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इंदौर हो जाना कठिन है, लेकिन असंभव नहीं
जो इंदौर को पूर्व के वर्षो में देख चुके हैं उनके लिए वर्तमान इंदौर और उसका चेहरा चमत्कृत करने वाला ही है क्योंकि इस शहर ने एक बदलाव को आत्मसात किया है। सात बार किसी भी शहर को स्वच्छता को लेकर अवार्ड मिलना और नंबर वन पर कायम रहना आसान नहीं है। इंदौर ने सिखाया है कि सफलता पाना और उसमें निरंतरता बनाए रखना मुश्किल नहीं है। मैं कहना चाहता हूं कि इंदौर हो जाना कठिन है लेकिन असंभव कतई नहीं है क्योंकि हर शहर यदि इंदौर की तरह विचारधारा बनाए और उसमें पूरी तत्परता से जुट जाए तो राह असंभव नहीं है।
देश के दूसरे राज्यों, शहरां और कस्बों में एक बात अवश्य होती होगी कि आखिर हर बार इंदौर ही क्यों ? क्या खास है इंदौर में, ऐसा क्या बदल गया इस शहर में कि देश के दूसरे महानगरों और शहरों को पीछे छोड़ता हुआ यह हमेशा नंबर 1 पर काबिज हो जाता है। जानना तो चाहिए कि इंदौर में क्या बदला और कैसे बदला। हम इस अंक में हम इंदौर को समझेंगे और जानेंगे कि आखिर क्या सीखा, कैसे सीखा और क्या उस सीख में दूसरों शहरों और कस्बों के लिए भी कोई सीख छिपी है। इस अंक को अवश्य पढ़िएगा क्योंकि यह केवल एक अंक नहीं है बल्कि इस दौर में बदलाव का एक शंखनाद है, बदलाव भी स्वच्छता को लेकर।
आप और हम सभी भलीभांति जानते हैं कि स्वच्छता के बिना हजार बीमारियां और लाखों संकट हैं लेकिन जहां स्वच्छता है वहां खुशहाली का वास होता है। इंदौर के विषय में केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि यह बात अब स्पष्ट है कि यदि प्रयास समग्र हों और उसमें सभी की सहभागिता हो, हरेक व्यक्ति अपने कर्तव्य को समझे और सबसे अहम बात यह है कि वह उस शहर को, उसके हरेक हिस्से को अपना मानें। जब आपका मन अपने शहर के किसी भी हिस्से में एक छोटी सी कचरे की थैली फैंकने में धिक्कारने लगे, आपके अंदर से आवाज आने लगे कि यह गलत है, यह कहीं न कहीं उन असंख्य लोगों के भरोसे पर कुठाराघात है, विश्वासघात है जो सफाई को लेकर एक शहर बना रहे हैं, एक परिभाषा रच रहे हैं तब मानिए कि आपका शहर इंदौर हो गया, इंदौर होने के पथ पर अग्रसर हो गया। इंदौर ने यह सब करिश्मा यूं नहीं कर दिखाया इसमें आम जन से लेकर प्रशासनिक तंत्र की प्रमुख भूमिका रही है। हमें समझना होगा कि हम अपने शहर को गंदा करने के पहले खुद को भी रोकें और दूसरों को भी। यही जागरुकता एक दिन हर शहर, हर गांव और हर प्रदेश को स्वच्छता के पहले पायदान पर ले आएगी।
इंदौर से सीखिए, वहां आकर रहवासियों से बात कीजिए और समझिए कि सुधार कैसे हो सकता है फिर जुट जाईये अपने अपने शहरों में, कस्बों में, गांवों में। पहले शुरुआत अपने आप से अपने मन से कीजिए क्योंकि जब तक मन में मलिनता है वह स्वच्छ नहीं है हम कोई सुधार नहीं कर पाएंगे। जीतने के लिए अपने आप से भागना बंद करें और अपने मन की सुनकर उसे अपने शहर को अपना मानना और महसूस करना अवश्य सिखाएं।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन
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