Prakriti Darshan | Nature & Environment News | 12 July 2025
बाघ और तेंदुए दोनों ही हिंसक हैं और जंगल ही उनका घर है, जब भी वे मानव आबादी वाले हिस्से में आते हैं तो हमले और जनहानि की खबरें सुनाई देती हैं। लेकिन विचारणीय प्रश्न यह भी है कि वे जंगल से बाहर मानव आबादी में आ ही क्यों रहे हैं ? क्या जंगल में छोटे जीवों की कमी हो रही है जो इन हिंसक वन्य जीवों का पेट भरा करते थे या पानी की उपलब्धता जंगलों में घट रही है? हम मानव आबादी में हमलों पर चिंतित हों यह सही है लेकिन उसके मूल कारण भी भी जाएं कि जंगल ही समृद्व हो जाएंगे तो यह वन्य जीव हमारी आबादी नहीं आएंगे। “Tigers and Leopard”
विचारणीय प्रश्न तो हैं कि आखिर हिंसक होकर हमारी आबादी की ओर क्यों आ रहे हैं? बाघ और तेंदुओं के शिकार पर नजर रखी जाए लेकिन उन पर भी बात हो जो जंगल से आबादी आए और शिकार हो गए। “Tigers and Leopard”
उत्तराखंड में बाघ के हमलों से अधिक लोगों की मौतें हुई हैं या तेंदुए के हमलों से?
वर्ष 2014 से 2024 तक 68 लोगों की मौत बाघों के हमले में हुई जबकि 214 लोगों की जान तेंदुओं के हमले में गई (उत्तराखंड वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार)। यानि तेंदुए का खतरा कहीं ज्यादा है, हालांकि बाघों को अधिक आक्रामक माना जाता है।
10 वर्षों (2014–2024) में बाघ और तेंदुए के हमलों का तुलनात्मक डेटा “Tigers and Leopard”
वर्ष बाघ से मौतें तेंदुए से मौतें
2014–2024 68 214
(स्रोत: उत्तराखंड वन विभाग, समाचार एजेंसियां)
उत्तराखंड के किन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा हमले हुए?
पौड़ी
रुद्रप्रयाग
टिहरी
अल्मोड़ा
नैनीताल
रामनगर (कॉर्बेट क्षेत्र)
यह क्षेत्र वन क्षेत्रों के समीप हैं, जहां मानव और वन्यजीव संपर्क अधिक होता है।
जंगलों में छोटे शिकार की कमी का तेंदुए और बाघों पर क्या प्रभाव पड़ा? “Tigers and Leopard”
वन क्षेत्रों में चीतल, सांभर, जंगली सूअर जैसे शिकार की संख्या घटने से बाघ और तेंदुए भोजन की तलाश में गांवों की ओर आ रहे हैं। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) की घटनाएं बढ़ रही हैं।
उत्तराखंड वन विभाग क्या प्रयास कर रहा है? “Tigers and Leopard”
क्विक रिस्पॉन्स टीम (QRT) का गठन
ड्रोन कैमरे, ट्रैप कैमरा, पिंजरा, ट्रैंक्विलाइज़र गन से लैस टीमें
“लिविंग विद लेपर्ड्स” प्रोजेक्ट – फेंसिंग, ट्रेंच, सामुदायिक जागरूकता
हॉटस्पॉट क्षेत्रों में निगरानी व डेटा एनालिसिस सेल
सिर्फ मानव-वन्यजीव संघर्ष के समाधान हेतु (₹23.74 करोड़ का बजट) (2018-23)
44 तेंदुओं व 8 बाघों को पकड़ा गया या पुनर्वास किया गया (2024 तक)
अन्य राज्यों की स्थिति क्या है?
