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जापान में ही क्यों आते हैं सबसे अधिक भूकंप ?

जापान में ही क्यों आते हैं सबसे अधिक भूकंप

अभी हाल ही में म्यांमार में 28 मार्च 2025 को सागाइंग क्षेत्र में 7-7 तीव्रता का भूकंप आया इसका केंद्र मांडले शहर के नजदीक बताया गया था। यह भी बताया गया कि 1912 के बाद म्यांमार में ये सबसे शक्तिशाली भूकंप earthquakes था। देखते ही देखते इमारतें गिरीं और दुनिया एक बार फिर सहम गई। ऐसा नहीं हैं कि भूकंप का इस तरह रौंद्र चेहरा पहली बार देखने में आया हो, हमारी दुनिया का इतिहास ऐसे भूकंपों से भरा है। हम जानेंगे कि भूकंप आता क्यों है] सबसे अधिक भूकंप जापान में ही क्यों आते हैं, Why does Japan have the most earthquakes? अभी तक के सबसे शक्तिशाली भूकंप कब और कहां-कहां आए थे।

भूकंप क्यों आते हैं

पहला स्वाभाविक प्रश्न यही उठता है कि आखिर भूकंप आते क्यों हैं ? यह एक भूगर्भीय हलचल का परिणाम होते हैं। भूकंप मुख्य तौर पर टेक्टोनिक प्लेटों में जब हलचल होती है तब भूकंप आते हैं। इसे यूं भी समझ सकते हैं कि धरती की सतह कई सारी छोटी और बड़ी प्लेटों से मिलकर बनी है इन्हीं प्लेटों को टेक्टोनिक प्लेट्स कहते हैं। यह प्लेटें लगातार बहुत ही धीमी गति से घूमती रहती हैं। यह प्लेटे जब एक दूसरे से टकराती हैं, रगड़ती हैं या एक दूसरे से दूर जाती हैं तो तब धरती के अंदर तनाव बढ़ता है। जब तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है तब चट्टान टूट जाती है और उर्जा निकलती है और इसी कारण भूकंप के झटके महसूस होते हैं। भूकंप का केंद्र उस जगह को कहा जाता है जहां से भूकंप शुरू होता है। हम इसी बहुत ही सहज तौर पर समझ सकते हैं कि यदि भूगर्भीय हलचल बढ़ रही है तब मानिए कि चिंता जायज है। हमें ये भी तय करना होगा कि पर्यावरण को समझें और प्रकृति को उसकी मर्जी की भांति ही संचालित होने देने में हम अपनी सहयोगी की भूमिका किस तरह निभा सकते हैं।

जापान में इसलिए आते हैं सबसे अधिक भूकंप

हमने अक्सर सुना होगा और पढ़ा भी होगा कि दुनिया में जापान एक ऐसा देश है जहां सबसे अधिक भूकंप आते हैं। सहज सवाल यह आता है कि आखिर जापान में ही भूकंप क्यों आते हैं। जापान में भूकंप के महत्वपूर्ण कारण हैं जिन्हें समझना चाहिए। सबसे प्रमुख बात तो यह है कि जापान की भौगोलिक स्थिति ऐसी है जिसे भूकंप जोन माना जाता रहा है। यह वह स्थान है जहां चार टेक्टोनिक प्लेटें मिलती हैं इसे ‘पैसिफिक रिंग ऑफ फायर’ कहा जाता है अर्थात भूकंप के लिए सबसे अधिक संवेदनशील स्थान। यह चार टेक्टोनिक प्लेटें हैं- फिलीपीन सागर प्लेट] यूरेशियन प्लेट] ओखत्स्क प्लेट और प्रशांत प्लेट। जापान “पैसिफिक रिंग ऑफ फायर“ के क्षेत्र में आता है, यह पृथ्वी का एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ सबसे अधिक ज्वालामुखी और भूकंपीय गतिविधि होती हैं। ऐसा माना जा रहा है कि फिलीपीन सागर प्लेट] यूरेशियन प्लेट के नीचे खिसक रही हैं जिससे टेक्टोनिक तनाव उत्पन्न हो रहा है। अचंभित करने वाली बात यह भी है कि जापान दुनिया के 10 प्रतिशत सक्रिय ज्वालामुखियों का भी केंद्र है। ऐसा माना जाता है कि जापान में प्रत्येक वर्ष लगभग दो हजार भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं। यहां हर साल कम से कम एक बार सुनामी का भी खतरा मंडराता रहता है। उससे भी अधिक चिंता की बात तो यह है कि रेक्टर स्केल पर 7.0 या उससे अधिक तीव्रता वाले भूकंप में से 20 प्रतिशत भूकंप जापान में ही आते हैं। जापान की भौगोलिक स्थिति भी भूकंप जैसी बडी आपदा के लिए  दोषी मानी जाती रही है कारण यह है कि यह एक आइलैंड देश है और प्रशांत महासागर में चारों तरफ पानी से घिरा हुआ है।

