यह लेख उन कछुओं की विभिन्न प्रजातियों – जैसे समुद्री कछुआ (Sea Turtle), ऑलिव रिडले सी टर्टल (Olive Ridley Sea Turtle), रेड इयर्ड स्लाइडर (Red Eared Slider Turtle), रेड इयर्ड टैरेपिन (Red Eared Terrapin) आदि – की पहचान, खासियत, आवास, संकट और जैव विविधता में भूमिका पर केंद्रित है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों और इनकी घटती संख्या पर भी चर्चा की गई है। Turtle कछुआ की दुनिया अदभुत है।
समुद्री कछुआ, ऑलिव रिडले, रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ, रेड स्लाइडर कछुआ, रेड इयर्ड टर्टल, रेड इयर्ड टैरेपिन, रेड आई टर्टल
कछुआ (Turtle) पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे पुराने जीवों में से एक है, जिनकी उत्पत्ति 20 करोड़ वर्ष पहले मानी जाती है। इनका कठोर खोल, धीमी गति और लंबी उम्र इन्हें विशेष बनाती है। कछुओं की कई प्रजातियाँ हैं, जिनमें कुछ थल पर तो कुछ जल में पाई जाती हैं। इस लेख में हम उनके वैज्ञानिक, पारिस्थितिकीय और संरक्षण पक्षों को विस्तार से समझेंगे। साथ ही इसी लेख में हम देखेंगे कि कछुआ, समुद्री कछुआ, ऑलिव रिडले, रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ, रेड स्लाइडर कछुआ, रेड इयर्ड टर्टल, रेड इयर्ड टैरेपिन, रेड आई टर्टल – सभी की खासियत, खूबियां, रहवास, संख्या, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, भविष्य और जैव विविधता में भूमिका क्या है। कछुआ (Turtle) की दुनिया अदभुत है उसका संरक्षण जरुरी है। कछुओं का संरक्षण बेहद महत्वपूर्ण है इस दिशा में वैश्विक प्रयास हो रहे हैं।
Turtle कछुआ की दुनिया
कछुए (Turtles) पृथ्वी पर सबसे प्राचीन जीवों में गिने जाते हैं। इनकी कुछ प्रजातियाँ जल में तो कुछ थल पर पाई जाती हैं। यह जीव न केवल पारिस्थितिक तंत्र में संतुलन बनाए रखते हैं बल्कि समुद्री और जलीय जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
प्रमुख प्रजातियाँ जिनकी हम इस लेख में चर्चा करेंगे:
समुद्री कछुआ (Sea Turtle)
ऑलिव रिडले समुद्री कछुआ (Olive Ridley Sea Turtle)
Red Eared Slider Turtle-रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ
रेड स्लाइडर टर्टल (Red Slider Turtle)
रेड इयर्ड टैरेपिन / रेड ईयर टर्टल (Red Eared Terrapin / Red Eye Turtle)
Sea Turtle समुद्री कछुआ : महासागरों का मूक रक्षक
भूमिका
समुद्री कछुआ (Sea Turtle) एक विशेष प्रकार का कछुआ (Turtle) है, जो अपना अधिकांश जीवन समुद्र में व्यतीत करता है। यह प्राचीन प्रजाति समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। समुद्र में प्रवाल भित्तियों और समुद्री घास के मैदानों को संरक्षित रखने में समुद्री कछुए अहम भूमिका निभाते हैं।
समुद्री कछुआ की पहचान और विशेषताएँ
इनका शरीर कठोर, चिकने और जल-गतिकीय खोल से ढका होता है।
इनके आगे के दो पैर फिन (paddle) जैसे होते हैं, जो इन्हें समुद्र में तैरने में मदद करते हैं।
ये हर साल लंबी दूरी तय करते हैं और अपने जन्मस्थान पर लौटकर अंडे देते हैं।
समुद्री कछुआ शाकाहारी, मांसाहारी या सर्वाहारी हो सकता है, प्रजाति पर निर्भर करता है।
उदाहरण: ऑलिव रिडले, हॉक्सबिल, ग्रीन टर्टल, लॉगरहेड टर्टल और लैदरबैक टर्टल जैसी प्रजातियाँ।
प्रमुख निवास स्थान (Habitat)
विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय महासागरों में पाए जाते हैं।
