हिमालय की गोद में बहने वाली यारलुंग त्संगपो नदी, जो विश्व की सबसे ऊंचाई पर बहने वाली प्रमुख नदी मानी जाती है, केवल एक जलधारा नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों, जैव विविधता और जलवायु संतुलन की जीवनरेखा है। यह नदी तिब्बत के पवित्र कैलाश पर्वत से निकलकर भारत में ब्रह्मपुत्र नदी का रूप धारण करती है। जुलाई 2025 में चीन द्वारा इस नदी पर विश्व का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर डैम बनाने की शुरुआत ने पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों और दक्षिण एशियाई देशों में चिंता बढ़ा दी है। यह लेख इस नदी के पारिस्थितिक महत्व, वैज्ञानिक भूमिका, ब्रह्मपुत्र से इसके संबंध और मेगा डैम के पर्यावरणीय खतरे पर प्रकाश डालता है। “Yarlung Tsangpo River”
यारलुंग त्संगपो नदी 2025 में चर्चा में क्यों है? “Yarlung Tsangpo River”
चीन ने तिब्बत में यारलुंग त्संगपो पर विश्व का सबसे बड़ा हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम बनाना शुरू किया, जुलाई 2025 में, चीन ने तिब्बत के मेडोग काउंटी में महान “ग्रेट बेंड” क्षेत्र के पास 60 गीगावाट क्षमता वाले हाइड्रोइलेक्ट्रिक डैम के निर्माण की आधिकारिक शुरुआत की। यह डैम थ्री गॉर्जेस डैम से भी बड़ा होगा, लेकिन इससे भारत और बांग्लादेश में जल प्रवाह, भूकंपीय खतरे, जैव विविधता और कृषि पर गंभीर असर पड़ने की आशंका है।
यारलुंग त्संगपो नदी का उद्गम और प्रवाह मार्ग
पैरामीटर | विवरण |
उद्गम | अंगसी ग्लेशियर, कैलाश पर्वत, तिब्बत |
उद्गम देश | चीन (तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र) |
कुल लंबाई | लगभग 2,840 किलोमीटर |
ऊंचाई (स्रोत) | लगभग 5,300 मीटर समुद्र तल से ऊपर |
प्रवाह दिशा | पश्चिम से पूर्व, फिर दक्षिण की ओर भारत |
भारत में प्रवेश | अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नाम से |
अंत बिंदु | बंगाल की खाड़ी (ब्रह्मपुत्र-मेघना डेल्टा) |
यारलुंग त्संगपो की वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक महत्ता “Yarlung Tsangpo River”
पहलू | विवरण |
भूवैज्ञानिक महत्व | विश्व की सबसे गहरी यारलुंग त्संगपो ग्रैंड कैन्यन से होकर बहती है |
ऊंचाई | विश्व की सबसे ऊंचाई पर बहने वाली प्रमुख नदी |
जलवायु भूमिका | मानसून और हिमपिघल प्रवाह संतुलित करती है |
जैव विविधता हॉटस्पॉट | हिमालयी पारिस्थितिकी क्षेत्र में समृद्ध वनस्पति और जीव |
भूकंपीय संवेदनशीलता | सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र, भूस्खलन और भूकंप के खतरे |
जल विज्ञान मूल्य | भारत और बांग्लादेश की कृषि के लिए मुख्य जल स्रोत |
हिमनद निगरानी केंद्र | हिमालयी ग्लेशियर पिघलाव और जलवायु परिवर्तन का प्रमुख संकेतक |
पारिस्थितिक और पर्यावरणीय महत्व
- जैव विविधता संरक्षण – हिमालयी जीव जैसे हिम तेंदुआ, लाल पांडा, और ब्लू पॉपी इस नदी तंत्र पर निर्भर हैं।
- स्थानीय समुदायों का सहारा – तिब्बती और असम, अरुणाचल एवं बांग्लादेश के लोग इस नदी से पेयजल, सिंचाई और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं।
