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February 2023 ज़ार-ज़ार पहाड़

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April 2023 गौरेया

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March 2023 खरे-खरे अनुपम मिश्र

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प्रकृति भी जानती है कि अनुपम जैसा कोई पुत्र सदियों में जन्मता है लेकिन अनुपम के विचार से असंख्य अनुपम शिराएं अंकुरित हो सकती हैं…। अगर हम यह मानें कि प्रकृति एक अध्याय है तो हमें उसे संक्षिप्त में नहीं पढ़ना चाहिए, उसे विस्तार से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। उसके मूल को महसूस करने और उसके मूल से जुड़े मानव जीवन के अनिवार्य बिंदुओं पर भी गहन होना जरुरी है। प्रकृति को परिभाषित करना आसान भी है और कठिन भी लेकिन इसे केवल परिभाषित ही नहीं करना है इसे सृजित और संरक्षित भी करना है। प्रकृति के हर तत्व पर संकट है और कारण मानव की भयंकर भूलों के इर्दगिर्द आकर ठहरता है। हमें भरोसा है कि हमारी वर्तमान पीढी ने जो कुछ भी अनुपम मिश्र जी से सीखा है, समझा है उसका अंकुरण भविष्य में अवश्य होगा…।

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Description

अनुपम के विचारों से अंकुरित हो सकती हैं असंख्य अनुपम शिराएं

दोस्तों यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि पत्रिका ‘प्रकृति दर्शन’ ने पांच वर्ष पूर्ण कर लिए हैं, वर्ष 2018 से प्रकृति संरक्षण की दिशा में यह सफर आरंभ हुआ जो 2023 तक आ पहुंचा है…। यह पांच वर्ष बेहद कठिन रहे, सिखाने वाले, पढ़ाने वाले, प्रकृति की जटिलतम स्थितियों पर मंथन से भरे, चिंता और चिंतन से परिपूर्ण…और भी बहुत कुछ। खैर, हमें खुशी है कि प्रकृति पर हम सभी का यह समर्पण एक दिशा तय कर रहा है।
यह अंक बेहद खास है और इसीलिए हमने यह महत्वपूर्ण अंक पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र जी के जीवन और कार्यों पर केंद्रित है। अनुपम मिश्र हो जाना एक साधना है, तप है और ऐसी साधना जिसमें अपने लिए कुछ भी नहीं, जो सोचा, किया, रचा, उकेरा, समझा, समझाया, पढ़ा, पढ़ाया, जीया प्रकृति के लिए। वे सहजता से पानी पर उसी के संकट के हल को परिभाषित कर गए। हम खुशनसीब हैं जो हमारे दौर ने अनुपम मिश्र देखे और उनके कर्मपथ को भी देखा है। अक्सर ज्ञान की गहराई हमें अंदर से सख्त बनाती जाती है, लेकिन अनुपम मिश्र गहरे होते गए, वे सरल और सहज ही रहे। उन्हें पढ़कर आप पाएंगे कि उनका कर्म कहता है प्रकृति एक जरुरी कर्तव्य है जिसका निर्वहन बिना किसी लोभ, लालच या प्रचार के होना चाहिए, उतनी ही खामोशी से जितनी खामोशी से प्रकृति आपको सदियों देती रही, सींचती रही, पल्लवित करती रही, आपको पोषित करती रही, लेकिन विकास की बेसुरी धुन कहीं कर्कश इरादों से प्रकृति को आहत कर गई। हमें समझना होगा कि प्रकृति का हरेक तत्व महत्वपूर्ण है, साथ ही महत्वपूर्ण है हमारा प्रकृति के प्रति समर्पण, निष्ठा और भरोसा। हमारा मत है कि अनुपम मिश्र जी को अधिक से अधिक पढ़ें ताकि हम भविष्य में अपने बच्चों में उनके विचारों का अंकुरण कर पाएं और प्रकृति को कुछ और अनुपम सी सौगात हम दे सकें। प्रकृति भी जानती है कि अनुपम जैसा कोई पुत्र सदियों में जन्मता है लेकिन अनुपम के विचार से असंख्य अनुपम शिराएं अंकुरित हो सकती हैं…।
अगर हम यह मानें कि प्रकृति एक अध्याय है तो हमें उसे संक्षिप्त में नहीं पढ़ना चाहिए, उसे विस्तार से समझने और आत्मसात करने की आवश्यकता है। उसके मूल को महसूस करने और उसके मूल से जुड़े मानव जीवन के अनिवार्य बिंदुओं पर भी गहन होना जरुरी है। प्रकृति को परिभाषित करना आसान भी है और कठिन भी लेकिन इसे केवल परिभाषित ही नहीं करना है इसे सृजित और संरक्षित भी करना है। प्रकृति के हर तत्व पर संकट है और कारण मानव की भयंकर भूलों के इर्दगिर्द आकर ठहरता है। हमें भरोसा है कि हमारी वर्तमान पीढी ने जो कुछ भी अनुपम मिश्र जी से सीखा है, समझा है उसका अंकुरण भविष्य में अवश्य होगा…।
हम आश्वस्त करवाना चाहते हैं कि प्रकृति दर्शन, पत्रिका ऐसे ही गहन और गंभीर विषयों पर प्रेरक विचारों और प्रेरक सुझावों के साथ सतत प्रयासरत रहेगी कि हम अनुपम विचारों से खरी-खरी भावी पीढ़ी तैयार कर सकें जो विकास के पथभ्रमित होते ही चेताने की हिम्मत जुटाए और उसे सही पथ पर लाने का मार्ग भी सुझाए।
हमारी पूरी संपादकीय टीम, सहयोगियों, पाठकों, लेखक साथियों, फोटोग्राफर साथियों का आभार…जिनके सतत प्रयासों से हम यह पांच वर्ष का सफर तय कर बेहतर की ओर अग्रसर हो पाए।

संदीप कुमार शर्मा,
प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

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