भारत में ये मुख्य रूप से ओडिशा (गहिरमाथा, रुशिकुल्या, देवी नदी तट), आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और अंडमान-निकोबार द्वीपों में पाए जाते हैं।
ऑस्ट्रेलिया, मेक्सिको, ब्राज़ील, अमेरिका और कोस्टा रिका भी इनका प्रमुख बसेरा है।
समुद्री कछुओं की संख्या और स्थिति
दुनिया भर में समुद्री (Turtle) की अधिकांश प्रजातियाँ संकटग्रस्त (Endangered) या अति संकटग्रस्त (Critically Endangered) हैं।
भारत में पाए जाने वाले ऑलिव रिडले समुद्री कछुए (Olive Ridley Sea Turtle) की स्थिति “Vulnerable” मानी जाती है।
IUCN रेड लिस्ट (2024) के अनुसार, लैदरबैक और हॉक्सबिल जैसी प्रजातियाँ “Critically Endangered” श्रेणी में हैं।
समुद्री कछुआ और जलवायु परिवर्तन
जलवायु परिवर्तन से समुद्री कछुए बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं:
समुद्र का तापमान बढ़ने से उनके अंडों से निकलने वाले बच्चों का लिंग अनुपात बदल रहा है (ज़्यादातर मादा जन्म ले रही हैं)।
समुद्री जलस्तर बढ़ने से अंडों के घोंसले डूब जाते हैं।
समुद्र की धाराओं में बदलाव उनके प्रवास मार्गों को प्रभावित करते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से वे भोजन समझकर प्लास्टिक खा लेते हैं, जिससे मौत हो सकती है।
समुद्री कछुए का पारिस्थितिकीय योगदान
कछुआ (Turtle) महासागरीय जीवन को संतुलन प्रदान करता है:
ग्रीन टर्टल समुद्री घास को नियंत्रित करते हैं जिससे समुद्री घास के मैदान स्वस्थ रहते हैं।
हॉक्सबिल टर्टल स्पंज खाते हैं जिससे प्रवाल भित्तियों पर अधिक स्पंज न पनपे और जैव विविधता बनी रहे।
इनके अंडे और बच्चे अनेक जीवों के लिए भोजन का स्रोत होते हैं — जैसे पक्षी, केकड़े, मछलियाँ।
संरक्षण के प्रयास
भारत और विश्व स्तर पर समुद्री कछुए के संरक्षण के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं:
गहिरमाथा मरीन सेंचुरी, ओडिशा में ऑलिव रिडले कछुओं के लिए संरक्षित क्षेत्र।
मछली पकड़ने के जालों में TEDs (Turtle Excluder Devices) का प्रयोग अनिवार्य किया गया है।
भारत सरकार और WWF जैसे संगठनों द्वारा समुद्री कछुआ जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं।
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत समुद्री कछुओं को संरक्षण प्राप्त है।
भविष्य की दिशा
समुद्री कछुआ (Turtle) के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए निम्नलिखित उपाय आवश्यक हैं:
समुद्री तटों की रक्षा — रेत खनन और अतिक्रमण को रोकना।
प्लास्टिक उपयोग में कमी — एकल उपयोग प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबंध।
मछली पकड़ने के तरीकों में सुधार — TEDs का पालन।
आम जनता में जागरूकता फैलाना — स्कूलों, पर्यटन स्थलों और मीडिया के माध्यम से।
Turtle कछुआ की विविधताओं में एक अनोखा नाम — ऑलिव रिडले
हल्के समुद्री कछुआ प्रजातियों में से एक है Olive Ridley Sea, सामूहिक अंडा देने की घटना ‘अरिबाडा’ Arribada के लिए प्रसिद्ध है। Olive Ridley Sea Turtle प्रजाति का नाम इसकी जैतूनी-हरी खोल (carapace) की रंगत के आधार पर पड़ा है। यह प्रजाति समुद्र और तट के पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने में कछुआ की दुनिया महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्राकृतिक आवास और वितरण (Habitat & Distribution)
ऑलिव रिडले समुद्री कछुआ उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय समुद्रों में पाया जाता है। यह मुख्यतः:
