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भारत को नदियों का देश कहा जाता है, क्योंकि यहां गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी जैसी अनेक महत्वपूर्ण नदियां प्रवाहित होती हैं। ये नदियां न केवल सिंचाई और जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत हैं, बल्कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी महत्वपूर्ण मानी जाती हैं।
हालांकि, आधुनिक समय में भारत की नदियों की स्थिति चिंताजनक हो गई है। बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण नदियों में प्रदूषण खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है। गंगा और यमुना जैसी प्रमुख नदियां औद्योगिक कचरे, सीवेज और प्लास्टिक कचरे से बुरी तरह प्रभावित हो चुकी हैं। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, इन नदियों का पानी कई स्थानों पर पीने योग्य नहीं रह गया है।
जलवायु परिवर्तन भी नदियों की स्थिति को प्रभावित कर रहा है। अनियमित वर्षा, बर्फबारी में कमी और अत्यधिक दोहन के कारण कई नदियों का प्रवाह कम होता जा रहा है। इसके अलावा, बांधों और जलविद्युत परियोजनाओं के अंधाधुंध निर्माण से कई नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है, जिससे पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ रहा है।
सरकार और सामाजिक संगठनों द्वारा नदियों को बचाने के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। ‘नमामि गंगे’ जैसी योजनाओं के तहत गंगा नदी की सफाई पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके अलावा, जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन जैसी योजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। लेकिन जब तक आम जनता भी जागरूक होकर अपनी नदियों को स्वच्छ रखने में योगदान नहीं देगी, तब तक स्थायी समाधान संभव नहीं होगा।
नदियों का संरक्षण केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए भी आवश्यक है। इसलिए हमें अपनी नदियों को बचाने के लिए गंभीर प्रयास करने होंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और जीवंत जलस्रोत मिल सकें।
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