Description
दो बूंद पानी…और पचास वर्ष
जल थोड़ा, स्नेह बहुत, लगा प्रेम का बांध
तू पी, तू पी कहते कहते, दोनों ने तजे प्राण।
दो प्राणी थे एक पुरुष और एक स्त्री। दोनों में बड़ा प्रेम था। इसी बालू के समन्दर में खो गए थे। पास में बस दो बूंद पानी ही रह गया था। पर पानी दोनों में से एक ने भी नहीं पीया। एक दूसरे को कहते कहते मर गए कि तू पी-तू पी।
पचास वर्ष पहले बनी एक फिल्म का आरंभ कुछ इस तरह हुआ था, इसलिए समझाना चाहता हूं तब चेतना भी थी और पानी भी था तभी हमारे आज को संवारने के लिए एक नायाब फिल्म ने आकार ले लिया था। यहां बात करना चाहता हूं कि एक फिल्म की। हम लगभग पचास सालों में पानी को लेकर कितने गहन हो पाए, हमने धरती के ताप को कितना समझा, हमने संकट को कहां तक रोकने के प्रयास किए…। वर्ष 1971 में ख्वाजा अहमद अब्बास के निर्देशन में एक फिल्म बनी थी ‘दो बूंद पानी’ नया संसार बैनर के तहत यह फिल्म बनाई थी। समय मिले तो उस फिल्म को अवश्य देखिएगा कि हमारे आज को उस पुरानी पीढ़ी ने कल ही कितना बखूबी पढ़ लिया था। हम कल भी संकट से भयभीत थे और आज भी, हम कल भी सुधार पर गंभीर नहीं थे आज भी नहीं…फिर दोस्तों कोई जादुई छड़ी नहीं है जिससे हमारा यह संसार पानीदार रह पाएगा, एक दिन हम सब पूरी तरह से सूखने को तैयार हो जाएंगे…या संकट समझिए और सुधार को आगे आईये। एक फिल्म जो कल संकट का अहसास करवा रही थी लेकिन आज साबित कर चुकी है कि जो तब सोचा गया वह वैसा ही है और बदला कुछ भी नहीं…। कैसा भविष्य गढ़ना चाहते हैं और कैसे संभव होगा इस धरती पर बेपानी जीवन!
मप्र का मालवांचल में जहां डग-डग रोटी, पग-पग नीर, की कहावत प्रचलित थी लेकिन वर्तमान में संपूर्ण मालवा भी अन्य हिस्सों की भांति भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण सूखे की ओर बढ़़ रहा है। सोचिएगा कि कितनी खूबसूरत कहावत थी और कितना भरोसा था कि हम ऐसे समृद्व भविष्य के मालिक हैं कि दूर-दूर तक कहीं कोई मुश्किल नहीं है, विचारों में और उस भरोसे में कितना गहन चिंतन था लेकिन बावजूद इसके हम डग-डग रोटी और पग-पग नीर ही कहते रहे गए और नीर हमसे कोसों दूर होता चला गया, अब पग की नहीं पीढ़ियों के संकट की बात है। मैं सोचता हूं कि अपने इस नोट में आपको दुनिया सहित भारत के जलसंकट पर होते खौफनाक आंकडे़ लिखूं लेकिन फिर यह भी समझता हूं कि आंकड़ों से क्या होगा और कौन और उन्हें कितना समझ पाता है। आंकड़ों में तो पानी रोज ही गर्त में उतरता जा रहा है, संकट बढ़ता जा रहा है, सूखे हिस्सों में गर्मी आते ही कंठ सूखने लगते हैं और दैनिक जीवन में पानी का इंतजाम एक आवश्यक कार्य के तौर पर शामिल हो जाता है, जिन हिस्सों में पानी सहज उपलब्ध नहीं है वहां दूरी तक उसे खोजने के लिए कई घंटों का सफर करना पड़ रहा है, शहरी हिस्सों में जहां टैंकर पानी की सप्लाई कर रहे हैं वहां के हालात हैं कि लोग जान की परवाह किए बिना टैंकर पर धक्कामुक्की कर रहे हैं, पलक झपकते ही टैंकर में पाइपों को डालकर अपने हिस्से का पानी खींचने की मजबूरी अब विवादों को जन्म देने लगी है, ऐसे भी स्थान हैं जहां पेयजल की उपलब्धता इतनी मुश्किल हो गई है कि वहां सुरक्षा के लिए पुलिस तक लगानी पड़ जाती है, अनेक ऐसे भी स्थान हैं जहां जल सप्लाय चार दिन, तीन दिन और दो दिन में एक बार हो रही है। पूरा दिन पानी की खोज में बीत रहा है, बावजूद इसके हम उसके महत्व पर गंभीर नहीं है, यहां बहुत सीधी सी बात जो मुझे समझ आती है कि हमने अपना पानी नहीं खोया बल्कि हमने अपनी समझ और चिंतन को भी खो दिया है। हम पानी और प्रकृति के साथ स्वार्थी के जैसा बर्ताव कर रहे हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र, मप्र के अनेक जिले, राजस्थान जैसे प्रदेशों के लिए तो गर्मी एक महामुश्किल समय साबित हो रहा है। सबकुछ बिगड़ता जा रहा है, ढहता रहा है लेकिन सुधार पर कोई जमीनी लड़ाई अब तक आरंभ नहीं हुई है, सोचिएगा कि जलसंकट यदि इसी तरह गहराता रहा और हम इसी तरह जलस्त्रोतों को लेकर नासमझ बने रहे तो कैसे बचेगा इस धरा और भावी पीढ़ी के लिए पानी। अब बात करें कि जिन हिस्सों में पानी है, आसपास के हिस्सों में नदियां हैं जिन्होंने अब तक संकट क्या होता है देखा नहीं है केवल सुना है, वे बहुत अधिक नादानी में जी रहे हैं क्योंकि संकट का दायरा बढ़ता जा रहा है, आज जो क्षेत्र सूखे हैं या सूख रहे हैं या बेपानी हैं वे कल पानीदार थे, लेकिन अब भी यदि इस विषय पर हमारा समाज गंभीर नहीं हुआ तो यकीन मानिए कि वाकई हम दो बूंद पानी को तरस जाएंगे।
संदीप कुमार शर्मा,
प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन
- Saraswati River: Mythology, History, Scientific Evidence, and Lost River Discovery Explained - July 2, 2025
- Rare Jupiter-Sized Planet Discovered Using Einstein’s Predicted Gravitational Microlensing Phenomenon - July 1, 2025
- Acidic Ocean: A Silent Crisis Threatening Marine Life and Climate Balance - July 1, 2025
Reviews
There are no reviews yet.