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August 2024 बारिश वाला बचपन

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October 2024 बात फूलों की

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September 2024 इन्हें खोने न दें

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भौतिकवादी विचारधारा ने पक्षियों और जीवों के घर छीनने आरंभ कर दिए। हमने शहर बसाए और जंगल काटे, हमने जमीन के लिए तालाब और नदियों के हिस्सों को खुदगर्जी से पाटना आरंभ कर दिया। हमने नदियों की दिशा मोढ़नी आरंभ कर दी। हमने जलचरों की परवाह किए बिना नदियों में प्रदूषण वाला काली पानी बहाना आरंभ कर दिया, हमने पक्षियों की जान ले ली क्योंकि हमने खेतों में खतरनाक रसायनों का उपयोग करना आरंभ कर दिया। ऐसे ही हमने पक्षियों के घरोंदे छीने और उन्हें बेघर कर दिया। कैसे कहें कि हम विकास के दीवाने होकर वन्य जीवों, जन्तुओं का विनाश नहीं कर रहे हैं। हमने स्वार्थवश समुद्र के गर्भ में प्लास्टिक ठूंसना आरंभ कर दिया। हमने जलचरों के फेफड़ों को प्लास्टिक से भर दिया। हमने उनसे उनकी जल की निर्मलता छीनी और उनके जीवन में प्लास्टिक और ई कचरा ठूंस दिया।

