पेयजल संकट तो तेजी से गहराता जा रहा है लेकिन भूजल को लेकर हम गहरे संकट में धंसते जा रहे हैं। भारत वह देश है जो सबसे अधिक भूजल का उपयोग करने वाला देश है और यही कारण है कि सबसे अधिक संकट की जद में भी भारत ही है। वैज्ञानिकों का मत है कि स्थितियां चिंतनीय होती जा रही हैं और यही स्थिति रही तो 2030 तक भारत के कई महानगर डे जीरो Day 0 का असहनीय दर्द सहने को मजबूर हो जाएंगे। डे जीरो जहां पानी खत्म हो जाता है और जहां पानी खत्म हो जाता है वहां दर्दनाक और पीड़ादायी दिनों की शुरुआत हो जाती है। ग्राउंड वॉटर Ground Water हमारा नहीं है वह प्रकृति की अमूल्य निधि है उससे दूर ही रहें और बेहतर हो कि उसे बढ़ाने में मदद करें न कि उसे खींचकर अपने आप को भविष्य के गहरे संकट को सौंप दें, निर्णय का समय है। यह तय मान लीजिए कि हम भूजल पर महासंकट की ओर अग्रसर हैं।
अब तो केवल इतना ही समझिए कि हम पेयजल के मामले में संकट के मुहाने तक आ पहुंचे हैं। तापमान बढ़ रहा है, बारिश असमय हो रही है, मौसम चक्र बाधित है, हमारे रहन-सहन के तौर तरीकों ने प्रकृति की दिक्कतें और अधिक बढ़ा दी हैं] जहां नदियां हैं वहां पर्यावरण को लेकर समझ का स्तर बेहद संकरा है और जहां नदियां नहीं हैं, जहां संकट है, जहां मुश्किलें हैं, जहां प्यास है जहां चिंताएं हैं वहां समझ का अंकुरण तो हो चुका है लेकिन अब भी पूरी तरह से सजगता का गहरा अभाव है। जमीन के ऊपरी हिस्से का पानी खत्म होते ही भूजल Ground Water को तह तक तलाशने में भी कोई पीछे नहीं हट रहा है। भूजल हमारा नहीं है, वह प्रकृति का सुरक्षित जल है, रिजर्व वॉटर है जिसका उपयोग प्रकृति स्वयं के संरक्षण के लिए करती है लेकिन मानव भी गजब है वह उसे खींचकर फिजूलखर्ची में बहाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहा है। आंकड़े डराने वाले हैं, हम सूखने के करीब हैं, हम बेपानी होने के करीब हैं, ग्राउंड वॉटर यदि खत्म हुआ तो यकीन मानिएगा कि उम्मीद भी सूख जाएगी, भविष्य में दरारें होंगी और पीढ़ियों के चेहरे पर सूखे का भयाक्रांत करने वाला दौर होगा जिसे कोई देखना नहीं चाहेगा। यह वैश्विक समस्या है लेकिन भारत में यह संकट तेजी से गहराता जा रहा है।
विश्व में भूजल (Ground Water) संकट एक गंभीर समस्या बन चुका है, जो कई देशों को प्रभावित कर रहा है। नवीनतम रिपोर्ट्स और अध्ययनों के अनुसार निम्नलिखित देशों में भूजल की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है:
वैश्विक भूजल संकट
- 71% विश्व के 1,700 प्रमुख एक्विफ़र्स में भूजल स्तर घट रहा है] जिनमें से लगभग एक-तिहाई में गिरावट की गति तेज़ हो रही है। WIRED
- 30 % एक्विफ़र्स में वार्षिक गिरावट 0.1 मीटर से अधिक है] जबकि 12% में यह 0.5 मीटर से अधिक है। India Today
सबसे गंभीर स्थिति में भारत
भारत में प्रतिवर्ष जलसंकट गहराता है] मार्च के बाद देश के अनेक राज्यों में जलसंकट को लेकर चिंता गहराने लगती हैं। कम बारिश के वाले हिस्सों में संकट बहुत अधिक गहराने लगता है। ऐसे भी शहर और ग्रामीण हिस्से हैं जहां जलप्रदाय दो से तीन दिन के अंतराल में एक बार किया जाता है। ग्रीष्म के इन दिनों में भूजल स्तर तेजी से गिरने लगता है।
- भारत विश्व में सबसे अधिक भूजल उपयोग करता है] जो अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से भी अधिक है। Firstpost
- पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में 78% कुएं “अत्यधिक दोहन” की श्रेणी में हैं। Firstpost
- इंडो-गैंगेटिक बेसिन के कुछ क्षेत्र पहले ही “टिपिंग पॉइंट” पार कर चुके हैं] जहाँ भूजल स्तर इतनी तेजी से गिर रहा है कि प्राकृतिक पुनर्भरण संभव नहीं है। India Today
ईरान: भूमि धंसाव और सिंकहोल्स की समस्या
ईरान में भूजल का अत्यधिक दोहन भूमि धंसाव और सिंकहोल्स का कारण बन रहा है] विशेषकर केर्मान प्रांत में। The Guardian
तेहरान में भूमि प्रति वर्ष 25 सेमी तक धंस रही है] जो विश्व में सबसे अधिक है। Wikipedia
सबसे अधिक चिंतनीय स्थिति एक्विफ़र अरब प्रायद्वीप
- NASA ने विश्व का सबसे अधिक चिंतनीय स्थिति एक्विफ़र “अरबियन एक्विफ़र सिस्टम” को घोषित किया है। Business Finance News
- सऊदी अरब ने 1980 के दशक में कृषि विस्तार के लिए इस एक्विफ़र का अत्यधिक दोहन किया] जिससे अधिकांश जल स्रोत सूख गए और पानी खारा हो गया। Wikipedia
यमन: जल संकट और संघर्ष
यमन की राजधानी सना में भूजल स्तर प्रति वर्ष 6-8 मीटर तक गिर रहा है। Wikipedia
देश की 90% जल आपूर्ति कृषि पर निर्भर है, जिसमें से 37% केवल “खात” फसल के लिए उपयोग होता है। Wikipedia
भारत] ईरान] सऊदी अरब और यमन जैसे देशों में भूजल संकट अत्यधिक गंभीर है] जो न केवल जल आपूर्ति बल्कि कृषि] खाद्य सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता को भी प्रभावित कर रहा है। जल संरक्षण] सतत कृषि प्रथाओं और प्रभावी जल प्रबंधन नीतियों की तत्काल आवश्यकता है।
भूजल गिरावट की स्थिति भारत में
- उत्तर भारत में 95% भूजल हानि: IIT गांधीनगर के एक अध्ययन के अनुसार, भारत की कुल भूजल हानि का 95% हिस्सा उत्तर भारत में हुआ है। इसका मुख्य कारण अत्यधिक पंपिंग और ट्यूबवेल का अनियंत्रित उपयोग है, जिससे जल स्तर में निरंतर गिरावट आई है। Business Finance News
- पंजाब और हरियाणा में 64.6 बिलियन घन मीटर भूजल की हानि: IIT दिल्ली और NASA के एक संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि 2003 से 2020 के बीच पंजाब और हरियाणा ने 64.6 बिलियन घन मीटर भूजल खो दिया है। यह हानि मुख्य रूप से कृषि] शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण हुई है। The Times of India+1Down to Earth+1
सबसे अधिक प्रभावित राज्य
- पंजाब: राज्य के 79% ब्लॉक्स “अत्यधिक दोहन” की श्रेणी में हैं, जो देश में सबसे अधिक है।
- हरियाणा: यहाँ भी भूजल स्तर में तीव्र गिरावट देखी गई है, विशेषकर गुरुग्राम और फरीदाबाद जैसे शहरी क्षेत्रों में, जहाँ कृषि कम है लेकिन शहरीकरण और औद्योगीकरण अधिक है। Down to Earth
- उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, केरल: इन राज्यों में भी भूजल स्तर में गिरावट दर्ज की गई है, हालांकि पंजाब और हरियाणा की तुलना में यह कम है। Down to Earth
भूजल गिरावट के प्रमुख कारण
- जल-प्रधान कृषि: धान और गन्ने जैसी फसलों की खेती, जो अधिक पानी की मांग करती हैं, विशेषकर पंजाब और हरियाणा में।
- बिजली और पानी पर सब्सिडी: कृषकों को मुफ्त या सस्ती बिजली और पानी की उपलब्धता ने अनियंत्रित पंपिंग को बढ़ावा दिया है।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण: तेजी से बढ़ते शहरों और उद्योगों ने भूजल पर दबाव बढ़ाया है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहाँ सतही जल स्रोत सीमित हैं। Down to Earth