महाराष्ट्र: 2023-24 में बाघ से 39 मौतें, तेंदुए से 15 मौतें (चंद्रपुर, नाशिक, पुणे प्रमुख क्षेत्र)
कर्नाटक: 2013-24 में 332 हाथी, 32 बाघ, 33 तेंदुए के हमलों से मौत
छत्तीसगढ़: हाथियों से 270+ मौतें पिछले 10 वर्षों में
गुजरात: गिर क्षेत्र में तेंदुए और शेरों के हमलों में दर्जनों मौतें
उत्तर प्रदेश: बहराइच में भेड़ियों से हमले; तेंदुए की घटनाएं पीलीभीत-लखीमपुर में
2024 में ओडिशा: हाथियों के हमले में 68 लोग मारे गए
चिंता का विषय भी यह भी है
बाघ हो या तेंदुए दोनों के ही हमलों के कारण जनहानि हो रही है, लेकिन दूसरा पक्ष भी है। भूख और प्यास के अभाव में ये वन्यजीव आबादी वाले हिस्सें में दाखिल हो रहे हैं जहां इनकी भी मौत हो रही है। चिंता का विषय भी यह भी है।
शहरी या आबादी वाले क्षेत्रों में जाने से बाघ और तेंदुए मारे जा रहे हैं, भारत में शहरी क्षेत्रों या मानव बस्तियों में प्रवेश करने के कारण पिछले 10 वर्षों (2014–2024) में सैकड़ों तेंदुए और दर्जनों बाघ मारे गए। इनकी मौतों का कारण सड़क दुर्घटनाएं, करंट लगना, मानव हमले, और कुछ मामलों में जहर देना रहा है।
स्रोत: (वन विभाग की रिपोर्ट्स, PIB, समाचार पत्र, WPSI, TOI, Mongabay India, Wildlife SOS)
किन क्षेत्रों में सबसे अधिक घटनाएं हुईं? “Tigers and Leopard”
विदर्भ (महाराष्ट्र) – सबसे अधिक बाघ व तेंदुए की मौतें, खासकर चंद्रपुर, नागपुर, ब्रह्मपुरी क्षेत्रों में।
रामनगर व अल्मोड़ा (उत्तराखंड) – तेंदुओं द्वारा मानव पर हमले के बाद मार गिराया गया।
बांदीपुर और मैसूर के आसपास (कर्नाटक) – बाघ खेतों में घुसने पर मारे गए।
गुरुग्राम और फरीदाबाद (हरियाणा) – हाईवे पर तेंदुओं की मौतें।
बिजनौर, पीलीभीत (उत्तर प्रदेश) – गन्ने के खेतों से निकलकर ग्रामीण क्षेत्रों में तेंदुए मारे गए।
इन मौतों के प्रमुख कारण क्या हैं?
1. वन क्षेत्र का सिकुड़ना – जंगलों की कटाई और अतिक्रमण के कारण बाघ-तेंदुए शहरी सीमाओं तक आ जाते हैं।
2. (सड़कें और राजमार्ग) – रेलवे ट्रैक और हाईवे जंगलों से होकर गुजरते हैं, जिससे जानवर टकरा जाते हैं।
3. करंट युक्त तार – खेतों को जंगली जानवरों से बचाने के लिए लगाए गए करंट वाले तार इनकी जान ले लेते हैं।
4. जहर और ग्रामीण हिंसा – हमला करने के बाद ग्रामीण बदले में जहर या डंडों से जानवर को मार देते हैं।
5. भोजन और पानी की कमी – गर्मियों में पानी की तलाश में ये जानवर गांव की ओर चले आते हैं।
(FAQs) “Tigers and Leopard”
- 2014 से 2024 तक उत्तराखंड में कितने लोग तेंदुए और बाघ के हमले में मारे गए?
तेंदुए से 214 और बाघ से 68 लोग मारे गए। - सबसे अधिक घटनाएं किन जिलों में हुईं?
पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, रामनगर, अल्मोड़ा और नैनीताल। - क्या जंगलों में शिकार की कमी इन हमलों का कारण है?
