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2023 से कहेंगे कि 22 में हम 20 नहीं 21 साबित हुए
नववर्ष में कुछ ऐसा कर जाएं कि अगले वर्ष हमें अपने आप पर, अपने समाज पर, अपनी मानव जाति पर गर्व हो, यदि प्रकृति इसी तरह कोप सहती रही, धरती का तापमान बढ़ता रहा, नदियां सूखती रहीं और बेमौसम बाढ़ और तूफान दस्तक देते रहे, ग्लेशियर यूं ही पिघलते रहे, महामाीरयां यू ही हमारे जीवन को तहस-नहस करती रहीं और हम शतरंज के एक मामूली प्यादे की भांति जीकर सुधार का कोई हिस्सा नहीं हो पाए। तब अगले वर्ष केवल दिन बदलेंगे, 31 दिसंबर के बाद 1 जनवरी आएगी, बेशक 22 से हम 23 में प्रवेश कर जाएंगे लेकिन ऐसा हुआ भी तो क्या फर्क पड़ेगा।
मेरा स्पष्ट मानना है कि हमें अपनी खूबसूरत दुनिया और सौंदर्य से परिपूर्ण प्रकृति को बचाना होगा, बेशक बहुत सी आपदाएं मानव जनित हैं, लेकिन हमें समझना होगा कि कहीं वैश्विक बाजार हमारी और हमारे बच्चों की दिशा तय करने की कोई साजिश तो नहीं कर रहा है और इसका प्रभाव प्रकृति पर कितना घातक साबित हो रहा है। हमें अंदर से बेहद मजबूत और सजग रहने की आवश्यकता है। साथ ही हमें सभी प्रमुख विषयों पर अपडेट रहना होगा क्योंकि सुधार के लिए कोई शुंरुआत कररने से पहले हमें अपनी वैचारिक परिपक्वता का आकलन कर लेना चाहिए।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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