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बढ़ते तापमान का असर पक्षी और कीटों पर

बढ़ते तापमान का असर पक्षी और कीटों पर

गर्मियों में अब जबकि तापमान temperatures तेजी से बढ़ने लगा है, कारण जो भी हों लेकिन हकीकत तो यह है कि सबसे अधिक पीड़ादायी समय पक्षियों और कीटों के लिए होता है। 40 से अधिक तापमान होने पर संकट गहराने लगता है। पक्षियों और कीटों के लिए यह समय जानलेवा साबित होता है। हमें तो पता ही नहीं चलता कि कितने कीट और पक्षी इस तपिश की भेंट चढ़ जाते हैं, तापमान के बढ़ने पर हम यहां पक्षियों और कीटों के जीवन पर इसलिए चर्चा करना चाहते हैं क्योंकि यह उस पारिस्थितिक तंत्र ईको सिस्टम (ecosystem)  का अहम हिस्सा हैं जिससे यह प्रकृति संचालित होती है। वे प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं और कई पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं का हिस्सा होते हैं। हर जीव की पारिस्थितिक तंत्र में अपनी ही भूमिका होती है और पक्षी और कीट इस प्रणाली के कई महत्वपूर्ण कार्यों को पूरा करते हैं। हमें समझना होगा कि यदि पक्षी और कीट इस तापमान के कारण विलुप्त होते हैं तो यकीन मानिए कि हम मानवों के लिए यह एक महासंकट है। तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए प्रयास हो रहे हैं लेकिन उसकी गति जल्द कोई सकारात्मक उम्मीद नहीं बंधाती। बेहतर होगा ईको सिस्टम (ecosystem) को भी ध्यान में रखा जाए और तापमान से वह कितना प्रभावित हो रहा है उस पर मंथन और चिंतन आरंभ होने के बाद सुधार की राह मजबूती से प्रशस्त होनी चाहिए। पक्षी के अलावा कीट बेशक हमें पसंद हो या न हों लेकिन उनसे यह प्रकृति संचालित हो रही है और वे एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे, हैं लेकिन रहेंगे या नहीं यह तो भविष्य ही तय करेगा। बढ़ते तापमान का असर पक्षी और कीटों पर हो रहा है और यह हम सभी जानते हैं, लेकिन ऐसा न हो इस पर विचार और कार्य करने का समय आ गया है।

जनवरी 2025 को वैश्विक स्तर पर अब तक का सबसे गर्म जनवरी महीना रिकॉर्ड किया गया, जो पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.75°C अधिक था।  कुवैत के नुवैसीब शहर का  तापमान 22 जून 2021 को 53.2°C दर्ज किया था जो अब तक का एक उच्चतम रिकॉर्ड है।

पक्षियों का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान

  1. पक्षी पारिस्थितिक तंत्र में भोजन, बीजों और मच्छरों के नियंत्रण के रूप में अहम भूमिका निभाते हैं। कुछ पक्षी पौधों के बीजों को फैलाते हैं, जिससे नई पौधों की वृद्धि होती है।
  2. कई पक्षी जैसे कि गिद्ध, चील और कौआ कीटों, चूहों, और अन्य छोटे जानवरों को खाते हैं, जो कीटों के नियंत्रण में मदद करते हैं।
  3. कुछ पक्षी, जैसे कि हमिंगबर्ड्स, फूलों के परागण में मदद करते हैं। वे एक फूल से दूसरे फूल तक पराग ले जाते हैं, जिससे पौधों की प्रजनन प्रक्रिया में सहायता मिलती है।
  4. मृत पक्षी और उनके मल (feces) पारिस्थितिक तंत्र में पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में योगदान करते हैं।

कीटों का पारिस्थितिक तंत्र में योगदान

  1. कई कीट जैसे मधुमक्खियाँ, तितलियाँ और भृंग फूलों का परागण करते हैं। बिना इन कीटों के, पौधों की प्रजनन प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है और खाद्य श्रृंखला में बदलाव आ सकता है।
  2. मृत जीवों और सड़े-गले पौधों को कीटों द्वारा खाया जाता है, जो पोषक तत्वों को मिट्टी में वापस डालते हैं। यह मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में मदद करता है।
  3. कीट भोजन के अन्य जीवों के लिए स्रोत होते हैं। पक्षी, चमगादड़ और छोटे स्तनधारी कीटों को खाते हैं, और यह श्रृंखला पारिस्थितिक तंत्र को स्थिर बनाए रखती है।
  4. कुछ कीट जैसे लाल चींटी, परजीवी कीट और घास कीट की संख्या को नियंत्रित करते हैं, जिससे अन्य कीटों के अत्यधिक वृद्धि को रोका जा सकता है।

