Description
नमक वाले उस दौर को आने से रोक दें
अपनी बात आरंभ करने से पहले मैं जलपुरुष आदरणीय राजेंद्र सिंह जी के एक कथन को दोहराना चाहता हूं। वह कहते हैं कि पानी की मिठास पर हमारी संस्कृति और सभ्यता की मिठास भी निर्भर है जिन हिस्सों में पानी खारा हो गया या सूख गया वहां सभ्यता और संस्कृति भी खारी हो जाती है, सूख जाती है।
हमें यह स्वीकार कर लेना चाहिए कि जल हमारे जीवन, व्यवहार, आचार और विचार सभी पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। मीठे जल वाले हमारे देश की संस्कृति पूरे विश्व के लिए उदाहरण है क्योंकि हमारे यहां सबसे अनूठी और अदभुत गंगा प्रवाहित होती है। वाकई उन सभी व्यक्तियों को सहज ही सम्मान देने का मन करता है जो जल की बात करते हैं, जल से सभ्यता और संस्कृति को जोड़कर देखते हैं, संस्कृति और जल से हमारे आने वाले कल को जोड़कर देखते हैं। बिना मीठे जल के कैसा कल…। सोचिएगा कि केवल खारे जल के साथ वह कल यदि आपके जीवन में आ गया तब इस मीठे पानी को आप अमृत कहना आरंभ कर देंगे लेकिन तब तक बहुत देर हो जाएगी क्योंकि यह मीठा जल वाकई अमृत हो जाएगा और अमृत केवल कहानियों और किस्सों में पढ़ा जाता है तो क्या हम मीठे जल को उसी अमृत वाले कथा क्षेत्र में धकलने को आतुर हैं ?
मैंने मध्यप्रदेश और राजस्थान में जलसंकट को बहुत करीब से देखा है, हतप्रभ हूं जब इंदौर जिले के एक क्षेत्र गौतमपुरा में एक समय यह भी आया था कि सात दिनों में एक बार पानी की सप्लाय होना आरंभ हो गई थी। सोचिएगा कहां तब आ पहुंचे हैं हालांकि वह एक समय था, लेकिन अब भी कहीं एक दिन तो कही दो छोड़कर जल सप्लाय की जाती है। बात करें गर्मियों की तो पानी टैंकरों से वितरित किया जाता है लेकिन जिस तरह उस पानी पर छीना छपटी होती है उसमें हम आने वाले कल को देख सकते हैं, यह तस्वीर गर्मियों की होती है लेकिन यदि नहीं चेते तो हर मौसम यूं हम पानी के लिए लड़ते हुए पानी-पानी होते रहेंगे।
मेरी नजरें शर्म से झुक जाती हैं जब में उन हिस्सों में होता हूं जहां अभी तक जलसंकट ने दस्तक नहीं दी है, उत्तर भारत के बहुत से हिस्से हैं जहां नदियों के होने के कारण अभी जलसंकट नहीं आया है लेकिन वहां जब नासमझी देखता हूं तो हतप्रभ रह जाता हूं कि आप सामने की सड़क को भिगोने के लिए, गाड़ियों को धोने के लिए और घर के बरामदों को धोने के लिए खूब पानी बहाते हैं, पानी भी कौन सा जो आप जमीन के गर्भ से खींचकर निकाल रहे हो। वह भूजल जिस पर केवल और केवल प्रकृति का अधिकार है लेकिन जब से हम तकनीक में समझदार हो गए तब से प्रकृति को अंदर से कुरेदकर लहूलहान करना भी हमें आ गया और हम उसमें कोई शर्म महसूस नहीं करते।
सोचता हूं मीठे जल की उपलब्धता का आंकड़ा सभी जानते हैं और जो नहीं जानते हैं उन्हें अभी तक दूसरे प्रदेशों के संकटों की खबरों से भी कोई भय नहीं लग रहा है, मीठा जल खत्म हो जाएगा तब यकीन मानिए कि इस धरती पर सबकुछ खारा होगा, आपकी जमीन, रिश्ते, संस्कृति और सभ्यता सबकुछ खारा। नमक वाले उस दौर को आने से रोक दें तो ही बेहतर है। मिठास पर खारेपन की परत यदि बेहद मोटी हो गई जब मिठास हमेशा के लिए उस खारेपन में कहीं खो जाएगी। पानी को लेकर समझदार हो जाईये, कुछ पुराने शौक जिनमें सैकड़ों लीटर पानी बहा दिया जाता है समय से बदल दीजिए क्योंकि आपकी प्यास जो पानी बुझाता है उसकी तासीर मीठी है और आप जिस पानी का उपयोग कर रहे हैं, जिसे बर्बाद कर रहे हैं उसकी तासीर भी मीठी है, सोचिएगा कि हम कितने समझदार हैं कि उस घटते पानी को तेजी से घटाते जा रहे हैं लेकिन उस सिस्टम को समृद्व करने पर गंभीर नहीं हो रहे हैं। बारिश का पानी उस खारेपन को दूर कर सकता है बशर्ते आप ईमानदार होकर उस पानी को धरा के गर्भ में उतारें लेकिन इसके लिए मीठे पानी से हमारे खारे होते रिश्ते पर गौर अवश्य करना होगा।
संदीप कुमार शर्मा, संपादक, प्रकृति दर्शन,
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
Reviews
There are no reviews yet.