Description
बात फूलों की…
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बरात फूलों की
फूल के हार फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की
आप का साथ साथ फूलों का
आप की बात बात फूलों की
मख़दूम मुहिउद्दीन
(साभार गूगल)
वाकई फूल इस कायनात में किसी खूबसूरत रचना की मानिंद ही तो हैं जिसे लिखने से पहले हजार बार सोचा गया, सोचने से पहले हजार पर ख्वाब में पिरोया गया, ख्वाब में पिराने से पहले हजार बार नजरों से उठाया गया, नजरों से उठाने से पहले हजार बार सुगंध से नहलाया गया, सुगंध में नहलाने से पहले हजार बार कांटों को जिम्मेदारी देकर सर्द और गर्म हवाओं से बचाया गया। फूलों की ये दुनिया वाकई अनूठी है, शायरों के मन रंग से रंगत पाती और सुर्ख होती रही है। फूलों पर ख्यात शायर मख़दूम मुहिउद्दीन की पंक्तियां-
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की।
ये महकती हुई ग़ज़ल ’मख़दूम’
जैसे सहरा में रात फूलों की।
वाकई फूलों से बेज़ार होकर देखिए ऐसा प्रतीत होगा जैसे प्रकृति ने अचानक अपना कोई रंगीन लिबास उताकर रख दिया हो, जैसे वह प्रेरणा से कोसों दूर चली गई हो, जैसे वह सदियों के लिए खामोश हो गई हो, जैसे उससे सृजन का कोई जरुरी हक छीन लिया गया हो। प्रकृति फूलों से खुद को सजाती है, फूलों से ही इस दुनिया के होने की आहट आती है। फूलों के रंग, प्रकार, आकार अनूठे हैं इन्हें देखने का समय और हमारी भागती जिंदगी के बीच काफी धुंधलाहट है। फूलों को करीब से देखने का अर्थ उसकी खुशबू लेना नहीं है वरन उस परमपिता की कारीगरी को समझने का प्रयास है कि आखिर उसने इतने चटख रंग बनाए कैसे होंगे, कहां से लाया होगा वह इतने फूल, इतने प्रकार और इतने आकार। मौसम के जैसे फूलों से होकर गुजरना वाकई मनचाही उम्र के लौटने के सुख सा सुखद है। फूलों को देखिए, महसूस कीजिए, रंग में खो जाईये, उसकी खिलखिलाहट में मुस्कुराईये, देखिए उसमें आध्यात्म भी है, प्रकृति भी है, साहित्य भी है, ग्रंथ भी है, शब्द भी है, लय भी है, गीत भी है, संगीत भी और बचपन में दुलारती मां का प्यारा सा आलिंगन भी। वाकई बात फूलों की हो तो शब्दों का प्रवाह भाव के कांधों पर बैठ पक्षी के परों सा उन्मुक्त हो उठता है। कौन नहीं चाहता फूलों सी रंगत, फूलों सी खुशबू, फूलों सी ताजगी, फूलों सी फकीरी, फूलों सी रैदास भक्ति।
अंत में केवल इतना ही फूलों से मिलते रहिए, ये हैं तो जिंदगी का उत्सव हैं, ये भरोसा भी हैं मौसम बदलने का, आशीष भी है उस परमपिता का।
संदीप कुमार शर्मा, प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन
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