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रेत पर जिंदगी-Dec 2020

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February 2025 कहीं घटती, कहीं बढ़ती ठिठुरन

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तपिश और मुश्किलों का दौर-APRIL 2025

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(1 customer review)

तपिश और घुटन भरे जीवन को हमीं तैयार कर रहे हैं और फिर हम उससे भागकर अपने आप को ठंडक वाले उस भ्रम में छिपा रहे हैं जो हमें अस्पताल पहुंचाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहा है।

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Description

हम आदतन कूल हैं लेकिन भाव और स्वभाव से पत्थर: बढ़ते  Earth Temperature पर एक चिंतन”

 

प्रस्तावना: क्या हम वास्तव में “कूल” हैं?

गर्मी का मौसम आते ही हम खुद को ठंडा रखने के तमाम उपाय खोजने लगते हैं। एयर कंडीशनर, कूलर, ठंडे पेय… सब कुछ केवल एक ही दिशा में—कूल” बने रहने के लिए। लेकिन सवाल यह है कि क्या हम सच में कूल हैं? अगर हम अपने स्वभाव और भावनाओं में भी ठंडे, यानि शांत, संवेदनशील और प्रकृति-संगत होते, तो आज Earth Temperature (पृथ्वी का तापमान) इतना भयावह क्यों होता?

 

Earth Temperature तापमान बढ़ा तो दोष किसका है?

आज हम जिस स्थिति में हैं, उसमें Earth Temperature का बढ़ता ग्राफ हमें ही कटघरे में खड़ा करता है। हमने प्रकृति से लिया बहुत कुछ, लेकिन उसे वापस कुछ नहीं दिया। पेड़ काटे, कंक्रीट के जंगल बनाए, ज़मीन को गर्म और बंजर बना दिया। फिर जब गर्मी बढ़ी तो उससे बचने के लिए हमने ठंडक के कृत्रिम साधन अपनाए—लेकिन क्या यही हल है?

 

रहन-सहन, स्वास्थ्य और गर्मी का त्रिकोण-Earth Temperature  

गर्मी केवल मौसम नहीं है, यह हमारे रहन-सहन, स्वास्थ्य और प्रकृति से हमारे संबंध का आईना है। हम जितने लापरवाह अपने वातावरण के प्रति होते हैं, उतनी ही समस्याएँ स्वास्थ्य में सामने आती हैं—हीट स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, स्किन इन्फेक्शन, और इम्यून सिस्टम की गिरावट। ये सभी हमारे व्यवहार और वातावरण की उपज हैं।

 

मौसम का चक्र: तपिश भी ज़रूरी है

प्रकृति में हर मौसम का अपना महत्व है। ग्रीष्म ऋतु का आगमन तब होता है जब शीतकाल के बाद प्रकृति को गर्माहट की आवश्यकता होती है। यह चक्र नमी, ठिठुरन और तपिश के बीच संतुलन बनाए रखता है। लेकिन आज जब Earth Temperature असामान्य रूप से बढ़ रहा है, तो यह चक्र ही असंतुलित हो गया है।

 

पहले था प्राकृतिक संतुलन, अब है कृत्रिम संघर्ष है Earth Temperature के कारण 

कभी वर्षा समय पर होती थी, ग्रीष्म ऋतु सहनीय होती थी, और जीवन प्राकृतिक लय में चलता था। अब? हम सीमेंट की सड़कों और ईंट-पत्थरों के मकानों में कैद हैं। उमस, धूल, और घुटन का ऐसा मिश्रण है कि प्राकृतिक हवा भी दुर्लभ हो गई है। एसी की कृत्रिम ठंडक हमें अस्थायी राहत तो देती है, लेकिन Earth Temperature को और अधिक बढ़ा देती है।

 

महानगरों की घुटन और संवेदनहीनता

आज महानगरों में न तो हवा चलती है, न हरियाली बची है। पसीने से लथपथ शरीर पर जब हम ठंडा पानी उड़ेलते हैं, तो एक पल को राहत जरूर मिलती है लेकिन यह भूल जाते हैं कि यह राहत किस कीमत पर मिल रही है। वन्यजीव, पक्षी, कीट-पतंगे, और पेड़-पौधे 48 से 50 डिग्री तापमान में कैसे जी रहे होंगे? हम आदतन कूल हैं, पर स्वभाव से कठोर पत्थर जैसे बन चुके हैं।

 

हमने क्या सीखा? क्या किया?

हम अक्सर ठंडे कमरों में बैठकर गर्म मौसम को कोसते हैं, लेकिन सोचते नहीं कि क्या हमने इस स्थिति को सुधारने के लिए कुछ किया? Earth Temperature के बढ़ने में हमारी भूमिका स्पष्ट है, लेकिन सुधार की दिशा में हमारी चुप्पी और भी ज्यादा चिंताजनक है।

 

निष्कर्ष: अब भी समय है, चेत जाइए

यदि हम चाहते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियाँ एक सांस लेने योग्य वातावरण में जी सकें, तो आज से ही बदलाव शुरू करना होगा।

  • पेड़ लगाइए
  • जल संचय कीजिए
  • प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग कीजिए
  • कृत्रिम ठंडक के बजाय प्राकृतिक ठंडक को महत्व दीजिए

Earth Temperature को नियंत्रित करना अब केवल सरकारों की ज़िम्मेदारी नहीं, यह हर नागरिक की व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी है।

PRAKRITI DARSHAN-NATURE AND ENVIRONMENT MAGAZINE

वेबसाइट:www.prakritidarshan.com

प्रकृति दर्शन  एक प्रमुख  ( हिंदी ) पत्रिका और डिजिटल मंच है जो प्रकृति, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण से जुड़े विषयों पर जनजागरूकता का कार्य करता है। यह पत्रिका विज्ञान, समाज और संवेदना का संगम है जो शोधकर्ताओं, छात्रों, एनजीओ, नीति निर्माताओं, प्रकृति प्रेमियों और जागरूक नागरिकों को एक साझा मंच प्रदान करती है।

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SANDEEP KUMAR SHARMA,

EDITOR IN CHIEF,

PRAKRITI DARSHAN-NATURE AND ENVIRONMENT MAGAZINE

www.prakritidarshan.com

 

BALA DATT

1 review for तपिश और मुश्किलों का दौर-APRIL 2025

  1. Amit Dagar

    Nice and healthy insights

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