Become a Member & enjoy upto 50% off
Enjoy Free downloads on all over the world
Welcome to Prakriti Darshan
Nature Lover - Subscribe to our newsletter
Donate for greener & cleaner earth
Welcome to Prakriti Darshan
Join our Community
Previous
बक्श दो बक्सवाहा

AUGUST 2021 बक्श दो बक्सवाहा

Original price was: ₹25.00.Current price is: ₹24.00.
Next

OCTOBER 2021 खुशी चाहिए, प्रकृति के हो जाईये

Original price was: ₹25.00.Current price is: ₹24.00.
Next Product Image

SEPTEMBER 2021 न जल, न वायु…कैसी जलवायु ?

Original price was: ₹25.00.Current price is: ₹24.00.

दुनिया के आम लोगों के ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के दूर रहने से सुधार को गति नहीं मिल रही है, नीति नियंताओं और आम व्यक्ति के बीच संवाद की एक खाई है जो इस विषय को सरल होने की बजाए और अधिक गहरा करती जा रही है। हम सभी को पर्यावरण के ऐसे गहन विषयों से सरोकार रखना होगा। जमीनी सुधार चाहते हैं तो वह जमीन से ही निकलेगा। हम आंखें नहीं मूंद सकते हैं, हमें पता होना चाहिए और हमारी चिंता भी उसके प्रति हमारे व्यवहार का हिस्सा होनी चाहिए कि आखिर जलवायु परिवर्तन से अमेजन के जंगल आग की भेंट क्यों चढ़ रहे हैं, क्यों अमेरिका के केलिफोर्निया में आग ने सभी की चिंता बढ़ाई, क्यों हमारे देश में ठंड में कोई ग्लेशियर का बड़ा भूभाग टूटकर गिर गया और एक महत्वपूर्ण परियोजना ढह गई, क्यों हमारे यहां पर्वतीय हिस्सों में चाहे हिमाचल हो या उत्तराखंड भूस्खलन हो रहे हैं…आखिर क्यों ? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब को लेकर सभी ओर खामोशी है यह खामोशी हमें गहरे संकट के दरवाजे की ओर ले जा रही है।