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Description

तब हम खौफनाक दुनिया के वाशिंदे हो जाएंगे

सोचिएगा कि हमारे बच्चे की कोई प्रिय वस्तु खो जाए और वह कभी न मिले, हमें ये पता हो कि वह वस्तु उस बच्चे के लिए बहुत जरुरी है और उसके बिना बच्चा उदास हो जाए, रोने लगे और कई दिनों तक खुश न हो, हम उसके साथ दुखी हो जाएंगे और पूरा प्रयास करेंगे उस गलती को सुधारें और तत्काल उसे वही, वैसी की वैसी दूसरी वस्तु लाकर दे दी जाए या प्रयास करेंगे कि उससे मिलती जुलती कोई वस्तु दे दी जाए। ये भी सोचें कि कोई हमारा प्रियजन हमसे हमेशा के लिए बिछुड़ जाए तो संभव है कि हम कई दिनों, महीनों और सालों तक उसे याद रखेंगे, उसकी याद में रोएंगे और उदास हो जाएंगे, फिर उसकी कोई तस्वीर अपने घर में सबसे प्रमुख स्थान पर लगाएंगे। यह जो राग और अनुराग है यह हमारे अंदर है, हमारे परिवार के लिए है, हमारे स्नेहीजन के लिए है लेकिन यदि मैं कहूं कि यह आत्मीयता वन्य जीवों, प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य, तत्वों को लेकर क्यों नहीं है? तो इस बात का शायद काफी लोगों के पास कोई जवाब नहीं होगा।
सोचिएगा कि हमने अब तक कितने खूबसूरत जीव और जन्तुओं को उनका संसार देखे बिना ही खो दिया है, हम उन्हें गाहे बगाहे तस्वीरों में देखते होंगे। उनकी आकृतियों, रंग, बनावट या कोई और खूबी को देखकर हम निशब्द हो जाते होंगे? लेकिन अगला ही सवाल यह है कि आखिर हममें वन्य जीवों, पक्षियों, पौधों, फूलों और ऐसे ही प्रकृति के अन्य आवश्यक तत्वों को लेकर यही खिंचाव क्यों नहीं है? हमें कोई फर्क क्यों नहीं पडता कि कोई जीव इस दुनिया से हमेशा के लिए खो गया, कोई कीट सालों पहले दिखता था अब नजर नहीं आता, हमने यह भी जानने की कोशिश नहींं की कि यदि कोई जीव, कीट या पौधों हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा तो उसका मानव जीवन पर कितना प्रतिकूल असर पडे़गा ? हमने ऐसा कोई प्लान नहीं बनाया कि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि भविष्य में कोई जीव, कोई जन्तु, कोई पक्षी, कोई जलचर, कोई पौधा खत्म नहीं होगा। हमारे पास ऐसा कोई भरोसेमंद प्लान नहीं है, न ही कोई ऐसी विचारधारा है, न कोई मंथन है और न ही कोई चिंतन है और तो और हमारे पास तो ऐसे जरुरी विषयों पर गंभीर और सुधारवादी बात करने के लिए समय तक नहीं है। खत्म होते देख भी हम अंजान बने इस बात की परवाह तक नहीं कर रहे हैं।
प्रकृति कुछ जीवों को स्वयं अपनी उम्र पूरी होने पर खत्म करती है लेकिन वह उसका अपना तरीका है लेकिन वह करोड़ों वर्ष का ठोस और सुनियोजित प्लान है लेकिन जैसे ही मानव इस सिस्टम में दाखिल हुआ तब से बहुत सा बेतरतीब ढंग से बदलने लगा। भौतिकवादी विचारधारा ने पक्षियों और जीवों के घर छीनने आरंभ कर दिए। हमने शहर बसाए और जंगल काटे, हमने जमीन के लिए तालाब और नदियों के हिस्सों को खुदगर्जी से पाटना आरंभ कर दिया। हमने नदियों की दिशा मोढ़नी आरंभ कर दी। हमने जलचरों की परवाह किए बिना नदियों में प्रदूषण वाला काली पानी बहाना आरंभ कर दिया, हमने पक्षियों की जान ले ली क्योंकि हमने खेतों में खतरनाक रसायनों का उपयोग करना आरंभ कर दिया। ऐसे ही हमने पक्षियों के घरोंदे छीने और उन्हें बेघर कर दिया। कैसे कहें कि हम विकास के दीवाने होकर वन्य जीवों, जन्तुओं का विनाश नहीं कर रहे हैं। हमने स्वार्थवश समुद्र के गर्भ में प्लास्टिक ठूंसना आरंभ कर दिया। हमने जलचरों के फेफड़ों को प्लास्टिक से भर दिया। हमने उनसे उनकी जल की निर्मलता छीनी और उनके जीवन में प्लास्टिक और ई कचरा ठूंस दिया। कैसे हम अंजान बनने का नाटक कर सकते हैं, माफ कीजिए जो जीव-जन्तु, पक्षी, जलचर, पौध प्रजातियां खत्म होने की ओर अग्रसर हैं वह इस प्रकृति की मर्जी से खत्म नहीं हो रहे हैं, यह मानव की जिद और सनक की भेंट चढ़ रहे हैं। हमने प्रकृति के गले को घोंटना आरंभ कर दिया है, हमने उससे उसकी निर्मलता और भरोसा तार तार किया है, हमने उससे स्वतः ही नाता तोड़ा है। सोचिएगा कि जो खो गए और जो खाने की कगार पर है क्या हम अपने इस जीवन में एक बार भी देख पाए हैं, शायद हममें से बहुत बड़ी भीड़ को लगता होगा कि यह उनके लिए जरुरी नहीं है लेकिन यहां यह कहना चाहूंगा कि मानव प्रकृति के हर तत्व से जुड़़ा है और उसके किसी भी तत्व के बिना उसका अस्तित्व नहीं है इसलिए उसे सभी की परवाह करनी होगी, सभी को बचाने की चिंता करनी होगी। समय बीत रहा है, तेजी से ये यूं ही विलुप्त होते गए तो यकीन मानिए कि हम एक ऐसी सूखी और खौफनाक दुनिया के वाशिंदे हो जाएंगे जहां केवल हमारे और इस उजड़ी हुई प्रकृति के कोई और नहीं होगा। समय निकालिए और पता कीजिए कि हमने अब तक क्या खो दिया, वह कैसा था, कैसा दिखता था, क्यों खत्म हो गया और क्या जो खत्म हो रहे हैं उन्हें दोबारा सुरक्षित रखने की कोई कवायद हो सकती है, सोचिएगा अवश्य।

संदीप कुमार शर्मा, प्रधान संपादक,
प्रकृति दर्शन, राष्ट्रीय मासिक पत्रिका

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