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Jal Sanskriti जल संस्कृति

जल संस्कृति -May 2025

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February 2025 कहीं घटती, कहीं बढ़ती ठिठुरन

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वायु प्रदूषण, घुटता भविष्य- JUNE 2025

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संवार लीजिए अभी भी प्रकृति को, पर्यावरण को, जिंदगी को, अपने शहरों और आवासीय बस्तियों को, अपने रहवासी हिस्सों को…। आज प्रकृति कहीं न कहीं दरक रही है लेकिन जब हमारे परिवार और हमारे तेजी से इस दरकन का हिस्सा होना आरंभ हो जाएंगे तब शायद हम संभल भी न पाएं…।

प्लीज…कीजिए और अपने अपने शहरों, गांवों, बस्तियों, मोहल्लों में प्रदूषण को कम के लिए उठ खडे़ होईये।

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Description

श्वास लीजिए और सोचिए बिन श्वास क्या होगा

बहुत सीधी सी बात है कि यह दौर ऐसा है जहां केवल जीने के लिए भी हजार तरह की मुश्किलों से जूझना तय है। कुछ वर्षों पहले तक के हालात कुछ और थे लेकिन अब सीधी-साधी जिंदगी जी ही नहीं जा रही है, क्योंकि हवा में प्रदूषण का जहर तेजी से घुलता जा रहा है। हवा में प्रदूषण है तो शरीर को बचाना भी एक चुनौती है। हाल यह है कि प्रदूषित शहरों में भी लोग एक्यूआई को देखने और समझने को तैयार नहीं हैं, एक दौड़ है जीतने की, एक रेस है अव्वल कहलाने की…लेकिन कौन सी दौड़ और कैसी रेस ? देश के दूसरे हिस्सों की तो बात ही क्यों करें ? जब विकसित जिंदगी जीने वाले महानगर ही इसे आदत का हिस्सा बना नहीं पा रहे हैं। एक बार ठंडी श्वास लीजिए और सोचिए कि बिन श्वास क्या होगा ?
सोचिएगा यह दौर डिजिटल है और संकट असंख्य हैं लेकिन सुरक्षा के लिए, संभलने के लिए हमें जानकारियां उपलब्ध हैं। यह दौर हमें जीने तभी देगा जब हम अपडेट रहें, संकट समझें और सुरक्षित रहें।
अब दो ही तरीके बचते हैं या तो आप प्रदूषण के साथ जीना सीख जाईये और धीरे-धीरे बीमारियों को ओढ़ लीजिए, सुखद जीवन को दर्द और कराह की चादर ओढ़ा दीजिए और किसी से कुछ मत कहिए। जैसे हालात हों वैसे जीते जाईये।
दूसरा तरीका यह है कि आप अपडेट रहिये, सोचिए और जमीनी सुधार पर उतर जाईये। यह राह बहुत मेहनत भरी है, परेशानियों भरी है, हमें अपने समय से समझौते करने होंगे, सामाजिक तौर पर शहर, गांव और मोहल्लों के विषय में सोचना होगा। कठिन है क्योंकि महानगरों में तो हमें पडोसी की खबर नहीं होती ऐसे में हम शहर और गांव में सुधार के लिए क्या कर पाएंगे सवाल तो है?
दोनों में से एक राह तो चुननी होगी, तीसरी कोई राह नहीं है। तीसरी राह हो भी नहीं सकती क्योंकि या तो प्रदूषण है या प्रदूषण मुक्त शहर हैं।
हालांकि जानता हूं कि एक्यूआई जैसे बेहद साधारण सूचना तंत्र से मित्रतावत व्यवहार अब तक नजर नहीं आ रहा है, जबकि यह रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हो जाना चाहिए था।
बच्चों की सोचिए क्योंकि हम तो अभ्यस्त हैं, प्रदूषण में जीने के लिए। हम तो आदी हैं इस खूबसूरत सी दुनिया में बीमारियों का जहर घोलने को। बहुत ही अचरज होता है कि प्रकृति हर दिन मुश्किलों से घिरती जा रही है लेकिन हमें कोई लेना नहीं है।
सोचिएगा जैसे जी रहे हैं क्या ये जिंदगी है, क्या ये जिंदगी का तरीका है, क्या इससे भी कठिन जिंदगी हमारे बच्चों के हिस्से आती हमें नजर नहीं आ रही है ? यदि इस तरह हम सोचते हैं और हमें तकलीफ है तो सुधार कोई दूसरा नहीं करेगा, हमें अपने आप शुरुआत करनी होगी। यदि हम इस तरह का कोई भी विचार नहीं रखते तो कोई बात नहीं…जिंदगी है…कट ही जाएगी लेकिन ध्यान रखिएगा केवल कट जाएगी….जी नहीं जाएगी। यह जीवन श्वास के बिना अधूरा है। श्वास से जीवन महकता है और जीवन से रिश्ते। रिश्तों से परिवार और परिवार से मन और समाज। समाज से देश और देश से यह समग्र विश्व। हम हैं तो इसी सिस्टम का हिस्सा। हम सुधार को उठेंगे तो सोचिएगा कितना कुछ बचाने को उठ खडे् होंगे। यदि हम न जागे तो कितना खो देंगे…। वैसे हमें सकारात्मक होकर सोचना चाहिए और फुरसत मिले तो हम फिल्म ‘दूरियां’ के गीत की यह पंक्तियां जिन्हें ख्यात पार्श्व गायक भूपेंद्र सिंह जी और अनुराधा पोडवाल जी ने गाया है- उसे दोहराएं…गुनगुनाएं…शायद हम समझ पाएं कि हम परिवार और रिश्तों में जीने वाले लोग हैं-

न दस्तक जरुरी, न आवाज देना
मेरे घर का दरवाजा कोई नहीं है,
मैं सांसों की रफ्तार से जान लूंगीं,
हवाओं की खुशबु से पहचान लूंगी….
जिंदगी मेरे घर आना जिंदगी…

संवार लीजिए अभी भी प्रकृति को, पर्यावरण को, जिंदगी को, अपने शहरों और आवासीय बस्तियों को, अपने रहवासी हिस्सों को…। आज प्रकृति कहीं न कहीं दरक रही है लेकिन जब हमारे परिवार और हमारे तेजी से इस दरकन का हिस्सा होना आरंभ हो जाएंगे तब शायद हम संभल भी न पाएं…।

प्लीज…कीजिए और अपने अपने शहरों, गांवों, बस्तियों, मोहल्लों में प्रदूषण को कम के लिए उठ खडे़ होईये।

 

PRAKRITI DARSHAN-NATURE AND ENVIRONMENT MAGAZINE

प्रकृति दर्शन  एक प्रमुख  ( हिंदी ) पत्रिका और डिजिटल मंच है।

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SANDEEP KUMAR SHARMA,

EDITOR IN CHIEF,

PRAKRITI DARSHAN-NATURE AND ENVIRONMENT MAGAZINE www.prakritidarshan.com

1 review for वायु प्रदूषण, घुटता भविष्य- JUNE 2025

  1. Sandeep Kumar Sharma

    Air pollution is an important issue…it is important to work on it in time. This issue is focused on this.You must watch it.

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