Add to Wishlist
Add to Wishlist

Description

1 अरब बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा

– पढ़िये क्या कहती है यूनिसेफ की हालिया रिपोर्ट और क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स
दोस्तों यह अंक जलवायु परिवर्तन पर है इसलिए हाल ही में रिपोर्ट जो कि यूनिसेफ से सामने आई है और जिसने दुनिया के नीति नियंताओं के चेहरों पर चिंता की लकीरें गहरी कर दी हैं, उसे समझें। पहले जानते हैं कि वह रिपोर्ट क्या कहती है-
यूनिसेफ की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के 1 अरब बच्चे जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे का सामना कर सकते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि एशियाई देशों में भारत भी उस खतरे में शामिल है और तीन अन्य देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान भी उसी संकट के दायरे में हैं। यहां रेखांकित करने वाली बात है वह यह कि यूनिसेफ ने केंद्रित क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (सीसीआरआई) जारी किया है और भारत सहित इन देशों को जलवायु परिवर्तन के मामले में सबसे ज्यादा जोखिम (बाढ़, वायु प्रदूषण, चक्रवात और लू) वाले देशों की सूची में रखा गया है।
अब हम क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स को भी समझ लें दरअसल बच्चों पर जलवायु और पर्यावरण संबंधी खतरों के जोखिम, उससे बचाव और आवश्यक सेवाओं तक उनकी पहुंच के आधार पर देशों को क्रमबद्ध किया गया है और इसमें ज्यादा अंक का आशय है अत्यंत गंभीर खतरा और कम अंक का मतलब कम खतरे को दर्शाया गया है। इस इंडेक्स में भारत 26वें नंबर पर है जबकि पाकिस्तान 14वें, बांग्लादेश और अफगानिस्तान 15वें नंबर पर हैं इस तरह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में इस दिशा में भविष्य में क्या हालात हो सकते हैं।
रिपोर्ट में एक जो महत्वपूर्ण बात कही गई कि दुनिया के करीब आधे बच्चे जिनकी संख्या 1 अरब से भी अधिक है वह जलवायु परिवर्तन के उच्च जोखिम वाले 33 देशों में रहते हैं। इन देशों में बच्चों को स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता अैर स्वास्थ्य जैसी जरुरी सेवाएं भी पर्याप्त नहीं मिल पाती हैं और अब जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण से जुड़े खतरे उनके जीवन को और अधिक जोखिम की ओर ले जा रहे हैं। यह भी अनुमान है कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का असर बढे़गा वैसे वैसे यह खतरा और अधिक बढ़ता जाएगा।
इस रिपोर्ट को समझे और केवल भारत की बात करें तो यह माना जा रहा है कि वैश्विक तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी के साथ ही भारत के अधिकांश शहरों में बाढ़ का खतरा बढे़गा, यह भी आशंका जताई जा रही है कि आने वाले समय में भारत में 60 करोड़ से अधिक बच्चे गंभीर पेयजल संकट से भी जूझने को विवश होंगे। एक और गहरी चिंता यह है कि वायु प्रदूषण 2020 के आंकड़े यदि देखें तो दुनिया के प्रदूषित वायु वाले 30 शहरों में से 21 भारत के शहर हैं…।
अब मूल पर लौटते हैं, इंडेक्स में जो भी नंबर भी है हमारे देश का और इस दुनिया के दूसरे देशों का उससे अधिक यह जरुरी है कि आखिर इसे सुधारा कैसे जाए। आखिर कहां से शुरुआत की जाए कि हमारी भावी पीढ़ी पर जो खतरा मंडराने वाला है उससे उन्हें काफी हद तक सुरक्षित बचा लिया जाए क्या वैश्विक स्तर पर इस पर कार्य हो रहे हैं, संभव है लेकिन मैं बेहद स्पष्ट तौर पर हमेशा से इस बात का पक्षधर रहा हूं कि जब तक जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के खतरों से दुनिया के आम आदमी नहीं जुड़ेंगे, जब तक उन तक सूचनाएं नहीं पहुंचाई जाएंगी, जब तक उन्हें उस खतरे और उसके प्रभावों से रूबरू नहीं करवाया जाएगा तब तक यकीन मानिये कि सुधार का हम कोई भी वैश्विक महायज्ञ नहीं कर पाएंगे। इतना बड़ा खतरा दुनिया सहित भारत के बच्चों की ओर अग्रसर है और आम व्यक्ति का उससे कोई सरोकार नहीं है क्योंकि वह जानता ही नहीं है कि आने वाले समय में क्या होने वाला है और आने वाला समय कितना खौफनाक हो जाएगा कि तब रोटी और भूख से भी पहले हवा और पानी के लिए हमें जूझना होगा, हमारे लिए स्वच्छ वायु और स्वच्छ जल चुनौती होंगे जब स्वच्छ वायु और जल नहीं होंगे तब कैसा दौर होगा और कैसे यह हमारे बच्चे उस दौर को जी पाएंगे। यूनिसेफ की यह रिपोर्ट जो दिखा रही है यह सच है और समय कह रहा है कि हमें दूरगामी योजनाओं पर जमीनी कार्य आम व्यक्ति के जुड़ाव को लेकर आरंभ कर देने चाहिए क्योंकि बिना उसकी सहभागिता के आप सुधार की जमीन नहीं तलाश पाएंगे क्योंकि केवल प्लानिंग और आदेशों से सुधार होना होता तो वैश्विक स्तर पर कब का हो चुका होता लेकिन हकीकत यह है कि दुनिया और भारत का इस खतरे की ओर बढ़ना बहुत गंभीर संकट की दस्तक हैं…सोचिएगा कि अब कितना और समय हमें लेना चाहिए सोचने में…या हमें कूद जाना चाहिए पर्यावरण सुधार कार्य के लिए इस महासमर के पहले….।
हमें सरोकार रखना होगा
दुनिया के आम लोगों के ऐसे महत्वपूर्ण घटनाक्रमों के दूर रहने से सुधार को गति नहीं मिल रही है, नीति नियंताओं और आम व्यक्ति के बीच संवाद की एक खाई है जो इस विषय को सरल होने की बजाए और अधिक गहरा करती जा रही है। हम सभी को पर्यावरण के ऐसे गहन विषयों से सरोकार रखना होगा। जमीनी सुधार चाहते हैं तो वह जमीन से ही निकलेगा। हम आंखें नहीं मूंद सकते हैं, हमें पता होना चाहिए और हमारी चिंता भी उसके प्रति हमारे व्यवहार का हिस्सा होनी चाहिए कि आखिर जलवायु परिवर्तन से अमेजन के जंगल आग की भेंट क्यों चढ़ रहे हैं, क्यों अमेरिका के केलिफोर्निया में आग ने सभी की चिंता बढ़ाई, क्यों हमारे देश में ठंड में कोई ग्लेशियर का बड़ा भूभाग टूटकर गिर गया और एक महत्वपूर्ण परियोजना ढह गई, क्यों हमारे यहां पर्वतीय हिस्सों में चाहे हिमाचल हो या उत्तराखंड भूस्खलन हो रहे हैं…आखिर क्यों ? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब को लेकर सभी ओर खामोशी है यह खामोशी हमें गहरे संकट के दरवाजे की ओर ले जा रही है। मुझे खुशी इस बात की है कि और यहां यह भी उल्लेखित करना जरुरी है कि यह खबर ‘अमर उजाला’ ने प्रमुखता से प्रकाशित की है और हम उनकी सराहना भी करते हैं क्योंकि यह दौर है जब हमें जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के विषयों पर खामोश नहीं रहना चाहिए।

(मानचित्र यूनिसेफ की उसी रिपोर्ट से साभार लिया गया है…इसमें डार्क पर्पल रंग जिसमें भारत है और जो अत्यधिक गंभीर इंगित किया गया है)

BALA DATT SHARMA

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “SEPTEMBER 2021 न जल, न वायु…कैसी जलवायु ?”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping cart

0
image/svg+xml

No products in the cart.

Continue Shopping