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OCTOBER 2022 सहेजिए जलस्रोत, ताकि बची रहे मुस्कान

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DECEMBER 2022 रुपहले परदे पर प्रकृति

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November 2022 रहने दीजिए वायु में प्राण

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सोचिएगा कि क्या हम पर्यावरण सुधारने के लिए कुछ कर रहे हैं, अपने अपने स्तर पर हमारा क्या योगदान है, क्या हम अपनी हरेक श्वास के बदले प्रकृति को कुछ लौटा रहे हैं ? हां तो क्या और कितना और नहीं तो क्यों नहीं…सोचिएगा क्योंकि अब वह दौर नजदीक है जब आप इस विषय पर बहाने नहीं बना पाएंगे क्योंकि सीधे सुधार के लिए कमर कस हमें मैदान में कूदना होगा…सोचना होगा कि किस तरह हम अपने हरेक दिन से प्रकृति और वायु में प्राण देने की शक्ति लौटा सकते हैं।

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Description

प्राण खोती जा रही है वायु

जीवित रहना चाहते हैं तो हमें अपने पर्यावरणीय वातावरण को सुधारना ही होगा, बहुत सीधा सा सवाल है कि जीवन और भविष्य हम कैसा चाहते हैं? हम बच्चों का जीवन कितना और कैसा चाहते हैं? सोचिएगा क्योंकि जिस गति से पर्यावरण खराब हो रहा है उसे सुधारना एक वक्त में असंभव हो जाएगा क्योंकि प्राणवायु तेजी से प्राण देने की ताकत खोती जा रही है और उसमें प्रदूषण का जहर घुलता जा रहा है। प्रदूषण विश्व की समस्या है लेकिन चिंता की बात यह है कि हमारे बहुत से शहरों की (एक्यूआई) एयर क्वालिटी इंडेक्स चिंता बढ़ा रही है। विशेषकर दिल्ली और एनसीआर सहित देश के महानगरों के हालात चिंतनीय होने लगे हैं। प्रदूषण हमारे और प्रकृति दोनों के लिए खतरनाक है। देश की राजधानी और एनसीआर के फेफड़े और दम अब फूलने लगा है, इस हिस्से के रहवासी जानते हैं कि प्रदूषण में जीने का दर्द क्या है? हालांकि सुधार के प्रयास हो रहे हैं लेकिन वे जनसामान्य के सहयोग और जागरुकता के बिना अधूरे हैं।
सोचिएगा कि वायु ही वायु शेष रह जाए और उसमें से प्राण देने की ताकत पूरी तरह से समाप्त हो जाए तब कैसे जीवित रहेंगे, कैसे हमारे बच्चे उस दौर में जीएंगे और कैसे वे अपने जीवन का निर्वहन करेंगे। यह भी सोचिएगा कि हमारा मासूम पीठ पर अपने से कई गुना वजनी ऑक्सीजन सिलेंडर को टांगकर कितना दूरी तय कर पाएगा?
यह भी सोचिएगा कि प्रदूषण जीव जन्तुओं और मासूम परिंदों के जीवन पर किस तरह कहर बनकर टूटता है, वे तो स्वच्छंद हैं और वे प्रदूषण के दोषी भी नहीं हैं, उनका कोई पाप नहीं है लेकिन सजा उनके हिस्से भी है।
यह भी सोचिएगा कि नवजात शिशुओं के फेफड़ों में यह प्रदूषण कितना जहर घोल जाएगा और वे हमारे से संसार में जीने के सपने देखने लायक भी नहीं बचेंगे। इसी तरह हमारे बुजुर्ग जिनके लिए शुद्व वायु बेहद जरुरी है उनकी बीमार सुर्ख आंखें क्या हमें माफ कर पाएंगी…।
यह भी सोचिएगा कि आज इतना खौफनाक है तो कल क्या होगा और कैसा होगा?
यह भी सोचिएगा कि क्या हम पर्यावरण सुधारने के लिए कुछ कर रहे हैं, अपने अपने स्तर पर हमारा क्या योगदान है, क्या हम अपनी हरेक श्वास के बदले प्रकृति को कुछ लौटा रहे हैं ? हां तो क्या और कितना और नहीं तो क्यों नहीं…सोचिएगा क्योंकि अब वह दौर नजदीक है जब आप इस विषय पर बहाने नहीं बना पाएंगे क्योंकि सीधे सुधार के लिए कमर कस हमें मैदान में कूदना होगा…सोचना होगा कि किस तरह हम अपने हरेक दिन से प्रकृति और वायु में प्राण देने की शक्ति लौटा सकते हैं।

संदीप कुमार शर्मा,
प्रधान संपादक, प्रकृति दर्शन

BALA DATT

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