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जंगलों के साथ दांव पर विश्व का भविष्य

जंगलों के साथ दांव पर विश्व का भविष्य

कभी सोचिएगा कि जंगल के बिना हमारी ये धरती कितनी खौफनाक हो जाएगी, उससे भी अधिक चिंता की बात यह है कि जंगल कटेंगे तो जीवन कहां और कैसे पनपेगा। जंगलों को लेकर वैश्विक चिंता गहराती जा रही है। हकीकत तो यह है कि जंगलों के साथ ही दांव पर विश्व का भविष्य भी है। तापमान के बढ़ने के कारण आग जंगलों के नुकसान का बड़ा कारण है, इसके अलावा विकास के नाम पर जंगलों का सफाया हमारे भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। अब तक ऐसा होता आया है कि विकास के नाम पर जंगलों को बेरहमी से काट दिया जाता है। यह भी कड़वा सच है कि हम प्रकृति को संरक्षित करते हुए विकास को समझने और परखने की परिपाठी समझना ही नही चाहते। सोचने का विषय यह भी है कि काटे तो असंख्य वृक्ष जाते हैं लेकिन उनकी जगह लगाए गए पौधे क्या उन वृक्षों की भूमिका निभा सकते हैं क्योंकि उन्हें पौधों से वृक्ष बनने में काफी साल लगते हैं और उस समय में पर्यावरण की स्थितियों को बिगड़ने से कौन रोक सकता है। इस पर गंभीरता से विचार आवश्यक है। जंगलों और वृक्षों की कटाई पर हमें मानवीय होकर सोचने की आवश्यकता है क्योंकि जंगल कटने या नष्ट होने का आशय है कि जैव विविधता के साथ वन्य जीवों का जीवन भी गहरे संकट में उलझता जा रहा है और यह संकट भविष्य का महासंकट बनकर सामने आएगा। हम बीते वर्षों में देखें तो समझ सकेंगे कि हम कितना खो चुके हैं और कितना अधिक सहेजने की आवश्यकता है। बात जंगलों की सुरक्षा की हमेशा से उठती रही है लेकिन वर्तमान में हैदराबाद के कांचा गाचीबोवली क्षेत्र के 400 एकड़ भूमि पर आईटी पार्क विकसित करने की योजना की खबर ने चिंता की लकीरें और अधिक गहरी कर दीं, पर्यावरण के जानकारों का मानना है कि यह स्थान वन्य जीवों और जैव विविधता के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। फिल्हाल यहां राहत है क्योंकि मामला सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है और कटाई पर रोक लगा दी गई है।

योजनाओं में विकास को ही सर्वोपरि रखा जाता है

ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है कि विकास के लिए वृक्षों से भरे हुए जंगल को काटने की योजना बनी हो इससे पहले भी यह हो चुका है। विकास जहां से भी गुजरता है वहां प्रकृति का विनाश तय होता है। दूरगामी योजना मानव जीवन को बेहतर बनाने, सुविधाएं प्रदान करने सहित रोजगार को देखते हुए बनाई जाती हैं लेकिन योजनाओं में विकास को सर्वोपरि रखा जाता है और प्रकृति मौजूदा समय में और आने वाले वर्षों में उससे कितनी बाधित होगी इसका आकलन अब भी मानवीय होकर नहीं किया जाता है। देश दुनिया में सड़कों के लिए वृक्ष काट दिए जाते हैं, काटे तो वृक्ष जाते हैं लेकिन उसकी जगह डिवाइडर पर पौधे रोपे जाते हैं क्या डिवाइडर के पौधे उन सालों से जमे हुए वृक्षों की जगह ले सकते हैं। जंगल को लेकर हमारा रवैया मानवीय नहीं रह गया है तभी तो जंगल में आग के पीछे मानव के निजी हित भी उजागर होते रहे हैं। मध्यप्रदेश में कुछ वर्ष पूर्व बक्सवाहा के जंगल पर भी संकट गहराया था, कारण था वहां पर जंगल के हिस्से की स्केनिंग के बाद पता चला था कि वहां हीरे हो सकते हैं। इसके बाद हीरे निकाले जाने की योजना बनाई गई और इसके लिए जंगल काटने की तैयारी हो गई, लेकिन क्षेत्रवासियों और पर्यावरण से जुडे़ लोगों की सक्रियता और समय से उठे विरोध के बाद यहां जंगल काटने पर रोक लगा दी गई थी।

