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तापमान बढ़ रहा है, यह वैश्विक चिंता का विषय है लेकिन इसे लेकर जमीनी जागरुकता बेहद खस्ताहाल में है। हम तापमान को बढ़ने से नहीं रोक पा रहे हैं लेकिन बड़ा बदलाव यह हुआ है कि हमने अपनी दिनचर्या, कारोबार और जीवन को तपिश के अनुसार तय करना सीख लिया है। तपते प्रदेशों और शहरों में से कुछ स्थान ऐसे भी हैं जिनमें दोपहर के समय तीन से चार घंटे बाजार पूरी तरह से बंद रहने लगे हैं, यह समझा जा सकता है कि ऐसे निर्णय कारोबार और जनस्वास्थ्य के मद्देनज़र लिए जा रहे हैं लेकिन क्या तपिश के पीछे चलना सही है ?
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