर्यावरण संरक्षण का और यह भी सच है कि लंबे समय तक यह कारगर भी साबित हुआ। ज्योतिषशास्त्र कहता है कि यदि जीवन में किसी भी तरह की परेशानी है तो उसका निवारण पौधारोपण और वृक्षारोपण से संभव है। हम भी यही समझा रहे हैं और हमारे अभियान का मूल भी यही है। खुशी की बात यह है कि हमारे अभियान को सराहा भी जा रहा है और लोग स्वैच्छा से जुड़ भी रहे हैं।
पूरी ताकत से अपनी नई राह बनाई

नितीश कुमार का कहना है अभियान तो वर्ष 2008 से आरंभ हो गया लेकिन इसे वर्ष 2016 के बाद नई दिशा मिली। इसी वर्ष में पिताजी जनार्दन प्रसाद राय का स्वर्गवास हो गया लेकिन उन्होंने स्वर्गवास के पहले अपनी इच्छा जाहिर की कि एक फुलवारी बनवा दी जाए जिससे लोगों को छांव, फल और फूल मिलेंगे। पिता वैद्य थे और उन्हें जड़ी बूटियों की गहरी समझ थी। पौधा पहचाते थे, हमसे बात करते थे। धर्म, आध्यात्म और प्रकृति सभी एक साथ हमें वे समझाया करते थे। पिताजी की बात समझ आई और हमने अभियान में पूरी ताकत से अपनी नई राह बनाई और आम जन के साथ जुट गए। आपने सुना होगा कि ज्योतिष कहते हैं पीपल को जल दीजिए, बरगद लगाईये, हमने भी वही समझाया लेकिन यह भी कहा कि आप पीपल के पौधे को जल देने के साथ यदि पीपल का वृक्ष ही लगा देंगे और अधिक फायदा होगा। यह पूरा जीवन फायदा देगा। देखने आया कि लोग इसे बेहद सहजता से समझने लगे और स्वीकारने लगे और बस अभियान ने गति पकड़ ली।
पौधे नहीं वृक्षों की स्थापना करते हैं-पर्यावरण को धर्म
उन्होंने बताया कि हमारी संस्था का नाम ही है देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ। हम पौधे नहीं वृक्षों की स्थापना करते हैं। होता यह है कि पौधे लेने से लेकर, वृक्षारोपण में उपयोग में आने वाला सभी सामान बाल्टी, डिब्बे जैसे सामग्री लोग दान में दे जाते हैं। पौधे भी दे जाते हैं, नालों की मुंडेर पर, दीवारों पर जहां भी पीपल नजर आता है उन्हें भी सजगता से निकालते हैं और सबसे पहले हम सभी पौधों को देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ के मुंगेर स्थित आश्रम में लाते हैं यहां पर उन्हें तीन साल तक पौधों से वृक्ष बनने तक इंतजार करते हैं, यहां उनका पूरा ध्यान रखा जाता है और जब तीन वर्ष के बाद जब वे वृक्ष बनने लगते हैं उन्हें हम रोपित करते हैं। अधिकांश वृक्षारोपण हम पहाडी हिस्से में देवस्थानों के नजदीक, वन क्षेत्र वाले ऐसे में करते हैं जहां नुकसान न हो, वृक्षों को नुकसान न हो, वह सुरक्षित रहें। देवस्थानों के आसपास इसलिए किया जाता है क्योंकि इन हिस्सों से लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं और वे उस वृक्ष की सुरक्षा और संरक्षण स्वत ही करते हैं। हम ऐसी रोड किनारे, सरकारी भवनों के क्षेत्र में, स्कूलों में वृक्षारोपण नहीं करते। रोड किनारे वृक्षारोपण करने का नुकसान यह है कि जब भी चौड़ीकरण होता है तो वहां के वृक्ष उखाड़ दिए जाते हैं।
अब तक वृक्षारोपण
अब तक वृक्षारोपण की बात करें तो गंगा में नजदीकी पहाडी क्षेत्र जमालपुर काली पहाडी क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि लोग स्वप्रेरणा से वृक्षारोपण के साथ उनके संरक्षण और सुरक्षा को आगे आए। अब तक 2000 पीपल, 500 बरगद, 500 आम, कदंब, नीम, मौलश्री, आंवला के 100-100 वृक्षों की स्थापना की है।
वृक्षों को रिपलेस करते हैं