- हाइड्रो-क्लाइमेटिक संतुलन – यह नदी मानसून की तीव्रता और हिमपिघल जल प्रवाह को संतुलित करती है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रहरी – ग्लेशियर पिघलने और अस्थिर वर्षा के कारण यह वैज्ञानिक अध्ययन के लिए अहम है।
यारलुंग त्संगपो और ब्रह्मपुत्र का संबंध “Yarlung Tsangpo River”
विशेषता | यारलुंग त्संगपो | ब्रह्मपुत्र |
उद्गम | अंगसी ग्लेशियर, तिब्बत | यारलुंग त्संगपो का भारत में विस्तार |
बहाव देश | चीन (तिब्बत) | भारत, बांग्लादेश |
नाम परिवर्तन | अरुणाचल में ब्रह्मपुत्र बनती है | भारत में ब्रह्मपुत्र, बांग्लादेश में जमुना |
पारिस्थितिक प्रभाव | ग्लेशियर और कैन्यन पारिस्थितिकी तंत्र | बाढ़ मैदान और डेल्टा क्षेत्र |
सांस्कृतिक महत्व | तिब्बती बौद्ध धर्म में पवित्र | हिंदू धर्म और स्थानीय आदिवासी परंपराओं में पवित्र |
चीन के मेगा डैम प्रोजेक्ट से पर्यावरणीय खतरे
- जैव विविधता का नुकसान – दुर्लभ प्रजातियों के आवास डूब सकते हैं।
- भूकंप और भूस्खलन का खतरा – सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र में निर्माण से आपदा का जोखिम।
- जल प्रवाह में बाधा – भारत और बांग्लादेश में पानी की कमी की संभावना।
- कृषि पर प्रभाव – असम और बंगाल में बाढ़ और सूखे का खतरा।
- भू-राजनीतिक तनाव – अंतर्राष्ट्रीय जल समझौतों पर असर और कूटनीतिक विवाद।
सार (Summary)
यारलुंग त्संगपो नदी न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से अद्वितीय है बल्कि करोड़ों लोगों और पारिस्थितिकी के लिए जीवनरेखा है। चीन का 60 गीगावाट मेगा डैम परियोजना जहां ऊर्जा उत्पादन में मील का पत्थर है, वहीं यह दक्षिण एशिया के पर्यावरण और जलवायु संतुलन को असंतुलित कर सकती है। भविष्य की सतत विकास नीतियों के लिए नदी की पारिस्थितिकी और डाउनस्ट्रीम देशों के जल अधिकारों की रक्षा जरूरी है।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
- यारलुंग त्संगपो नदी कहां से निकलती है?
अंगसी ग्लेशियर, कैलाश पर्वत (तिब्बत) से। - यह ब्रह्मपुत्र से कैसे जुड़ती है?
अरुणाचल प्रदेश में प्रवेश करते ही यह ब्रह्मपुत्र कहलाती है। - वैज्ञानिक दृष्टि से क्यों महत्वपूर्ण है?
विश्व की सबसे गहरी घाटी, उच्च ऊंचाई और जलवायु संतुलन में भूमिका के कारण। - चीन के डैम से क्या खतरे हैं?
जैव विविधता विनाश, भूकंपीय जोखिम और जल प्रवाह में बाधा। - इसकी लंबाई कितनी है?
लगभग 2,840 किलोमीटर। - ग्रेट बेंड क्या है?
नमचा बरवा शिखर के पास नदी का बड़ा यू-टर्न, जहां डैम बनाया जा रहा है। - कौन-कौन से देश प्रभावित हैं?
चीन, भारत और बांग्लादेश।
संदर्भ (References)
- NASA Earth Observatory – हिमालयी नदी प्रणालियां
- International Rivers (2024) – ट्रांसबाउंड्री नदियां और जलविद्युत जोखिम
- WWF India (2023) – ब्रह्मपुत्र पारिस्थितिकी तंत्र
- द हिंदू (2025) – यारलुंग त्संगपो पर चीन का डैम
- IPCC AR6 (2022) – हिमालयी ग्लेशियर बदलाव
- हिंदुस्तान टाइम्स समाचार
- प्रकृति दर्शन – नेचर एंड एनवायरनमेंट मैगज़ीन
- विकिपीडिया
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