बागवानी एक दीवानगी है, प्रार्थना है, मन से प्रकृति का शास्त्रार्थ है, इसे वही समझ सकते हैं जो पूरी तरह इसके लिए समर्पित हो गए, वे इसमें कहीं बहुत गहरे तक खो गए और प्रकृति के बीच रहकर जीवन जीने का अदभुत आनंद उठाते हुए मूल को समझे और खुशहाली बांटने लगे। सच है, प्रकृति को जिसने मन से स्वीकार लिया, अंगीकार कर लिया वह संकटों के इस दौर में भी आपको सुकून वाली जिंदगी जीते हुए मुस्कान बिखरेते नज़र आएगा। बागवानी जिंदगी की एक दिशा है, उत्साह है, उम्मीद है और प्रकृति की मौन सेवा भी।

मध्यप्रदेश इंदौर निवासी 69 वर्षीय महेश बंसल जी ऐसे ही उदाहरण हैं जिन्हें आरंभ में बागवानी का कोई शौक नहीं था लेकिन मित्रों की बागवानी देखी तो रुचि जाग्रत हुई और वे प्रकृति के करीब रहने लगे लेकिन जब उन्होंने स्वयं बागवानी और टैरेस गार्डनिंग आरंभ की तब बागवानी दीवानगी में तब्दील हो गई। महेश बंसल जी का निवास अब चारों ओर से पौधों और वृक्षों से घिरा हुआ है लगभग 500 से अधिक पौधे यहां हैं।
अडेनियम के कारण बढ़ा जुनून-प्रकृति की सेवा बागवानी
महेश बंसल जी का कहना है कि पूर्व में सीजलन, कैक्टस, गुलाब, हाईब्रिड हैबिस्कस थे लेकिन अब वह संग्रह में नहीं हैं। एक समय था जब इनकी बहार जन्नत की तरह महसूस होती थी। इनकी जगह अब परमानेंट एवं असुलभ पौधे उनके यहां संग्रहित हैं। उनका कहना है देखने में हमारी छत बगीचा कम लेकिन नर्सरी और जंगल जैसी प्रतीत होने लगी है। उन्हें अडेनियम पसंद है और इसे लेकर काफी नॉलेज भी संग्रहित कर रहे हैं।
140000 लाइक और 4800 शेयर
आपका कहना है कि कुछ वर्ष पूर्व फेसबुक पर मेरे पर्सनल ब्लॉग पर एक ग्राफ्टेड गुडहल के पौधे में तीन कलर के फूल ( जो मुझे मित्र से उपहार में मिला था ) की पोस्ट पर मुझे 140000 लाइक और 4800 शेयर मिले थे। मुख्य बात यह थी कि इस पोस्ट ने गुडहल पर ग्राफ्टिंग करने की ओर बागवानों को प्रेरित किया था। यह भी सच है कि बागवानी के प्रति जो मेरी रुचि बढ़ी उसमें अडेनियम का बड़ा हाथ है या यूं भी कहा सकता है कि अडेनियम के लिए मेरी चाहत दीवानगी की हद तक है।
‘प्रकृति दर्शन’ में बागवानी पर मेरा लेखन
मुझे खुशी है कि बागवानी के माध्यम से कुछ अनुभव दूसरों में बांटने का अवसर मिलता है। देश में पर्यावरण और प्रकृति संरक्षण की बेहद महत्वपूर्ण पत्रिका ‘प्रकृति दर्शन’ के प्रत्येक अंक में बागवानी पर मेरा एक आलेख अवश्य होता है और पत्रिका के लिए सतत लेखन कार्य जारी है। अब बागवानी इतनी अधिक पसंद है कि पर्यटन के दौरान देश अथवा विदेश में मुख्य आकर्षण वहां के पेड-पौधे और फूल ही होते हैं। विदेशों में भी नर्सरी भ्रमण प्राथमिकता होती है।
तब अवसाद दूर होगा

महेश बंसल जी का मानना है कि नित्य खिलने वाले फूलों के दर्शन सुप्रभात में आनंदमयी होते हैं। पौधे पारिवारिक सदस्य हैं जो सदैव मुस्कान प्रदान करते हैं। इस हेतु मातृत्व भावना विकसित होना भी आवश्यक है। यदि आपमें यह भावना विकसित होती है तो बच्चों की बाल सुलभ गतिविधियों की तरह पौधे भी आनंद देते हैं। पत्तियों की कोमलता को महसूस करना, सुगंधित महक से सराबोर होना सकारात्मक अनुभव है। फूलों के सौंदर्य को कैमरे में क्लिक करना, जल देना, नित्य की दिनचर्या है। यह कार्य 69 वर्ष की उम्र में स्वयं के लिए आनंदायी है। भले ही कोई समृद्व हो या निर्धन हो लेकिन सामर्थ्य के अनुसार पौधों का संग्रह व देखभाल करने पर अवसाद भी दूर होगा।
हजारों की संख्या में पौधे और बीजों का निःशुल्क वितरण
महेश बंसल जी का कहना है कि बागवानी के दौरान बीज भी निकलते हैं और कटिंग से पौधे भी तैयार होते हैं। अब तक हजारों की संख्या में पौधे और बीजों का निःशुल्क वितरण कर चुके हैं, उन्हें इस बात में बहुत खुशी मिलती है कि यदि कोई बागवानी करना चाहता है तो वह अपने अनुभव का संपूर्ण लाभ उसे प्रदान करते हैं। कोई सीखना चाहता है उसे सिखाते हैं, समझाते हैं, कैसे किया जाएगा, राह प्रशस्त करते हैं।
40 से अधिक देशों के 38000 से अधिक फालोवर्स
वे बगीचा ग्रुप से जुडे हैं और प्लांट एक्सचेंज क्लब एमपी 09 से भी जुडे हुए हैं। साथ ही उनके फेसबुक पेज पर 40 से अधिक देशों के 38000 से अधिक फालोवर्स हैं। बागवानी को लेकर उनका अपना मत है, बागवानी को लेकर देशभर के विभिन्न हिस्सों में कार्य हो रहा है। ग्रुपों के माध्यम से वर्कशॉप भी होती हैं जिनमें सीखने और सिखाने का अवसर मिलता है। उनका कहना है कि बागवानी एक ऐसा माध्यम है जिसमें आप प्रकृति की सेवा के साथ ही अपने आसपास के वातावरण को भी स्वच्छ रखने का एक महत्वपूर्ण कार्य बेहद जिम्मेदारी के साथ करते हैं।
- गोरिल्ला (Gorilla) : व्यवहार, संरचना और संरक्षण की आवश्यकता - May 14, 2025
- जंगली जानवरों (Wild Animals) का अस्तित्वसंकट में - May 14, 2025
- जलवायु परिवर्तन और उत्तराखंड - May 13, 2025