प्रकृति का केवल दोहन किया है

थोड़े से फायदे के लिए जंगल में आग लगा दी जाती हैं। तापमान बढ़ने के कारण भी जंगलों में आग लगती है लेकिन उसके मूल में भी मानव ही तो है। तापमान 48 से 50 डिग्री पहुंच रहा है कारण साफ है कि हमने प्रकृति का केवल दोहन किया है उसकी चिंता नहीं की है। चिंता की होती तो तापमान नियंत्रित करने की ओर मिलकर कार्य किया जाता लेकिन दुनिया भर के पर्यावरणविदों के माथे पर चिंता की लकीरें हैं कि आखिर ऐसे कैसे धरती को और अधिक तपने से रोका जा सकेगा। तापमान में वृद्वि केवल भविष्य ही नहीं एक दिन मानव के अस्तित्व को भी खाक करके रख देगी।

आंकडे़ डराने वाले हैं

वैश्विक वनों की कटाई के आंकड़े डराने वाले हैं। यदि हम इन्हें समझने का प्रयास करेंगे तो हमारे माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो जाएंगी। ऐसा जानकारी है कि हर साल दुनिया भर में लगभग 10 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो जाता है, जो प्रति मिनट 27 फुटबॉल मैदानों के बराबर है। 1990 के बाद से, लगभग 420 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो चुका है, जिससे जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन पर गंभीर प्रभाव पड़ा है।

विश्व चिंतित है जंगल में आग की घटनाओं से

श्विक तौर पर देखें तो जंगलों पर संकट सभी की चिंता है विकास के नाम पर जितना जंगल काटा गया है उसकी जगह जंगल विकसित करने की गति बहुत धीमी है। जंगलों के कटने से होने वाले नुकसान को लेकर जागरुकता का स्तर और भी अधिक चिंता बढ़ाने वाला है। हम दुनिया में हुई घटनाओं पर नजर डालें तो पता लगेगा कि कितना खो चुके हैं। अमेजन के वर्षावन में वर्ष 2019 में जब आग लगी थी तब पूरी दुनिया चिंतित हो उठी थी क्योंकि अमेजन के जंगल सबसे अधिक ऑक्सीजन देने वाले जंगल के तौर पर पहचाने जाते हैं। वर्ष 2019 ही देखें तो ब्राजील, पेरू, कोलंबिया, पराग्वे, बोलीविया में इन अमेजन के वर्षावन में 40 हजार आग की घटनाएं दर्ज की गई थीं। ऐसा आकलन था कि इन आग की घटनाओं से लगभग 906,000 हेक्टयेर वन क्षेत्र नष्ट हो गया था। यहां चिंता की बात यह भी है कि यहां अधिकांश आग की घटनाओं में मानव हित जुड़े हुए थे। इन घटनाओं ने जैव विविधता को गहरे संकट में डाला और सबसे अधिक चिंता की बात यह भी रही कि आग लगने के कारण इन हिस्सों में कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के उत्सर्जन में वृद्वि हो गई और यही कारण था कि क्षेत्र की जैव विविधता संकट में आ गई।