1900 के बाद तीसरा सबसे बड़ा भूकंप

जापान का अब तक का सबसे विनाशकारी भूकंप 11 मार्च 2011 को आया था इसकी तीव्रता 9-0 थी। इस कारण एक विनाशकारी सुनामी भी आई थी। इसे 1900 के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बडा भूकंप माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि जनहानि के साथ ही फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में इस भूकंप के कारण तीन रिएक्टर पिघल गए थे।

भूकंप से पहले अलर्ट वाले दिन रहे सचेत

अब तक आए भकूंप बुरे स्वप्न की भांति ही हैं, उन्हें कोई याद नहीं रखना चाहता। देश के अनेक हिस्से हैं जिन्हें भूकंप के डेंजर जोन में रखा गया है और भूगर्भीय हलचलों और कंपन आए दिन भयभीत कर रहा है, भूकंप को लेकर सच यह है कि तकनीकी तौर पर केवल उसके आने की भविष्यवाणी तो हम पा रहे हैं लेकिन उसका समय क्या होगा और भूकंप के आने से लेकर हमारी सतर्कता और बचाव में कितना समय मिलेगा यह सबकुछ स्पष्ट नहीं है लेकिन यह अवश्य माना जा सकता है कि पूर्व के वर्षो की तुलना में हम भूगर्भीय हलचल की सूचना में बेहतर हुए हैं लेकिन पूरी तरह से हम परिपक्व सिस्टम बना पाए हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता है। 

भारत का 59 फीसदी हिस्सा भूकंप रिस्क जोन में है 

भारत के कुछ हिस्से हैं जिन्हें डेंजर जोन में शामिल किया है लेकिन हकीकत यह भी है खतरे की जद में देश के बहुत बड़ा हिस्सा आता है। भारत में हर साल हल्के और मध्यम दर्जे के भूकंप आते रहते हैं लेकिन उनका आना और धरती में कंपन होना भी चिंता का विषय है। भारतीय मानक ब्यूरो ने देश को पांच भूकंप जोन में बांटा है. देश का 59 फीसदी हिस्सा भूकंप रिस्क जोन में है. देश में पांचवें जोन को सबसे ज्यादा खतरनाक और सक्रिय माना माना जाता है. इस जोन में आने वाले राज्यों और इलाकों में तबाही की आशंका सबसे ज्यादा बनी रहती है। जो सबसे अधिक डेंजर जोन में आ रहा है अर्थात पांचवां जोन इसमें देश के कुल भूखंड का 11 फीसदी हिस्सा आता है। चौथे जोन में 18 फीसदी और तीसरे और दूसरे जोन में 30 फीसदी. सबसे ज्यादा खतरा जोन 4 और 5 वाले इलाकों को है। यहां ये भी देख लें कि किस जोन में राज्य या उनका कौन सा इलाका आता है। 

भूकंप ने हमेशा ही मानव जीवन तहस नहस किया है 

पर्यावरण खतरे समय के साथ-साथ बढ़ते जा रहे हैं, उन्हें समझना होगा, भूकंप जब जब आए हैं तब तब मानव जीवन बुरी तरह तरस-नहस हो गया है। अब तक सभी भूकंप इस बात की गवाही भी हैं कि सबसे अधिक श्रेष्ठ प्रकृति है और उसके साथ छेड़छाड़ हमेशा बहुत भारी पड सकती है। सबसे ज्यादा खतरनाक जोन पांचवां है, इस जोन में जम्मू और कश्मीर का हिस्सा (कश्मीर घाटी), हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल है। चौथे जोन में जम्मू और कश्मीर के शेष हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बाकी हिस्से, हरियाणा के कुछ हिस्से, पंजाब के कुछ हिस्से, दिल्ली,  सिक्किम, उत्तर प्रदेश के उत्तरी हिस्से, बिहार और पश्चिम बंगाल का छोटा हिस्सा, गुजरात, पश्चिमी तट के पास महाराष्ट्र का कुछ हिस्सा और पश्चिमी राजस्थान का छोटा हिस्सा इस जोन में आता है. तीसरे जोन में केरल, गोवा, लक्षद्वीप समूह, उत्तर प्रदेश और हरियाणा का कुछ हिस्सा, गुजरात और पंजाब के बचे हुए बचे हुए हिस्से, पश्चिम बंगाल का कुछ इलाका, पश्चिमी राजस्थान, मध्यप्रदेश, बिहार का कुछ इलाका, झारखंड का उत्तरी हिस्सा और छत्तीसगढ़. महाराष्ट्र, ओडिशा आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु और कर्नाटक का कुछ इलाका आता है। जोन-2 में आते है राजस्थान, हरियाणा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और तमिलनाडु का बचा हुआ हिस्सा। ऐसा माना जाता है कि पहले जोन में कोई खतरा नहीं होता। 