भारत (विशेषतः ओडिशा के तट – गहिरमाथा, रुशिकुल्या और देवी नदी तट)
श्रीलंका
ऑस्ट्रेलिया
पश्चिमी अफ्रीका
कोस्टा रिका
ब्राज़ील
जैसे देशों के तटों पर बड़ी संख्या में देखा जाता है।
भारत में ये कछुआ (Turtle) बड़े पैमाने पर सामूहिक अंडा देने के लिए आने वाली प्रमुख प्रजाति है।
कछुआ (Turtle) की दुनिया– अद्भुत घटना
ऑलिव रिडले कछुआ (Turtle) की सबसे खास बात यह है कि मादा कछुए साल में एक या दो बार हज़ारों की संख्या में एक ही समुद्र तट पर अंडे देने के लिए आते हैं। इसे ही अरिबाडा कहते हैं, जो विश्व की सबसे अद्भुत प्राकृतिक घटनाओं में से एक है।
एक अरिबाडा में 50,000 से अधिक मादा कछुए एक साथ अंडे देने आते हैं।
ऐसा माना जाता है कि लगभग 100 से 120 अंडे देती है (मादा कछुआ)
इसके अंडों को लेकर ये महत्वपूर्ण जानकारी है कि बालू में गहराई में दबाए जाते हैं, लगभग 45-60 दिन बाद बच्चे बाहर निकल आते हैं।
शारीरिक विशेषताएँ (Physical Features)
विशेषता विवरण
वैज्ञानिक नाम Lepidochelys olivacea
औसत वजन 35 से 45 किलोग्राम
खोल की लंबाई लगभग 60–70 सेंटीमीटर
रंग जैतूनी-हरा (Olive Green)
जीवनकाल औसतन 50 वर्ष या अधिक
ऑलिव रिडले कछुआ (Turtle) देखने में आकर्षक होता है, और अपने आकार के अनुसार समुद्री जीवन में अत्यधिक अनुकूलनीय है।
संकट और खतरे (Threats & Challenges)
हालाँकि ऑलिव रिडले समुद्री कछुआ की संख्या अन्य समुद्री कछुओं की तुलना में अधिक है, फिर भी यह कई खतरों का सामना कर रहा है:
1. मत्स्य उद्योग के जाल — ये कछुए अक्सर मछलियों के जाल में फँस कर मर जाते हैं।
2. तटीय विकास — समुद्र तटों पर होटलों, बंदरगाहों, और रोशनी के कारण अंडा देने का स्थान बाधित होता है।
3. अवैध शिकार — अंडों और मांस की अवैध बिक्री।
4. प्लास्टिक प्रदूषण — प्लास्टिक को भोजन समझकर निगलने से इनकी मृत्यु होती है।
5. जलवायु परिवर्तन — तापमान में वृद्धि से अंडों का लिंग अनुपात बिगड़ रहा है, जिससे केवल मादा कछुए ही जन्म ले रहे हैं।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
सबसे आश्चर्यजनक बात तो यह है कि Turtle-कछुआ के अंडों के लिंगों निर्धारण तापमान पर निर्भर होता है।
तापमान में वृद्धि से मादा कछुओं की संख्या अधिक हो रही है, जिससे संतुलन बिगड़ रहा है।
समुद्र तटों का क्षरण (Erosion) और समुद्री जलस्तर में वृद्धि अंडा देने के स्थानों को नष्ट कर रहे हैं।
संरक्षण प्रयास (Conservation Efforts)
भारत और विश्वभर में इस कछुआ (Turtle) की रक्षा के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं:
1. गहिरमाथा मरीन सेंचुरी (Odisha) — भारत का पहला समुद्री जीव अभयारण्य।
2. Turtle Excluder Devices (TEDs) — मछली पकड़ने के जाल में लगने वाले उपकरण जो कछुओं को बचाने में मदद करते हैं।
3. IUCN रेड लिस्ट — ऑलिव रिडले को ‘Vulnerable’ श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
4. WWF, ZSI, MoEFCC जैसी संस्थाएँ समुद्री कछुओं पर शोध एवं संरक्षण अभियान चला रही हैं।
कछुआ (Turtle) की दुनिया- पारिस्थितिकीय योगदान (Ecological Importance)
कछुआ (Turtle) समुद्री घास के मैदानों को नियंत्रित करता है, जिससे अन्य जीवों को आश्रय और भोजन मिलता है।
अंडों की असफलता से बालू में जैव पोषण मिलता है जो समुद्र तट की उर्वरता को बढ़ाता है।
यह समुद्री पारिस्थितिकी में खाद्य श्रृंखला का अहम हिस्सा है।
भविष्य की दिशा: हमें क्या करना चाहिए?