पारिस्थितिक तंत्र में पक्षी और कीटों के बिना प्रभाव:

  1. यदि पक्षी और कीट पारिस्थितिक तंत्र से बाहर हो जाते हैं, तो भोजन चक्र में विघटन हो सकता है। जैसे, अगर परागण करने वाले कीटों की संख्या घट जाती है, तो पौधों का प्रजनन कम हो सकता है, और इससे खाद्य आपूर्ति पर असर पड़ सकता है।
  2. यदि पक्षियों और कीटों की संख्या में कमी आती है, तो यह पारिस्थितिकीय संतुलन को प्रभावित कर सकता है। इससे कीटों की संख्या बढ़ सकती है, जो अन्य जीवों के लिए हानिकारक हो सकता है।
  3. कीटों और पक्षियों का योगदान पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में होता है। इनके बिना, प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और गुणवत्ता में गिरावट आ सकती है।

पक्षी और कीट पारिस्थितिक तंत्र का एक अभिन्न हिस्सा हैं। उनका पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में अहम योगदान है। यदि इनका अस्तित्व खतरे में आता है, तो इसका असर समग्र पारिस्थितिकीय प्रक्रियाओं पर पड़ेगा, जिससे पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो सकता है। इसलिए, इन जीवों का संरक्षण और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन को बनाए रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

पक्षियों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई

विभिन्न अध्ययन और रिपोर्टें यह दर्शाती हैं कि अत्यधिक गर्मी और समुद्री हीटवेव्स के कारण पक्षियों की मृत्यु दर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।​

प्रमुख घटनाएँ:

  1. “द ब्लॉब” नामक समुद्री हीटवेव के कारण अलास्का में 2014 से 2016 के बीच लगभग 4 मिलियन कॉमन म्यूर (Common Murre) पक्षियों की मौत हुई। यह अब तक की सबसे बड़ी एकल प्रजाति की मृत्यु घटना मानी जाती है।
  2. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में 2009 और 2010 में  45°C से अधिक तापमान के कारण हजारों पक्षियों की मौत हुई, जिनमें बड्गेरिगार्स और ज़ेब्रा फिंचेस शामिल थे। 2010 में, 208 दुर्लभ कार्नबीज़ ब्लैक-कॉकटूज़ की भी मृत्यु हुई।
  3. 1986 से 2019 तक के आंकड़ों के अनुसार, जब गर्मियों में तापमान 38°C से अधिक रहा, तो पक्षियों की वार्षिक जीवित रहने की दर 86% से घटकर 59% हो गई। 2019 में 49°C तापमान के दौरान, 29% वयस्क पक्षी 24 घंटे के भीतर मर गए।
  4. समुद्री हीटवेव्स के कारण 2014 से 2019 के बीच पांच बड़े पैमाने पर पक्षियों की मृत्यु घटनाएँ हुईं जबकि पहले यह घटनाएँ लगभग एक दशक में एक बार होती थीं।

अन्य प्रमुख घटनाएँ

  1. दक्षिण अफ्रीका के लैम्बर्ट्स बे में 2000 में एक हीटवेव के दौरान, लगभग 100 केप गैनट्स (Cape Gannets) की अचानक मृत्यु हो गई। इस घटना ने पहली बार वैज्ञानिकों का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि कैसे अत्यधिक गर्मी समुद्री पक्षियों को प्रभावित कर सकती है।
  2. न्यू मैक्सिको, कोलोराडो, टेक्सास, एरिज़ोना और नेब्रास्का में 2020 में हजारों प्रवासी पक्षियों की अचानक मृत्यु हुई। एक अध्ययन में पाया गया कि इन पक्षियों की 80% मौतें भूखमरी के कारण हुईं, जो अत्यधिक गर्मी और सूखे के कारण भोजन की कमी से उत्पन्न हुई थी

अध्ययन और निष्कर्ष

  • एक अध्ययन में पाया गया कि कृषि क्षेत्रों में घोंसला बनाने वाले पक्षी अत्यधिक गर्मी के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इन क्षेत्रों में पक्षियों के चूजों के जीवित रहने की संभावना 46% कम पाई गई, जबकि वन क्षेत्रों में यह दर 14% अधिक थी।
  • एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि उष्णकटिबंधीय वनों में पक्षियों की वार्षिक जीवित रहने की दर गर्म वर्षों में 67% तक कम हो गई। यह दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल मानव-प्रभावित क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्रों में भी देखा जा रहा है।

