Prakriti Darshan | Nature & Environment News | 11 July 2025
क्या बाघ जंगल की सीमा पार करता है, तो तुरंत अलर्ट मिलेगा?
जी हां, अब जैसे ही कोई बाघ जंगल की तय सीमा पार करता है, तो वन अधिकारियों और संबंधित विभागों को तत्काल एक अलर्ट मिलेगा। यह नया प्रयोग बाघ संरक्षण और मानव-पशु संघर्ष को कम करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। इस प्रणाली में बाघों को सैटेलाइट और जीपीएस कॉलर के माध्यम से ट्रैक किया जाता है। ” Tiger Conservation”
इस योजना का ताज़ा अपडेट क्या है?
सरकार और वन्यजीव विशेषज्ञों द्वारा हाल ही में यह नई ट्रैकिंग टेक्नोलॉजी लागू की गई है, जिसमें बाघों के गले में स्मार्ट कॉलर डिवाइस लगाई जाती है। जैसे ही कोई बाघ जंगल की तय सीमा (geo-fenced boundary) से बाहर निकलता है, सिस्टम तुरंत अलर्ट भेज देता है।
इस तकनीक से क्या बदलाव होगा? ” Tiger Conservation”
मानव-बाघ संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी।
बाघों की सटीक निगरानी संभव होगी।
बाघों के आवागमन के पैटर्न का अध्ययन आसान होगा।
गांवों और खेतों में बाघों के घुसने से पहले चेतावनी मिल सकेगी।
इस सिस्टम को कैसे लागू किया गया है? ” Tiger Conservation”
यह टेक्नोलॉजी जीआईएस आधारित जियो-फेंसिंग, GPS ट्रैकिंग कॉलर और रियल टाइम मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर पर आधारित है। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में इसका पायलट परीक्षण शुरू हो चुका है।
कौन-कौन सी संस्थाएं इस तकनीक पर काम कर रही हैं?
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA)
- वन अनुसंधान संस्थान (FRI), देहरादून
- भारतीय वन सेवा (IFS)
- कुछ प्राइवेट टेक्नोलॉजी स्टार्टअप जैसे कि Wildlife Conservation Trust (WCT)
FAQs
1. क्या वास्तव में अब बाघ सीमा पार करेगा तो अलर्ट मिलेगा? ” Tiger Conservation”
हां, GPS कॉलर और जियो-फेंसिंग की मदद से तुरंत अलर्ट सिस्टम सक्रिय होगा।
2. यह सिस्टम कैसे काम करता है?
बाघ के गले में लगे GPS कॉलर से उसकी लोकेशन ट्रैक होती है। जैसे ही वह जियो-फेंस सीमा से बाहर निकलता है, अलर्ट जाता है।
3. कौन-कौन से राज्य सबसे पहले इसे लागू कर रहे हैं?
महाराष्ट्र, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश और कर्नाटक प्रमुख राज्य हैं।
4. क्या इससे बाघों को नुकसान होता है?
नहीं, कॉलर पूरी तरह सुरक्षित होते हैं और वन्यजीव विशेषज्ञों की निगरानी में लगाए जाते हैं।
5. कितने बाघों को कॉलर लगाया गया है?
फिलहाल पायलट प्रोजेक्ट के तहत लगभग 50 से अधिक बाघों को ट्रैक किया जा रहा है।
6. क्या यह टेक्नोलॉजी भारतीय है?
हां, भारतीय तकनीकी स्टार्टअप्स और सरकारी एजेंसियों ने मिलकर इसे विकसित किया है।
7. क्या ग्रामीणों को भी अलर्ट मिलेगा?
अभी वन विभाग को अलर्ट मिलता है, भविष्य में मोबाइल ऐप के जरिए ग्रामीणों को भी अलर्ट भेजा जाएगा।
8. क्या इससे बाघों की गतिविधि की रिपोर्ट मिलती है?
हां, हर दिन के मूवमेंट, विश्राम और यात्रा के रूट का डेटा मिलता है।
9. क्या यह सिस्टम रियल टाइम है?
हां, यह तकनीक तुरंत अलर्ट भेजती है और रियल टाइम ट्रैकिंग करती है।
FAQs
10. क्या यह सिस्टम पूरे भारत में लागू होगा?
पायलट सफल होने के बाद इसे सभी बाघ बहुल राज्यों में लागू किया जाएगा।
11. क्या इस सिस्टम से अन्य जानवरों को भी ट्रैक किया जा सकता है?
हां, यह प्रणाली हाथी, तेंदुआ जैसे बड़े जानवरों के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है।
12. क्या यह विदेशी टेक्नोलॉजी है?
कुछ तकनीकी सहायता विदेशी कंपनियों से ली गई है, लेकिन ज्यादातर विकास भारतीय संस्थाओं ने किया है।
13. इस सिस्टम की लागत कितनी आती है?
एक बाघ को ट्रैक करने की शुरुआती लागत लगभग 2-3 लाख रुपये है।
14. क्या वन विभाग के पास इसके लिए प्रशिक्षित कर्मचारी हैं?
हां, संबंधित कर्मचारियों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
15. क्या इससे बाघों की संख्या बढ़ाने में मदद मिलेगी?
बिलकुल, क्योंकि जब संघर्ष कम होगा, तो बाघों का जीवनकाल बढ़ेगा और उनके संरक्षण में सहायता मिलेगी।
स्रोत / References:
- राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) रिपोर्ट – 2024
- Wildlife Conservation Trust (WCT) प्रेस विज्ञप्ति – 2025
- The Hindu Environment Desk (जून 2025 संस्करण)
- भारतीय वन सेवा (IFS) उत्तराखंड परिक्षेत्र रिपोर्ट
- FRI देहरादून – वन्यजीव निगरानी प्रणाली शोध
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