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September 2023 पर्वों में प्रकृति

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NOVEMBER 2023 गांव निगलते, बेतरतीब शहर

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Description

बिना प्लास्टिक के एक दिन

सच है कि प्लास्टिक इस संपूर्ण विश्व के लिए चुनौती बनता जा रहा है, उसे पूरी तरह खत्म न कर पाने की कसक और विश्व में उसके उपयोग का बढ़ता ग्राफ चिंता बढ़ाने वाला है लेकिन क्या इसके बीच हम एक छोटा सा प्रयास कर सकते हैं। एक बहुत छोटा सा लेकिन जरुरी प्रयास- केवल एक दिन बिना प्लास्टिक के उपयोग के हमें रहना चाहिए, उस एक दिन हम कतई प्लास्टिक का उपयोग नहीं करेंगे, सिंगल यूज प्लास्टिक तो कतई घर नहीं लाएंगे…।
यह एक शुरुआत हो सकती है, यदि हममें से सभी इसे एक-एक दिन अपनाते हैं तब भी सुधार की एक नई परिभाषा हल्के से ही सही उकेरी जा ही सकती है। सुधार के इन दिनों को जब हम अपनी आदत बनाना चाहें तो उन्हें सप्ताह में तीन और चार दिन फिर पूरे सप्ताह इसे जीवन का हिस्सा बनाने की ओर कार्य करना होगा।
शुरुआत छोटी ही होती है और यहां हम यह भी नहीं कह सकते कि हम नहीं कर पाएंगे क्योंकि बेहद आसान है और बस हमें अपने आपको अनुशासित और चैतन्य रखना होगा। प्लास्टिक का ना कहना होगा और घर में भी प्लास्टिक की वस्तुओं से दूरी बनानी होगी। खैर, साईक्योलॉजी का नियम है कि किसी भी आदत को यदि आप 21 दिन नियमित रख पाते हैं तो वह आपकी आदत बन जाती है और एक बार की ये कठिन परीक्षा हमें बेहतर भविष्य की ओर ले जाने कार्य करेगी।
सच मानिए कि इसके साथ हमें कुछ और भी सुधार करने चाहिए। प्लास्टिक संकट पर आपको रोज अपडेट रहने की आदत डालनी चाहिए, इस समग्र विश्व में हो क्या रहा है, क्या संकट है, कितना है, किस तरह यह बढ़ रहा है, किस तरह इससे बचने की ओर प्रयास हो रहे हैं, किस तरह इसे लेकर नए प्रयोग हो रहे हैं, संकट की गति और सुधार की गति में कितना फासला है….यह सब वह विषय हैं जिन्हें हमें समझने और पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। यकीन मानिए कि आंखें मूंद लेने से हम उस संकट को अपनी ओर आने से रोक नहीं पाएंगे, हम उसे रोक पाएंगे पॉलीथिन फैंकते या पॉलीथिन का उपयोग करते किसी हाथ को रोककर। आंकडे़ डरावने हैं, हालात उससे भी अधिक भयावह, उन मरते हुए जलीय जीवों के बारे सोचिए जिन्हें हमारे इस प्लास्टिक के कचरे ने समय से पहले मार दर्दनाक मौत मार डाला। ऐसे बहुत से उदाहरण हैं…जागिये क्योंकि इससे पहले कि प्लास्टिक हमारे लिए अंतहीन मुश्किल बन जाए उसे खत्म करने के अभियान का हिस्सा बन जाईये।

संदीप कुमार शर्मा,
संपादक, प्रकृति दर्शन

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