समुद्री तटों की सुरक्षा — अंडा देने के स्थानों को संरक्षित करना।
स्थानीय समुदाय की भागीदारी — मछुआरों को प्रशिक्षण और जागरूकता देना।
पालतू कछुओं को न छोड़ना — विशेषकर विदेशी प्रजातियाँ पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती हैं।
शोध और निगरानी — आंकड़ों के संग्रह से संरक्षण की दिशा तय करना।
कछुआ (Turtle) की विविधताओं में एक अनोखा नाम — ऑलिव रिडले
ऑलिव रिडले प्रजाति का नाम इसकी जैतूनी-हरी खोल की रंगत के आधार पर पड़ा है। यह प्रजाति समुद्र और तट के पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Turtle) की विविधता में एक विदेशी प्रजाति
(Red Eared Slider Turtle) रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ एक अर्ध-जलजीवी विदेशी कछुआ (Turtle) है, जो विश्वभर में पालतू जानवर के रूप में लोकप्रिय हो चुका है। इसके सिर के पास लाल रंग की धारियों के कारण देखने में आकर्षक है, लेकिन एक चिंतन वाला पक्ष यह भी है कि पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा है।
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ की पहचान और विशेषताएँ
वैज्ञानिक नाम: Trachemys scripta elegans
मूल निवास स्थान: दक्षिणी अमेरिका, विशेषकर मिसिसिपी नदी बेसिन।
वयस्क की लंबाई 15–30 सेमी तक होती है, 20 से 30 वर्ष तक जीवित रह सकता है।
रंग और आकार: हरे-भूरे रंग का शरीर, सिर के पीछे लाल रंग की स्पष्ट धारियाँ।
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Turtle) तेज़ी से तालाबों, झीलों और धीमी गति के नदियों में फैल जाता है और स्थानीय कछुआ प्रजातियों के लिए खतरा बनता है।
निवास और प्रसार: भारत में इसका आगमन कैसे हुआ?
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ मूलतः अमेरिका का निवासी है लेकिन इसे दुनिया भर में पालतू जानवर के रूप में पाला जाने लगा। भारत में भी इसे एक सुंदर, आसानी से पालने योग्य पालतू कछुआ (Turtle) मानकर घरों में पाला गया। लेकिन जैसे-जैसे लोग इसे छोड़ने लगे, यह प्राकृतिक जल निकायों में फैलने लगा और अब यह देश की जैव विविधता के लिए खतरा बन चुका है।
कछुआ (Turtle) की दुनिया- जैव विविधता पर प्रभाव: यह कछुआ कैसे बन गया खतरा?
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Turtle) भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए आक्रामक विदेशी प्रजाति (Invasive Alien Species) घोषित किया गया है। इसके द्वारा उत्पन्न प्रमुख खतरे निम्नलिखित हैं:
भारतीय मूल की छोटे आकार की प्रजातियों से भोजन और स्थान के लिए प्रतिस्पर्धा करता है।
यह जलाशयों में शैवालों की वृद्धि को असंतुलित करता है।
स्थानीय कछुआ प्रजातियों की संख्या घटा रहा है, जिससे संपूर्ण पारिस्थितिकीय तंत्र प्रभावित हो रहा है।
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ और कछुआ (Turtle) संरक्षण के प्रयास
भारत सरकार और कई पर्यावरण संस्थाएँ अब इस विदेशी कछुआ (Turtle) पर नियंत्रण पाने हेतु जागरूकता फैला रही हैं। मुख्य प्रयासों में शामिल हैं:
पालतू कछुओं को प्राकृतिक जल स्रोतों में न छोड़ने की अपील।
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत गैर-स्थानीय प्रजातियों की बिक्री पर निगरानी।
शोध एवं निगरानी कार्यक्रमों के माध्यम से इनकी संख्या पर अध्ययन।
जलवायु परिवर्तन और रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ
जहाँ कई मूल प्रजातियाँ जलवायु परिवर्तन से संघर्ष कर रही हैं, वहीं रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Turtle) में अधिक अनुकूलन क्षमता पाई जाती है। इसके कारण यह तेज़ी से फैल रहा है और उन प्रजातियों के लिए चुनौती बनता जा रहा है जो पहले से ही संकटग्रस्त हैं।
भविष्य की दिशा: समाधान और सामूहिक जिम्मेदारी
रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Turtle) पर नियंत्रण के लिए जन-जागरूकता, शिक्षा और कठोर नीति लागू करना आवश्यक है। आम नागरिकों को समझना होगा कि पालतू जानवरों की ज़िम्मेदारी छोड़ देने से प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान हो सकता है।
समाधान:
रेगुलेटेड व्यापार और आयात प्रतिबंध।
स्थानीय जैव विविधता के संरक्षण कार्यक्रमों में निवेश।
स्कूल स्तर पर पर्यावरण शिक्षा में ऐसे विषयों को शामिल करना।
कछुआ (Turtle) की दुनिया- रेड स्लाइडर टर्टल / रेड इयर्ड टैरेपिन / रेड आई टर्टल
विशेषताएँ:
ये सभी नाम दरअसल रेड इयर्ड स्लाइडर कछुए के ही हैं।
ये कछुए छोटे तालाबों और एक्वैरियम में भी रह सकते हैं।
निवास स्थान:
घरों में पालतू रूप में, कृत्रिम जलाशयों में।
पर्यावरणीय समस्या:
इन्हें छोड़ने पर ये स्थानीय प्रजातियों के लिए खतरा बनते हैं।
जैव विविधता में कछुओं का योगदान
समुद्री कछुए समुद्र तल की वनस्पति संतुलित रखते हैं, जिससे मत्स्य पालन और प्रवाल भित्तियों को बल मिलता है।
रेड इयर्ड स्लाइडर जैसे कछुए जल में पाए जाने वाले कीड़े-मकोड़े व शैवालों की मात्रा संतुलित रखते हैं।
अंडों से निकलने वाले कुछ अंडे और बच्चे पक्षियों, केकड़ों व अन्य जानवरों का आहार भी बनते हैं, जिससे खाद्य श्रृंखला बनी रहती है।
भविष्य क्या है?