ये भी घटनाएं चिंता बढ़ा गईं

1988 में येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान में 250 अलग-अलग आग की घटनाएं हुईं, जो मिलकर पार्क के 793,880 एकड़ क्षेत्र में फैल गईं। इन आग की घटनाओं के पीछे का मुख्य कारण सूखा और तेज़ हवाएं बताई गई थीं। इन आग की घटनाओं से पार्क की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा।
विक्टोरिया राज्य में 2025 में 320,434 हेक्टेयर क्षेत्र में आग लगी। जो 2019-2020 के ’ब्लैक समर’ के बाद सबसे गंभीर था। इनका मुख्य कारण बिजली गिरना था जिसमें लिटिल डेजर्ट नेशनल पार्क और ग्रैम्पियन्स में बड़े पैमाने पर आग लगी।
स्कॉटलैंड के ग्लेनट्रूल, गैलोवे में अप्रैल 2025 में बड़े पैमाने पर जंगल की आग फैली, जो लोच डून की ओर बढ़ी। अग्निशामकों ने हेलीकॉप्टर की मदद से आग बुझाने का प्रयास किया। यह आग क्षेत्र की जैव विविधता और वन्यजीवों के लिए गंभीर खतरा बनी।
इंग्लैंड के प्राकृतिक भंडार में भी आग लगी। अप्रैल 2025 में डोर्सेट के अप्टन हीथ और कैनफोर्ड हीथ में आग लगी जिससे 40 एकड़ से अधिक हीथलैंड नष्ट हो गया और सैंड लिज़ार्ड और डार्टफोर्ड वार्बलर जैसी संरक्षित प्रजातियों के सैकड़ों जानवर मारे गए।
साइबेरिया के टैगा क्षेत्र में 2003 में लगी आग ने लगभग 47 मिलियन एकड़ (लगभग 19 मिलियन हेक्टेयर) भूमि को प्रभावित किया। यह अब तक की सबसे बड़ी जंगल की आग के तौर पर दर्ज की गई है। इस आग से वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित हुई जिससे वैश्विक जलवायु पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
चीन के हेइलोंगजियांग प्रांत और सोवियत संघ के सुदूर पूर्वी क्षेत्र में मई 1987 में आग लगी, जिसने लगभग 2.5 मिलियन एकड़ (लगभग 1 मिलियन हेक्टेयर) वन क्षेत्र को नष्ट कर दिया।
अगस्त 1910 में इडाहो और मोंटाना के जंगलों में अगस्त 1910 में आग लगी। इस आग ने लगभग 3 मिलियन एकड़ (लगभग 1.2 मिलियन हेक्टेयर) भूमि को जलाकर राख कर दिया। इसे अमेरिकी इतिहास की सबसे बड़ी जंगल की आग में से एक माना जाता है।

वन्य जीवों पर जंगलों के कटने का प्रभाव

भारत में भी स्थितियां चिंतित करने वाली हैं। तीन दशकों की वनों की कटाई को देखें तो 1990 से 2020 के बीच भारत ने लगभग 6,68,400 हेक्टेयर वन क्षेत्र खो दिया है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में वनों की कटाई की दर में वृद्वि हुई है इसका मुख्य कारण बढ़ती हुई जनसंख्या और शहरीकरण को माना जा रहा है। ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच के अनुसार 2001 से 2022 के बीच भारत ने 23.3 लाख हेक्टेयर वृक्षावरण खो दिया है। इस अवधि में 4,14,000 हेक्टेयर आर्द्र प्राथमिक वन नष्ट हुए। पूर्वोत्तर राज्यों में वनों की हानि बढ़ी है। यह भी माना जा रहा है कि जंगलों के कटने का प्रभाव वन्य जीवों पर पड़ा है, उनके घरों के उजड़ने के कारण उनका प्रवेश शहरी हिस्सों में बढ़ा है और जीव और मनुष्य दोनों के ही लिए चिंता का विषय है।
वन चाहें काटे जाएं या फिर उनमें आग लगे इसका नुकसान हर हाल में प्रकृति को ही अधिक है, लेकिन यह भी सच है कि प्रकृति आहत होगी तो मानव भी संकट की उस जद से अधिक समय तक बाहर नहीं रह पाएगा। सभी को विचार करना चाहिए कि आखिर जंगलों को कैसे बचाएं, ताकि बच सकें जीव, जीवन और भविष्य की उम्मीदें।

संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन

संदर्भः
ThePrint,The Indian Express, Wikipedia,heraldsun,The Guardian,Latest news & breaking, headlines, Earth.Org, WorldAtlas, Al Jazeera, Down to Earth, The Hindu

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