प्रमुख भूकंपों की सूची

– अप्रैल 26, 2015- उत्तर भारत, उत्तर पूर्व भारत-  (केंद्र कोडारी, नेपाल से 17 किमी दक्षिण)

– अप्रैल 25, 2015- उत्तर भारत-  नेपाल् से 49 किमी पूर्व ) 

– अप्रैल 25, 2015- उत्तर भारत, उत्तर पूर्व भारत- केन्द्र- लमजुङ नेपाल से 34 पूर्व . पूर्वी, उत्तरी, उत्तर-पूर्वी भारत और गुजरात के कुछ हिस्सों में महसूस किया 

– मार्च 21, 2014- अन्दमान एवं निकोबार द्वीप – अन्दमान द्वीप समूह में मध्यम भूकंप 

– अप्रैल 25, 2012- अन्दमान और निकोबार- अन्दमान और निकोबार में बड़ा भूकंप

– सितम्बर 18, 2011- गान्तोक, सिक्किम- पूर्वोत्तर भारत में शक्तिशाली भूकंप, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ और जयपुर झटके महसूस किए गए

– अगस्त 10, 2009- अन्दमान- सुनामी की चेतावनी जारी की गई 

– अक्टूबर 08, 2005- कश्मीर- इस्लामाबाद से उत्तर पूर्व, श्रीनगर, काँगरा, जम्मू और कश्मीर, भारत

– दिसम्बर 26, 2004- उत्तरी सुमात्रा का पश्चिमी तट भारत श्रीलंका मालदीव- दुनिया के इतिहास में तीसरा सबसे भीषण भूकंप, भारत में सुनामी 15,000 लोग मारे गए 

– जनवरी 26, 2001- गुजरात- गुजरात भूकंप, हजारों मारे गए 

– अगस्त 20, 1988- भारत नेपाल सीमा 

– अगस्त 15, 1950- अरुणाचल प्रदेश- आजादी के बाद से मुख्य भूमि भारत में दर्ज सबसे बड़ा भूकंप। 

– जनवरी 15, 1934- नेपाल- मुख्य भूमि भारतीय उपमहाद्वीप में दर्ज किया गया सबसे बड़ा भूकंप।

– अप्रैल 04, 1905- हिमाचल प्रदेश- यह कांगड़ा घाटी में आया एक बड़ा भूकंप

– इसके अलावा भी भकूंप आए हैं और उन्होंने मानव जाति को बुरी तरह प्रभावित किया है।

चिंता होना स्वाभाविक है लेकिन ध्यान रखना जरुरी है  – आए दिन दिल्ली एनसीआर में भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे हैं, भूकंप के झटकों और भूगर्भीय हलचलों के बढने के बाद चिंता बढना स्वाभाविक भी है क्योंकि अब तक कोई सटीक दिन और समय बताने वाली कोई प्रक्रिया हमारे पास अब तक भी नहीं है। नेपाल में भूकंप ने कई बार सबकुछ तहस नहस किया है, अधिकांश भूकंप का केंद्र होने के कारण नेपाल को जानमाल का बडा नुकसान होता है। भारत के लिए भी यह गहरी चिंता का विषय है, भूकंप को लेकर बेशक अब मोबाइल पर अलर्ट मिल रहे हैं लेकिन ठीक ठीक समय की सूचना अब भी संभव नहीं हो पा रही है। 

हम नुकसान को टाल सकते हैं यदि हम सचेत रहे 

भूकंप को लेकर चिंता होना स्वाभाविक है लेकिन ध्यान रखना जरुरी है कि जब भी भूकंप की सूचना आए या अलर्ट आए उस दिन बहुत अधिक सचेत रहने की आवश्यकता है। रात के समय भी सचेत अवस्था में रहें, भूगर्भीय हलचल होते ही तुरंत घर से बाहर खुले स्थान में पहुंच जाएं किसी भी तरह रिस्क न लें। परिवार के सभी साथियों को भूकंप के बारे और बचाव के बारे जानकारी मुहैया अवश्य कराएं। भूकंप से हम नुकसान को टाल सकते हैं यदि हम सचेत रहे तो ही। 

अब मोबाइलों में भी अलर्ट का फीचर

इन भयंकर भूकंपों का सच मन को गहरे तक झकझोर देने वाला है, समय रहते संभलने की आवश्यकता है। एक राहत की बात यह भी है कि मौजूदा दौर में मोबाइलों में भी भूकंप अलर्ट मोड दिया जाने लगा है इसे ओपन रखें ताकि समय पर सूचना मिल सके।

संदीप कुमार शर्मा, प्रकृति दर्शन पत्रिका

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