- जलवायु परिवर्तन: अनियमित मानसून और वर्षा की कमी ने भूजल पुनर्भरण को प्रभावित किया है।
भारत में भूजल संकट को लेकर भूजल वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने गहरी चिंता व्यक्त की है। उनके अनुसार यह संकट केवल जल की उपलब्धता तक सीमित नहीं है] बल्कि यह कृषि, खाद्य सुरक्षा] सार्वजनिक स्वास्थ्य और सामाजिक स्थिरता को भी प्रभावित कर रहा है।
वैज्ञानिकों के मतों को समझें कि संकट का दौर है इसलिए समझना जरुरी है।
- भूजल दोहन की वैश्विक तुलना
भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपभोक्ता है, जो वैश्विक भूजल निष्कर्षण का लगभग 25% उपयोग करता है—यह अमेरिका और चीन के संयुक्त उपयोग से भी अधिक है। - कृषि पर अत्यधिक निर्भरता
देश में सिंचाई के लिए 62% और ग्रामीण पेयजल आपूर्ति के लिए 85% भूजल पर निर्भरता है। यह अत्यधिक निर्भरता जलवायु परिवर्तन, अनियमित मानसून और बढ़ती जनसंख्या के कारण संकट को और गहरा कर रही है। - भविष्य की चेतावनी
विश्व बैंक का अनुमान है कि 2025 तक भारत के 60% भूजल ब्लॉक्स “गंभीर” या “अत्यधिक दोहन” की श्रेणी में आ सकते हैं। कुछ क्षेत्रों में यह स्थिति पहले ही उत्पन्न हो चुकी है। - जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के एक अध्ययन के अनुसार, 2041 से 2080 के बीच भारत में भूजल हानि की दर तीन गुना तक बढ़ सकती है, भले ही वर्षा में वृद्धि हो। इसका मुख्य कारण बढ़ते तापमान और सिंचाई की बढ़ती मांग है।
वैज्ञानिकों की चेतावनी
- सतत प्रबंधन की आवश्यकता: वर्तमान नीतियाँ भूजल के सतत उपयोग को सुनिश्चित नहीं कर पा रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि तत्काल प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट खाद्य उत्पादन, ग्रामीण आजीविका और शहरी जल आपूर्ति को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
- नीतिगत सुधार की आवश्यकता: सरकारी नीतियों में सुधार की आवश्यकता है, जैसे कि जल-गहन फसलों के लिए प्रोत्साहन कम करना और जल संरक्षण उपायों को बढ़ावा देना। इसके अलावा, भूजल प्रबंधन में पारंपरिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का समन्वय आवश्यक है। World Bank Blogs
आगामी दस वर्षों में भारत में भूजल संकट की सबसे गंभीर स्थिति पंजाब राज्य में उत्पन्न होने की आशंका है।
पंजाब: भूजल संकट का केंद्र
- अत्यधिक दोहन: 2024 में पंजाब ने अपनी कुल भूजल पुनर्भरण क्षमता का 156% से अधिक पानी निकाल लिया, जो देश में सबसे अधिक है। ThePrint
- तेजी से गिरता जलस्तर: राज्य में भूजल स्तर हर वर्ष औसतन 51 सेंटीमीटर की दर से गिर रहा है। यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो 2045 तक 300 मीटर की गहराई तक का भूजल समाप्त हो सकता है।
- कृषि पर निर्भरता: पंजाब देश के 50% चावल और 85% गेहूं का उत्पादन करता है, जो जल-गहन फसलों की खेती पर आधारित है। इससे भूजल पर अत्यधिक दबाव पड़ता है।
अन्य प्रभावित राज्य
- हरियाणा: यहाँ भूजल दोहन दर 135.74% है, जो पुनर्भरण से कहीं अधिक है। CNBCTV18
- राजस्थान: भूजल दोहन दर 148.77% है, जो गंभीर चिंता का विषय है। CNBCTV18