भारत में प्रमुख घटनाएँ और आंकड़े

  1. सांभर झील में नवंबर 2019 में 11 दिनों के भीतर लगभग 18,000 प्रवासी पक्षियों की मौत हुई। विशेषज्ञों के अनुसार, यह घटना एवियन बोटुलिज़्म के कारण हुई, जो उच्च तापमान और जल स्तर में गिरावट के कारण उत्पन्न हुआ।
  2. सांभर झील में अक्टूबर 2024 में फिर से लगभग 600 प्रवासी पक्षियों की मौत हुई। इस बार भी, उच्च तापमान और जल स्तर में गिरावट को एवियन बोटुलिज़्म के लिए जिम्मेदार माना गया।
  3. गुजरात में 2022 में अत्यधिक गर्मी के कारण पक्षी आसमान से गिरते देखे गए। उच्च तापमान और जल की कमी के कारण पक्षियों में थकावट और निर्जलीकरण देखा गया।
  4. रतलाम में मई 2024 में तापमान 46 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया जिससे दर्जनों पक्षियों और चमगादड़ों की मौत हुई। हीटस्ट्रोक के कारण ये घटनाएँ हुईं। अप्रैल माह 2025 में इंदौर में चार मोरों की मौत हो गई थी, ऐसा बताया गया कि यहां हीटवेब के कारण इन मोरों की मौत हुई है। डॉक्टर का कहना है मोरों की मौत लू लगने के कारण हुई है।

पक्षियों की आबादी में गिरावट

“स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स” रिपोर्ट (2023) के अनुसार, भारत में पिछले 30 वर्षों में 60% पक्षी प्रजातियों की संख्या में गिरावट देखी गई है। इस गिरावट के पीछे जलवायु परिवर्तन, आवास की हानि और अत्यधिक गर्मी जैसे कारक जिम्मेदार हैं।

पक्षियों के लिए जानलेवा तापमान:

  1. 45°C – 50°C: यह तापमान पक्षियों के लिए सबसे खतरनाक होता है। 45°C के ऊपर तापमान में वे शारीरिक रूप से असहज महसूस करने लगते हैं, और 50°C तक जाते-जाते उनके शरीर में तापमान नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। इस तापमान पर पक्षी जलने, निर्जलीकरण या शॉक की स्थिति में आ सकते हैं।
  2. 50°C और उससे अधिक: 50°C से ऊपर का तापमान अधिकांश पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है, विशेष रूप से यदि उनके पास छांव या पानी की उपलब्धता न हो। इस तापमान पर पक्षी गंभीर रूप से निर्जलित हो जाते हैं, और उनकी जीवन की उम्मीद बहुत कम हो जाती है।

तापमान बढ़ने से बचाव के उपाय:

  1. जल स्रोतों का निर्माण: पक्षियों के लिए पानी के स्रोत जैसे बर्डबैथ या अन्य जल स्रोत तैयार करना।
  2. आश्रय स्थानों का निर्माण: पक्षियों को छांव देने के लिए वृक्षारोपण और अन्य प्राकृतिक संरचनाओं का निर्माण करना।
  3. विवेकपूर्ण फसल प्रबंधन: गर्मी के दौरान पक्षियों के आवास में बदलाव लाने से उनकी सुरक्षा की जा सकती है।
  4. कृत्रिम खाद्य स्रोत: गर्मी के समय पक्षियों के लिए खाद्य आपूर्ति बढ़ाना।

तापमान में वृद्धि का कीटों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि कीटों का जीवन उनके वातावरण के तापमान पर बहुत अधिक निर्भर करता है। कुछ कीट अत्यधिक गर्मी को सहन कर सकते हैं, जबकि दूसरों पर अत्यधिक तापमान के प्रभाव से उनका जीवन संकट में पड़ सकता है।

कीटों पर असर:

  1. उच्च तापमान की स्थिति में कीटों की प्रजनन क्षमता बढ़ सकती है, लेकिन अत्यधिक गर्मी के कारण उनकी अंडे देने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। कुछ कीटों के लिए अत्यधिक गर्मी उनके जीवन चक्र को छोटा कर सकती है, जिससे वे जल्दी मर सकते हैं।
  2. अधिक तापमान से कीटों का शरीर जल सकता है या वे निर्जलित हो सकते हैं। गर्मी के प्रभाव से उनके शारीरिक कार्य कमजोर हो सकते हैं, जैसे कि गति में कमी या भोजन की तलाश में कठिनाई।
  3. कीटों के लिए गर्मी के कारण उनके प्राकृतिक आवास बदल सकते हैं। कई कीट गर्मी से बचने के लिए गहरे स्थानों की तलाश करते हैं, जैसे कि मिट्टी में खुदाई करना।
  4. अधिक गर्मी से वातावरण में नमी की कमी हो सकती है, जिससे कीटों के आहार स्रोत, जैसे कि पौधे और छोटे जीव, कम हो सकते हैं।

