Description
प्यास की बिसात पर सूखता बुंदेलखंड
देश में वैसे तो कई राज्य हैं जो जलसंकट को हर वर्ष भोगते हैं लेकिन बुंदेलखंड का दर्द कुछ अलग है, ये क्षेत्र जो कभी अपने पानी, तालाबों के लिए पहुंचाना जाता था अब समय ने इसके चेहरे पर सूखी लकीर खींच दी है। बुंदेलखंड पानीदार से सूखा और प्यासा आखिर कैसे हो गया और इसके कारण क्या थे उन्हें समझना बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन एक और प्रमुख बात है और वह यह कि बुंदेलखंड क्या राजनीति की बिसात पर हर बार और बेहद सहजता से पिट जाने वाला प्यादा बन चुका है जिसका उपयोग केवल चुनावों में जीत तक ही किया जाता है, हर चुनाव में बुंदेलखंड में बिसात पर प्यास ही रहती है, यहां के रहवासियों से पूछियेगा तब वे बताएंगे कि हर चुनाव में वे शब्दों के पानी से खूब लबरेज हो जाया करते हैं लेकिन चुनाव बीतते ही उनके भरोसे का पानी सूख जाता है, अब भरोसे में भी सूखे की तरह दरार पड़ने लगी है। आखिर बुंदेलखंड सूखता रहा और सत्ताएं परिवर्तित कैसे होती रहीं, कभी भी किसी ने भी बुंदेलखंड के भाग्य से सूखे की वह लकीर मिटाकर उसे हरा भरा करने का जिम्मा क्यों नहीं उठाया। बुंदेलखंड राजनीति बिसात पर तो हर बार पराजित सा महसूस करता आया है क्योंकि इसे पूरी तरह पानीदार बनाने के वायदे कभी भी जमीनी हकीकत में परिवर्तित नहीं हो पाए हैं। एक और महत्वपूर्ण कारण है क्योंकि यहां तालाबों वाले हिस्सों पर अतिक्रमण भी एक अहम मुददा है। बहरहाल बुंदेलखंड वह भोग रहा है जो उसके हिस्से आ गया है, लेकिन क्या ये जलसंकट केवल बुंदेलखंड तक है, नहीं ये पूरे देश के अनेक राज्यां का मुख्य संकट साबित होता जा रहा है, हालात बिगड़ते जा रहे हैं, मौसम साथ नहीं दे रहा, तालाब नहीं हैं, जहां हैं तो उनका रखरखाव नहीं हो पाता है, ये कहा जा सकता है कि संकट महासंकट की ओर अग्रसर है और हमारे प्रयास मुट्ठी भर हैं जिन्हें बहुत बड़े स्वरूप में अब तक परिवर्तित हो जाना था। हम इस अंक में महासंकट को उठा रहे हैं, बुंदेलखंड के साथ उसकी तरह तैयार होते देश के दूसरे हिस्सों को हमने इसमें शामिल करने का प्रयास किया है, मूल ये है कि हम संकट से जनसामान्य को अवगत कराना चाहते हैं, उनमें जागरुकता लाना चाहते हैं साथ ही नीति नियंताओं तक भी एक संदेश देना चाहते हैं कि ऐसे हिस्सों के लिए जल्द महत्वपूर्ण प्रयास आरंभ हों, सूखते हिस्से, सूखते राज्य, सूखते लोग और सूखता देश कभी भी विकास की कोई गाथा नहीं लिख सकता…आईये बदलने के लिए एक जुट होकर इस दिशा में कार्य करने का संकल्प लेते हैं और लिखिये अपने तंत्र को कि उन्हें पानी चाहिए, तालाब चाहिए, तालाबों का रखरखाव चाहिए और चाहिए एक पानीदार भविष्य।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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