हां, छोटे शिकार की कमी से ये शिकारियों को गांवों की ओर खींच रही है। - ‘लिविंग विद लेपर्ड्स’ योजना क्या है?
यह योजना फेंसिंग, समुदाय जागरूकता, और तेंदुए की निगरानी से संघर्ष को कम करने के लिए है। - क्या सरकार पीड़ितों को मुआवजा देती है?
हां, उत्तराखंड सरकार प्रति मृतक ₹5 लाख तक मुआवजा देती है। - क्या बाघों को पकड़ा जा रहा है?
जी हां, 2024 में 8 बाघों को सुरक्षित पकड़ा गया। - वन विभाग के पास क्या संसाधन हैं?
ट्रैंक्विलाइज़र गन, ड्रोन कैमरे, ट्रैप कैमरे, QRT टीमें। - क्या अन्य राज्यों में भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं?
हां, महाराष्ट्र, कर्नाटक, ओडिशा, यूपी और छत्तीसगढ़ में घटनाएं बढ़ रही हैं। - क्या केवल तेंदुए ही हमले कर रहे हैं?
नहीं, हाथी, भालू, भेड़िए जैसे अन्य जानवर भी हमलों में शामिल हैं।
(FAQs)
- क्या हमलों में वृद्ध और महिलाएं ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं?
हां, क्योंकि वे जंगलों के पास जलाऊ लकड़ी और चारा लेने जाते हैं। - क्या कैमरा ट्रैप्स मददगार साबित हो रहे हैं?
हां, इनसे जानवरों की गतिविधियों पर नजर रखी जाती है। - क्या यह समस्या जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है?
आंशिक रूप से, क्योंकि सूखे और वर्षा के पैटर्न बदलने से वन्यजीवों का व्यवहार भी बदल रहा है। - क्या ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चल रहे हैं?
हां, ‘जंगल मित्र’ जैसी योजनाएं ग्रामीणों को ट्रेन कर रही हैं। - क्या तेंदुए को तुरंत मार दिया जाता है?
नहीं, जब तक वह ‘आदमखोर’ घोषित न हो जाए, उसे पकड़कर जंगल में छोड़ा जाता है। - क्या दीर्घकालिक समाधान संभव है?
हां, यदि वन क्षेत्र सुरक्षित रहें, शिकार उपलब्ध हो और मानव हस्तक्षेप कम हो। - क्या वन्य जीवों की मौतें दर्ज की जाती हैं?
हां, अधिकांश राज्य वन विभाग इन्हें रिकॉर्ड करते हैं और वन्यजीव क्राइम ब्यूरो (WCCB) को रिपोर्ट करते हैं। - सरकार क्या कर रही है?
अंडरपास, ओवरपास, कैमरा ट्रैप, वाइल्डलाइफ कॉरिडोर बनाने जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं।
संदर्भ सूची (References):
- New Indian Express – https://www.newindianexpress.com/nation/2025/Jul/09/new-data-confirms-tigers-as-more-aggressive-than-leopards-in-uttarakhand
- Mongabay India – https://india.mongabay.com/2023/02/despite-efforts-and-funds-human-wildlife-conflict-in-uttarakhand-is-not-contained
- Hindustan Times – https://www.hindustantimes.com/cities/pune-news/humanwildlife-conflict-leopard-attacks-account-for-second-highest-deaths-in-maharashtra
- PIB India – https://www.pib.gov.in/PressReleseDetailm.aspx?PRID=2035046
- Times of India – https://timesofindia.indiatimes.com/city/dehradun
स्रोत सूची (References):
- TOI – Maharashtra Tiger/Leopard deaths
- New Indian Express – Uttarakhand Tiger/Leopard Conflict
- WPSI India – Wildlife Mortality Statistics
- Mongabay – Human Wildlife Conflict India
- PIB Wildlife Reports
- Wildlife SOS Reports
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