- उत्तर प्रदेश: कुछ जिलों में, जैसे गाजियाबाद, भूजल दोहन दर 123% तक पहुंच गई है। CNBCTV18
संकट के प्रमुख कारण
- जल-गहन कृषि: धान और गन्ने जैसी फसलों की अत्यधिक खेती।
- शहरीकरण और औद्योगीकरण: तेजी से बढ़ते शहरों और उद्योगों ने भूजल पर दबाव बढ़ाया है। apnews.com
- जलवायु परिवर्तन: अनियमित मानसून और वर्षा की कमी ने भूजल पुनर्भरण को प्रभावित किया है।
भविष्य में भारत के कई प्रमुख शहर “डे ज़ीरो” की ओर बढ़ रहे हैं — यानी वह स्थिति जब शहर में पीने के लिए भी पानी उपलब्ध नहीं रहेगा। यह संकट मुख्यतः भूजल (Groundwater) के तेजी से खत्म होने की वजह से है।
डे ज़ीरो की आशंका वाले प्रमुख भारतीय शहर:
विशेषज्ञों और रिपोर्ट्स के अनुसार, 2030 तक भारत के 21 शहरों में भूजल पूरी तरह समाप्त हो सकता है। ये शहर हैं:
- नई दिल्ली
- बेंगलुरु
- हैदराबाद
- चेन्नई
- जयपुर
- गुड़गांव
- गाजियाबाद
- फरीदाबाद
- लुधियाना
- अमृतसर
- जोधपुर
- आगरा
- कानपुर
- पुणे
- भोपाल
- इंदौर
- नागपुर
- विशाखापट्टनम
- सूरत
- रायपुर
- रांची
स्रोत: नीति आयोग की “Composite Water Management Index Report” (2018), जल शक्ति मंत्रालय और अन्य वैज्ञानिक शोध।
सबसे अधिक संकट में फंसे शहर:
1. चेन्नई
- 2019 में ही 4 प्रमुख जलाशय सूख चुके थे।
- शहर को टैंकरों से पानी मंगवाना पड़ा था।
- जल पुनर्भरण की व्यवस्था बेहद खराब।
2. बेंगलुरु
- 2031 तक पूरी तरह डे ज़ीरो की स्थिति में जा सकता है।
- भूजल 70% से अधिक दोहन की स्थिति में है।
3. नई दिल्ली
- NCR क्षेत्र में हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आने वाले पानी पर भारी निर्भरता।
- अनियंत्रित निर्माण और सीवर लीक से भूजल प्रदूषित।
4. जयपुर
- राजस्थान में पानी की अत्यधिक कमी] जल स्तर हर साल गिर रहा।
5. गुड़गांव और नोएडा
- भूजल दोहन दर 200% से ऊपर, निर्माण कार्य और होटल इंडस्ट्री से दबाव।
देश में तालाब, कुएं, टयूबवेल सूख जाते हैं, पानी बहुत अधिक नीचे चला जाता है। देश में भूजल के पुर्नभरण को लेकर प्लान तो हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन बहुत बेहतर तरीके से नहीं हो पा रहा है। वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम Water Harvesting System को लेकर सरकारी प्रयास भी हो रहे हैं लेकिन इस दिशा में जागरुकता का गहरा अभाव है। सीमेंटेड मार्गों के निर्माण का प्रचलन अधिक होता जा रहा है। शहरों में पहले जिन मार्गों के दोनों बाजू खाली जमीन हुआ करती थी जहां से बारिश का पानी भूजल तक पहुंच जाया करता था लेकिन अब मार्गों के बाजू वाले दोनों हिस्सों पर भी सीमेंटेड कर दिया गया है। संकट को और अधिक करने में विकासवादी योजनाएं भी काफी हद तक दोषी हैं। शहरों की बसाहट के प्लान का व्यवस्थित और दूरगामी न होना भी संकट को गहराने का कार्य कर रहा है।
समाधान और सुझाव
- वर्षा जल संचयन: बारिश के पानी को संग्रहित कर भूजल पुनर्भरण को बढ़ावा देना।
- सटीक कृषि (Precision Agriculture): जल उपयोग को अनुकूलित करने के लिए आधुनिक तकनीकों का उपयोग।
- नीति सुधार: बिजली और पानी पर सब्सिडी की समीक्षा और जल उपयोग पर नियंत्रण।
- जन जागरूकता: भूजल संरक्षण के महत्व पर लोगों को शिक्षित करना।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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Nice article.