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… वाकई हम मुस्कुराना भूल गए हैं
दोस्तों मुस्कुराना जरुरी है, आज के दौर में बेशक मुश्किल है लेकिन यदि जीवन को खूबसूरती से जीना चाहते हैं तो मुस्कुराने को आदत बनाईये। यहां एक बात अवश्य कहना चाहता हूं कि हमारी खुशी से प्रकृति का बड़ा गहरा रिश्ता है, यह अध्ययन में साबित भी चुका है कि प्रकृति के साथ रहने वाले लोग अधिक खुशहाल होते हैं, निरोगी होते हैं क्योंकि प्रकृति उनकी खुशी के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बहुत भाग लिए दोस्तों, विकास की ओर, विकसित होने के लिए हमने मुस्कुराना भी छोड़ दिया, आखिर क्या करेंगे ऐसा विकास लेकर भी जिसमें खुशी ना हो…? यह अंक कई मायनों में बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि विकास की ओर भागने वाले और विकसित हो जाने वाले देश अब खुशी की ओर लौटना चाहते हैं इसीलिए उस पर कार्य भी किया जा रहा है। सोचना होगा कि आखिर विकास के लिए ‘प्रकृति और खुशी’ दोनों को ही दांव पर कैसे लगाया जा सकता है ?
जब यह अंक हमने प्लान किया तब यह विचार आया कि हम विकास की ओर तेजी से अग्रसर होना चाहते हैं, हमें दुनिया के विकसित देशों के साथ चलना है, उनके साथ खड़ा होना है और इसके लिए हम भाग रहे हैं, विकासवादी सोच अच्छी है, प्रयास भी होने चाहिए लेकिन किन मूल्यों पर वह विकास हमें चाहिए इसका निर्धारण और इसका आत्मावलोकन भी तो जरूरी है, हम विकास के लिए तत्पर हैं, हमें चाहिए ही चाहिए लेकिन यह भी सोचें कि हम क्या खो रहे हैं, हमसे क्या छिन रहा है और क्या हम यह भी जानना चाहते हैं कि विकास की दौड़ में हम कहीं किसी क्षेत्र में बहुत पीछे जा रहे हैं, आखिर कहां पिछड़ रहे हैं, क्या यह गहरी चिंता का विषय है…? जी बिल्कुल चिंता का विषय है क्योंकि दुनिया के विकसित और विकासशील देश अब केवल विकास की ओर नहीं भाग रहे अब हैप्पीनेस इंडेक्स पर भी बेहद गंभीरता से कार्य कर रहे हैं। क्या है यह हैप्पीनेस इंडेक्स और हम कहां हैं इस इंडेक्स में….? यह सूची संयुक्त राष्ट्र की ओर से सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशन नेटवर्क द्वारा तैयार की जाती है और इसके कुछ मानक तय किए गए हैं और उन मानकों के अनुसार तय किया जाता है कि कौन सा देश खुशहाल है, यहां आपको बताना चाहते हैं कि वर्ष 2021 की सूची भी जारी हो चुकी है और उसमें उत्तरी यूरोप का एक छोटा सा देश ‘फिनलैंड’ टॉप पर है और यही नहीं वह बीते चार वर्षों से टॉप पर बना हुआ है। अब सहज ही सवाल उठेगा कि इस सूची में हमारा देश कौन से नंबर पर है तो 149 देशों की इस सूची में भारत 139वें नंबर पर है। संक्षिप्त में यह भी बता दें कि चयन के मानक या आधार क्या तय किए गए हैं तो वह यह हैं कि ‘जीडीपी के आधार पर प्रति व्यक्ति आय, सामाजिक सपोर्ट, जन्म के समय स्वस्थ्य जीवन की प्रत्याशा, चयन की स्वतंत्रता, उदारता, देश में व्याप्त भ्रष्टाचार के बारे में जनता की राय’। यह चयन सर्वे के आधार पर किया जाता है।
अब बात करें तो हमारे देश में बहुत बड़ी आबादी है जो शायद यह भी नहीं जानती कि यह हैप्पीनेस इंडेक्स आखिर क्या है, यह गहन चिंतन का विषय है। कभी दुनिया में खुशहाल देश के तौर पर पहचाने जाने वाले भारत को इस सूची में इतनी नीचे पायदान पर देखकर हम सभी को गहरा दुख होना चाहिए क्योंकि हमें समझना होगा कि हम केवल विकास को ही सर्वोपरि रखकर यदि योजनाएं बनाएंगे तब उसके कुछ दूरगामी दुष्परिणाम भी सामने आने तय हैं। हमें यहां सोचना होगा कि विकास की ओर सरपट भागते हुए हमसें क्या छिन रहा है तो सबसे अधिक छिन रही है खुशी। हम बेशक भाग रहे हैं लेकिन भागते हुए हमारे जीवन से खुशी कहीं दूर छिटकती जा रही है, हमें विकास चाहिए तो खुशी के बिना उस विकास के क्या मायने….? हैप्पीनेस इंडेक्स की बात करें तो दुनिया में एक उत्तरी यूरोप का एक छोटा सा देश फिनलैंड चार साल से टॉप है, क्योंकि वहां के लोगों ने खुशी को चुना, विकास के पहले खुशी को जगह दी। यहां बात करना चाहता हूं कि इंडेक्स में शामिल विकसित देशों को देखें तो वह भी काफी पीछे हैं विकास के साथ खुशहाली का सामान्जस्य बैठाने में। आस्ट्रेलिया 11वें नंबर पर, इजराइल 12वें, जर्मनी 13वें और संयुक्त राज्य अमेरिका 19वें नंबर पर है। अब तुलना कर लीजिए कि दुनिया के वे देश जो विकसित कहलाते हैं लेकिन वे इस सूची में टॉप टेन में भी जगह नहीं बना पाए हैं। विकसित देश भी इस सूची में काफी दूर हैं तब हमें सोचना चाहिए कि यदि विकास ही खुशहाली का सबब होता तो टॉप टेन में की सूची में दुनिया के विकसित देश ही नजर आते, लेकिन ऐसा नहीं है। गहन मंथन करें और विचार करें कि हम इतनी नीची पायदान पर कैसे पहुंचे और बेहतर करने के लिए क्या करना चाहिए…। यहां हमें फिनलैंड को पढ़ना चाहिए, उस सूची में टॉप टेन देशों को समझना चाहिए क्योंकि वह इस दिशा में कार्य करने में पूरी निष्ठा से जुटे हुए हैं, खुशी चाहते हैं तो प्रकृति को केंद्र बनाकर सोचना आरंभ कीजिए…क्योंकि खुशी चाहिए तो प्रकृति के हो जाईये।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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