यदि जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण, और मानवीय हस्तक्षेप ऐसे ही जारी रहे तो अधिकांश कछुए विलुप्ति के कगार पर पहुँच सकते हैं।
हालांकि संरक्षण प्रयास जैसे:
“ऑलिव रिडले संरक्षण परियोजना” (भारत),
“टर्टल फ्रेंडली फिशिंग नेट्स”,
“सागरमाथा कछुआ जागरूकता अभियान”
सकारात्मक संकेत देते हैं।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q1. रेड इयर्ड स्लाइडर कछुआ क्या है?
उत्तर: यह एक अर्ध-जलजीव कछुआ है जिसकी पहचान कानों के पास की लाल धारियों से होती है। यह पालतू के रूप में पाले जाने वाला लोकप्रिय कछुआ है।
Q2. ऑलिव रिडले सी टर्टल का सबसे बड़ा खतरा क्या है?
उत्तर: प्लास्टिक प्रदूषण, मछली पकड़ने के जाल, और अंडों के लिए उचित तटीय स्थल का अभाव।
Q3. कछुए जैव विविधता के लिए क्यों जरूरी हैं?
उत्तर: ये समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र, खाद्य श्रृंखला और तटीय जीवन के संतुलन को बनाए रखते हैं।
Q4. क्या रेड इयर्ड टर्टल भारत में स्थानीय प्रजाति है?
उत्तर: नहीं, यह अमेरिका से लाई गई विदेशी प्रजाति है जो अब भारत में पाई जाती है।
पृथ्वी की जैव विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
Turtle, sea turtle, olive ridley sea turtle, red eared slider turtle, red slider turtle, red eared turtle, red eared terrapin, red eye turtle – ये सभी न केवल प्राकृतिक सुंदरता के प्रतीक हैं बल्कि पृथ्वी की जैव विविधता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आज जब जलवायु परिवर्तन और मानव हस्तक्षेप के कारण इनका अस्तित्व खतरे में है, तो हमारा कर्तव्य है कि इनके संरक्षण के प्रयासों में सक्रिय भाग लें।
संदर्भ (References):
- WWF India – Sea Turtle Conservation Project
- IUCN Red List Database
- Ministry of Environment, Forest and Climate Change, India
- Turtle Survival Alliance
- National Geographic – Turtle Facts
- · IUCN Red List (2024) — https://www.iucnredlist.org
- · WWF India: Marine Turtle Conservation Programme — https://www.wwfindia.org
References
- · MoEFCC India — भारत सरकार का पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
- · Zoological Survey of India Reports on Sea Turtles
- · National Geographic – Sea Turtle Facts
- · Odisha Forest Department – Gahirmatha Marine Sanctuary Documentation
- · IUCN Red List of Threatened Species – https://www.iucnredlist.org
- · WWF India – Marine Turtles Conservation – https://www.wwfindia.org
- · MoEFCC (Ministry of Environment, Forest and Climate Change)
- · Zoological Survey of India Reports (2024)
- · National Geographic – Sea Turtles
- · Odisha Forest Department – Gahirmatha Marine Sanctuary Reports
- · MoEFCC India (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय)
- · IUCN Invasive Species Database (2024)
- · WWF India: Freshwater Turtle Conservation
- · The Hindu – “The silent invasion of red-eared slider turtles in India”
- · NCBI Research Paper: Impact of Trachemys scripta elegans on native turtle species
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