उन्होंने बताया कि ऐसी भी स्थिति आती है कि कहीं हमारे द्वारा लगाया गया वृक्ष यदि किसी कारणवश नहीं हो पा रहा है तब हम उस जगह पर दूसरा वृक्ष लगा देते हैं और उस वृक्ष को आश्रम में आते हैं और उसका उपचार करते हैं, जब वह वृक्ष ठीक अवस्था में आने लगता है हम उसे दोबारा लगा देते हैं। कहीं कोई सरकारी फंड नहीं मिलता यह मिलाजुला मन से चलाया जा रहा अभियान है। इसमें अब तक आसपास के हिस्सों से 300 से अधिक प्रकृति को सहेजने वाले जुड़ गए हैं। ऐसे भी लोग हैं जो हमें बुलाते हैं और वृक्ष लगवाने के बाद आश्वस्त करते हैं कि देखरेख हम करेंगे और वे करते भी हैं। जब भी नए स्थान पर हमें वृक्षारोपण के लिए बुलाया जाता है तो पहले हम उस स्थान की पूरी जानकारी लेते हैं, सुरक्षा और संरक्षण तथा संवर्धन की स्थितियों को देखते हैं जब सबकुछ ठीक लगता है तब हम वहां वृक्षारोपण करते हैं, कई स्थानों पर स्थितियां अनुकूल नहीं थीं तो हमने मना भी कर दिया। इसके अलावा गांव-गांव जाकर पीपल कथा करते हैं और वृक्षों का महत्व समझाते हैं। उन्होंने बताया कि हम वृक्षों के रोपण को वृक्षों की स्थापना कहते हैं क्योंकि देवस्थान की भी स्थापना होती है और इसलिए हम वृक्षों की भी स्थापना करते हैं। हम ज्योतिष मान्यता के अनुसार पौधारोपण भी करने के लिए प्रेरित करते हैं। जन्म अथवा विवाह संस्कार के लिए आम की स्थापना, पीपलपानी के लिए पीपल की स्थापना, मां दुर्गा की आराधना के लिए नीम की स्थापना, भगवान शिव की आराधना के लिए बरगद और बेल की स्थापना, मां सरस्वती के लिए मौलश्री की स्थापना, राधाकृष्ण के लिए कदंब की स्थापना की जाती है।
सलाहकार समिति भी है
यहां बताना चाहते हैं कि रेल कर्मचारी होने के नाते जमालपुर रेलवे क्षेत्र के अलावा रामपुरहाट (पश्चिम बंगाल) में श्री सत्यम राजा जी और तथा अनिल कुमार के सहयोग से देववृक्ष आश्रम की स्थापना की गई। इसमें वाकायदा एक सलाहकार समिति भी गठित की गई है इसमें ज्योतिष, प्रोफेसर, चिकित्सक, एडवोकेट, पंडित, पुरोहित, लेखक, इतिहासकार जिनसे लोक परंपरा तथा अन्य पुरानी जानकारियां एकत्र में मदद भी मिलती है। सभी मिलकर इस अभियान को आगे ले जा रहे हैं। हमारे साथ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. कविता बरनवाल, इतिहासकार श्री उदय शंकर झा चंचल, श्रीमती पिंकी पाण्डेय, अनिल कुमार, सोमदत्त मिश्रा जी, अभिषेक कुमार, विकास यादव का भी सतत सहयोग मिलता है।
गौरेया संरक्षण के लिए गांव गोद लिया-पर्यावरण धर्म

उन्होंने बताया कि हमारा अपना गांव शिवकुंड है यहां पर हमने पक्षी संरक्षण अभियान आरंभ किया। यहां गौरेया को बचाने के लिए हम सभी एक जुट हुए। वर्ष 2020 से ये अभियान आरंभ हुआ। इस गांव को गोद लेकर हमने गौरेया के संरक्षण पर कार्य आरंभ किया। यहां हर घर कृत्रिम घोंसले लगाए गए, गौरेया के दाने और पानी का इंतजाम किया गया है। यहां इस अभियान से बड़ी संख्या में महिलाएं और बच्चियां भी जुडी हैं। खुशी की बात यह है कि यहां अब गौरेया की संख्या दोगुनी हो गई है। इस कार्य में हमने कुछ जिलों के विशेषज्ञों को भी साथ लिया। पर्यावरणविद पटना निवासी डॉ. धर्मेंद्र कुमार, बांका निवासी डॉ. रविरंजन, नालंदा गौरेया विशेषज्ञ राजीव पाण्डेय के अलावा मुंगेर जिला देववृक्ष देवस्थान स्थापना महायज्ञ इस कार्य में मिलकर कार्य कर रहे हैं। सभी का पूरा सहयोग मिल रहा है। गांव में गौरेया की चहचहाहट से मन प्रसन्न हो उठता है।
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