तापमान सहने की क्षमता और जानलेवा तापमान:

  1. टिड्डी (Locust):
    • तापमान सहने की क्षमता: टिड्डियां गर्मी सहने में सक्षम होती हैं और 40°C से 45°C तक के तापमान में भी सक्रिय रह सकती हैं। वे गर्म और शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
    • जानलेवा तापमान: 50°C से ऊपर का तापमान टिड्डियों के लिए जानलेवा हो सकता है। यह उनकी शारीरिक कार्यप्रणाली को प्रभावित कर सकता है।
  2. चींटियां (Ants):
    • तापमान सहने की क्षमता: अधिकांश चींटियां 35°C से 40°C तक के तापमान को सहन कर सकती हैं। कुछ प्रकार की चींटियां गर्म वातावरण में भी घर बना सकती हैं, जैसे कि सैंड एंट्स (sand ants), जो 45°C तक के तापमान में जीवित रह सकती हैं।
    • जानलेवा तापमान: 50°C के आसपास का तापमान चींटियों के लिए जानलेवा हो सकता है, खासकर अगर पानी की कमी हो और वातावरण अत्यधिक शुष्क हो।
  3. मधुमक्खियाँ (Bees):
    • तापमान सहने की क्षमता: मधुमक्खियाँ 35°C से 40°C तक के तापमान में सामान्य रूप से काम करती हैं। वे अपने बत्तखों को ठंडा रखने के लिए पंख फड़फड़ाती हैं और तापमान को नियंत्रित करती हैं।
    • जानलेवा तापमान: 45°C से ऊपर का तापमान मधुमक्खियों के लिए जानलेवा हो सकता है, क्योंकि उच्च तापमान में वे सुरक्षा करने में सक्षम नहीं होतीं।
  4. तितलियाँ (Butterflies):
    • तापमान सहने की क्षमता: तितलियाँ आमतौर पर 30°C से 35°C के तापमान में सक्रिय रहती हैं। हालांकि, कुछ तितलियाँ ठंडे क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं, जो गर्मी सहन नहीं कर पातीं।
    • जानलेवा तापमान: 40°C से ऊपर के तापमान में तितलियाँ सुस्त हो सकती हैं और 45°C से ऊपर का तापमान उनके लिए जानलेवा हो सकता है, जिससे उनका जीवन चक्र रुक सकता है।

तापमान बढ़ने से बचाव के उपाय:

  1. मिट्टी में छिपना: कई कीट गर्मी से बचने के लिए मिट्टी में छिप जाते हैं।
  2. रात में सक्रिय होना: कुछ कीट जैसे मच्छर और टिड्डियाँ दिन में सोते हैं और रात के समय सक्रिय रहते हैं जब तापमान कम होता है।
  3. हवा या छांव का उपयोग: कुछ कीट जैसे मधुमक्खियाँ और तितलियाँ अधिक गर्मी से बचने के लिए छांव में आराम करती हैं या पंख फड़फड़ाती हैं ताकि शरीर का तापमान नियंत्रित हो सके।
  4. जल स्रोत का उपयोग: कीटों के लिए पानी एक महत्वपूर्ण कारक होता है, और गर्मी से बचने के लिए वे पानी के स्रोतों का सहारा लेते हैं।

कीटों के लिए जानलेवा तापमान

  • 45°C से ऊपर: अधिकतर कीटों के लिए 45°C से ऊपर का तापमान जानलेवा होता है, क्योंकि इससे उनके शारीरिक कार्य में विघटन होता है।
  • 50°C और उससे ऊपर: यह तापमान अधिकांश कीटों के लिए अत्यधिक होता है, और उनके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता है।

गर्मियों में तापमान में वृद्धि के कारण कीटों का जीवन संकट में पड़ सकता है, लेकिन उनकी कुछ विशेष अनुकूलन क्षमता उन्हें जीवनदायिनी बनाती है। हमने यहां समझने का प्रयास किया कि मौजूदा तापमान में पक्षी और कीट कितने सुरक्षित हैं और किस तापमान तक वे अपने जीवन को सुरक्षित रख पाएंगे। पक्षी और जीवों के लिए मौजूदा तापमान संकट की दस्तक है और इसका बढना निश्चित ही भविष्य के एक बडे संकट की ओर इशारा कर रहा है जिसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। पक्षी और कीट इस प्रकृति में बेहद जरुरी हैं क्योंकि वे इस सिस्टम का हिस्सा हैं।

संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन

रिफरेंस-एपी. न्यूज, गूगल,विकिपीडिया, एआई टूल, हिंदी समाचार और अंग्रेजी भाषा के समाचार पत्र, स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स, एनजीओ रिपोर्टस इत्यादि।

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